शिक्षा मंत्री को सार्वजनिक चिट्ठी

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पुनर्मतगणना से खिले शिक्षा मंत्री पाण्डे जी…..

‘‘जो देखता हूं वही बोलने का आदी हूं
मैं अपने शहर का सबसे बड़ा फसादी हूं’’

माननीय शिक्षा मंत्री अरविन्द पाण्डे जी सादर नमस्कार।



अरविंद पाण्डे

मैं आपकी विधानसभा का अदना सा मतदाता हूं, पत्रकार हूं और सबसे बड़ी बात, सवाल करना मेरी फितरत है, मेरा काम है। इसलिए मैं खुली मिडिया में अपनी बात रख रहा हूं। हो सकता है आप मुझसे खफा हों (जैसा कि आप गूलरभोज के एक पत्रकार मित्र से हुए हैं) या मेरी बात को आप महत्व ही न दें और ‘जाने दो’ के अंदाज में मुझे इगनाॅर कर दें या कुछ और भी रियेक्शन हो सकता है आपका। आप मंत्री जो ठहरे, कुछ भी कर सकते हैं। बस एक ही फरियाद है मुकदमा वगैरह मत करना। बड़ी मुश्किल से पासपोर्ट बन रहा है, बीच में अटक जायेगा और विदेश यात्रा करने की इच्छा अन्दर ही दफन हो जायेगी। वैसे यदि आप अपना जवाब जनता के सामने रखेंगे तो ज्यादा अच्छा रहेगा। खैर……मंत्री जी आप पर आरोप है कि – आप येन केन प्रकारेण गूलरभोज नगर पंचायत में अध्यक्ष पद का चुनाव जीत गये हों, लेकिन हजारों लोगों का दिल हार चुके हो। सैकड़ों उंगलियां आप पर उठ रही हैं। दर्जनों सवाल आपसे टकराने को बेताब हैं। आरोप है कि सत्ता की हनक और दबाव से आप चुनाव का परिणाम तो बदलवा सकते हो, लेकिन जनता के बीच फैले असंतोष को कैसे बदलोगे? क्या लोकतंत्र में चुनाव जीतना ही सब कुछ होता है? राजनीति के मायने यही हैं कि आप अपने विरोधी विचार को बिलकुल ही कुचल दो? मंगलवार को निकाय चुनाव की मतगणना के दौरान जो कुछ हुआ, वो क्षेत्र, राज्य और देश के लोकतंत्र के लिए कतई भी उचित नहीं है।

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सत्ता के दुरुपयोग का चुनाव में जो नंगा नाच मैंने मंगलवार को देखा वो वास्तव में असहनीय व निन्दनीय है। जब जो पार्टी सत्ता में होती है, वो शासन, व्यवस्था, संविधान, चुनाव, न्यायपालिका, विधायिका सब पर अपना दबदवा रखती है। बूथ कब्जाना, फर्जी वोटिंग, मतगणना में धांधली आदि-आदि चुनाव में सत्तासीन पार्टियों के दबाव में होता था, यह हम बचपन में सुना करते थे। इस तरह की घटनाएं उत्तराखण्ड में नहीं होती थीं। लेकिन मंगलवार को रूद्रपुर की बगबाड़ा मण्डी में मतगणना के दौरान गूलरभोज सीट पर जो हुआ, उसे देखकर कोई भी इंसाफ पसंद व्यक्ति व्यथित जरूर होगा।

समाचार पत्र की ख़बर

गूलरभोज नई और बहुत छोटी नगर पंचायत है। शिक्षा मंत्री अरविन्द पाण्डे जी का गृह नगर है, इसलिए बहुत खास था गूलरभोज का चुनाव। मतगणना के बाद दोपहर एक बजे तक कांग्रेस प्रत्याशी 18 वोट से विजयी हो गयीं थीं। लेकिन सत्ता के दबाव में परिणाम घोषित नहीं किया गया। भाजपा की ओर से रिकाउंटिंग की मांग हुई। कई जगह दस से कम वोटों का फासला होने पर भी चुनाव अधिकारी ने पुनर्मतगणना नहीं कराया। गूलरभोज के लिए रिकाउंटिंग की बात को भी टाला गया, लेकिन लंच के बाद पुनर्मतगणना शुरू हुई। चारों तरफ से पुलिस ने बूथ को घेर लिया। एजेन्टों को बाहर कर दिया गया। मिडिया को भी दूर कर दिया गया। देर रात तक परिणाम रोके रखा गया। रिकाउंटिंग में चार वोट से भाजपा को विजयी घोषित किया गया। कांग्रेस की तीसरी बार मतगणना की अर्जी भी फाड़ दी गयी। कांग्रेस की बुजुर्ग महिला प्रत्याशी सहित एजेन्टों को जबर्दस्ती बाहर कर दिया गया। यह सब क्या है??? ज्यादा अच्छा होता कि जबर्दस्ती की जीत की जगह हार को स्वीकार करते और अपनी कमियों को खोजते। क्योंकि हर बार जीतना ही कोई जीत नहीं होती है मंत्री जी। 
‘‘जिन्दगी में हर चीज को जीतना ही कोई जीत नहीं
कुछ चीजे हार के जीतने में जो मजा है, वो जीत के जीतने में नहीं।’’ 
गूलरभोज सीट के चार वोट से भाजपा के जीतने की चर्चा आज हर तरफ है। इससे आपका मान बड़ा नहीं है मंत्री जी। गूलरभोज में भय का माहौल है। आम तौर पर आठ बजे बंद होने वाला बाजार कल 6 बजे ही बंद हो गया। धमकियों का बोलबाला है। पत्रकारों की कलम तक को दबाने का प्रयास हो रहा है। आपकी विधानसभा क्षेत्र में नागरिक आपकी इस जीत से खुश नहीं हैं मंत्री जी। 
राजनीति में घमंड और ईर्षा राजनैतिक पतन का करण होती है, इसलिए आप मेरी बात का बुरा नहीं मानेंगे, ऐसी मेरी उम्मीद है। 
धन्यवाद!
आपका-  रूपेश कुमार सिंह, पत्रकार

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