विषमता के देश में कैसा गणतंत्र?

Share this post on:

गणतंत्र किसे कहते हैं? संविधान निर्माताओं की भाषा में हम भारत के लोगों ने संविधान बनाते हुए गणतंत्र को ही क्यों चुना?

गणतंत्र में राजसत्ता नागरिकों में निहित होती है और राष्ट्र संप्रभु होता है। यह संप्रभुता भी नागरिकों में निहित होती है।देश की संसद और विधानसभा ही नहीं, हर निकाय के लिए प्रतिनिधियों को प्रतिंधियों का चुनाव जनता करती है। देश के शासन के प्रमुख प्रधानमंत्री और राष्ट्राध्यक्ष को भी जनता चुनती है। जो जनता के प्रति जवाबदेह होते हैं। जैसे राष्ट्र पर किसी का प्रभुत्व नहीं होता,वैसे ही नागरिकों पर भी किसी का प्रभुत्व नहीं होता।नागरिक स्वतंत्र और संप्रभु है।स्वतंत्र मताधिकार से देश और ज्ञान चलाने के लिए नागरिक ही जनप्रतिनिधियों का चुनाव करता है।
गणतंत्र में वंशवाद नहीं चलता। जन्मजात कोई राष्ट्रपति या प्रधानमन्त्री पद का हकदार नहीं होता।

नागरिक अगर स्वतंत्र और संप्रभु है तो किसी को सवाल उठाने की इजाजत क्यों नहीं है? अभिव्यक्ति पर सख्त पहरा क्यों है? भय,घृणा और हिंसा का माहौल क्यों है?

1857 की क्रांति से 15 अगस्त 1947 तक हमने स्वराज मांगा। 26 जनवरी 1929 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पहलीबार पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की थी, जो मांग भगत सिंह और तमाम क्रानिकारी उठाते रहे हैं। 1947 में आजादी मिलने तक भारतीय जनता विदेशी शासकों की प्रजा थी। संविधान को 26 नवंबर 1949 को अपना लिए जाने के बावजूद भारत 26 जनवरी 1950 को गणतंत्र बना तो इसी विरासत के कारण।संविधान लागू होने से पहले तक ब्रिटेन के सम्राट भारत के राष्ट्रध्यक्ष हुआ करते थे।

भारतीय संविधान में नागरिकों के मौलिक अधिकारों की गारंटी दी गई है। इन मौलिक अधिकारों का क्या हुआ जो नागरिक को स्वतंत्र और संप्रभु बनाते हैं? इनके बिना निरंकुश सत्ता के कारपोरेट राज को क्या हम गणतंत्र का सकते हैं।

भारतीय संविधान के प्रस्तावना में समता और न्याय के लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं। ऑक्सफैम की ताजा विषमता रपट के मुताबिक भारत में एक प्रतिशत लोगों के पास चालीस प्रतिशत संपत्ति है और पचास प्रतिशत लोगों के पास एक फीसद संपत्ति। क्या यह समानता और न्याय है? क्या यही गणतंत्र है की देश के संसाधनों पर सिर्फ एक प्रतिशत आबादी का कब्जा हो जाए?

हमारे संविधान में देश को धर्म निरपेक्ष और लोकतांत्रिक बताया गया है।विविधता और बहुलता के देश में अल्पसंख्यकों पर बहुसंख्यकों का वर्चस्व और उनका, दलितों,आदिवासियों और स्त्रियों का दामन,उत्पीड़न क्या गणतंत्र है?

विश्वव्यवस्था के मातहत मुक्तबाजार में निजीकरण,उदारीकरण और ग्लोबीकरण के बाद हम कितने स्वतंत्र और संप्रभु हैं? समाजवाद और सामाजिक आर्थिक न्याय का क्या हुआ?

नागरिक स्वतंत्र और संप्रभु है तो उसे बोलने,लिखने की आजादी क्यों नहीं है?सरकार नागरिकों के प्रति जवाबदेह है तो सरकार की आलोचना और असहमति देशद्रोह क्यों है? क्या कारपोरेट फंडिंग से चुने गए जनप्रतिनिधि जनता के प्रति जवाबदेह हैं?
पलाश विश्वास

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *