लोकसभा चुनाव – हो क्या रहा है?

Chunav
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देश की वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के पति परकला प्रभाकर मशूहर अर्थशास्त्री हैं। उन्होंने चुनावी बांड के मामले पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा है, ‘‘यह सिर्फ देश का सबसे बड़ा घोटाला नहीं, दुनिया का सबसे बड़ा स्कैम है।’’ उन्होंने आगे कहा, चुनावी बांड का मुद्दा अहम मुद्दा बनेगा। बीजेपी की लड़ाई विपक्षी दलों या फिर और पार्टियों से नहीं होगी, बल्कि इस मुद्दे के चलते असल लड़ाई बीजेपी और भारत के लोगों के बीच नजर आएगी।’’ उन्होंने यह भी कहा, ‘‘चुनावी बांड घोटाले के कारण मतदाता इस सरकार को कड़ी सजा देंगे।
चुनावी बांड के जरिए देश के उद्योगों और कुछ लोगों से व्यक्तिगत स्तर पर 1,27,69,08,93,000 रुपए दान में मिले। इसका खुलासा तब हुआ, जब चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर भारतीय स्टेट बैंक से मिले आँकड़े वेबसाइट पर सार्वजनिक कर दिए। जिसके मुताबिक सबसे ज्यादा 60,60,51,11,000 रुपए भाजपा की झोली में गए, जो कुल रकम का आधा है।
देशभर में विपक्षी नेताओं के खिलाफ सीबीआई, आयकर विभाग और ईडी के छापे लगातार पड़ रहे हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सलाखों के पीछे हैं तो झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पद से इस्तीफा देने के बाद गिरफ्तार कर लिए गए। लेकिन चुनावी बांड घोटाला मामले में ईडी ने कोई कार्रवाई नहीं की। विपक्षी इसे अभी तक ऐसा राजनीतिक मुद्दा नहीं बना सके, जिससे मोदी सरकार के खिलाफ बदलाव की कोई हवा चले। इंदिरा गाँधी जब सत्ता में थीं, निरंकुश थीं। उन्होंने आपातकाल लगाकर समूचे विपक्ष को जेल में डाल दिया और प्रेस पर सेंसर भी लगा दिया। लेकिन तब जनता ने विद्रोह कर दिया था। प्रेस सेंसरशिप के बावजूद लोगों को मालूम था कि देश में चल क्या रहा है। क्योंकि मीडिया तब आजाद था। क्या आज मीडिया आजाद है? क्या सत्ता पक्ष के धुँआधार प्रचार के मध्य मतदाताओं को कहीं से सही जानकारी मिलने की कोई सूरत है?
इस बीच प्रमुख विपक्ष दल कांग्रेस का बैंक खाता फ्रीज कर दिया गया। उसके पास चुनाव लड़ने के पैसे नहीं हैं। इस पर तुर्रा यह कि आयकर विभाग ने जुर्माना और ब्याज सहित 1700 करोड़ रुपए का नोटिस कांग्रेस को भेजा है। जब कांग्रेस का यह हाल है तो बाकी राजनीतिक दलों की क्या हालत होगी? भाजपा और सत्ता गठबंधन की चुनावी तैयारी लंबे अरसे से चल रही है। भावनात्मक मुददे भी कई उसने बना दिए, जिनके असर से आम मतदाताओं का निकलना मुश्किल है। आनन-फानन में चुनाव कार्यक्रम के ऐलान से पहले तक सरकारी खजाना खोलकर बहुसंख्य गरीब मतदाताओं को खुश कर दिया गया। भाजपा गठबंधन के प्रत्याशी पहले से तय थे। उनका प्रचार लगातार जारी है। विपक्षी प्रत्याशी तय करने में वक्त ज्यादा लगा। उनका चुनाव-प्रचार शुरू ही नहीं हुआ। न उनके पास सत्ता है, न पैसा और न संगठन। भाजपा नेतृत्व को चुनौती देने वाला नेतृत्व भी नहीं है। ऐसे में वे क्या कर लेंगे?
बहरहाल, भारतीय जनता और मतदाताओं, मीडिया पर कोई असर हो या नहीं, लोकसभा चुनाव से पहले की स्थिति पर बाकी दुनिया में बहुत हल्ला हो रहा है, हालाँकि इसका कोई असर चुनावों पर होने की संभावना कम नजर आती है। दूसरे देशों में भी चुनावों से पहले अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खूब हल्ला होता रहा है। लेकिन उसका कोई असर न सत्ता पक्ष पर हुआ और न चुनाव के नतीजों पर। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी पर जर्मनी और अमेरिका के बयानों के बाद संयुक्त राष्ट्र ने भी सख्त प्रतिक्रिया दी है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनी गुटेरेस के प्रवक्ता स्टीफन दूजारिक से अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी और कांग्रेस पार्टी के बैंक खातों को फ्रीज करने को लेकर सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘‘हम उम्मीद करते हैं कि दूसरे किसी भी देश की तरह जहाँ चुनाव हो रहे हैं, भारत में भी राजनीतिक और नागरिक अधिकारों के सभी लोगों के हितों की रक्षा होनी चाहिए।’’ गौरतलब है कि ईडी ने अरविंद केजरीवाल को दिल्ली की आबकारी नीति मंे हुए कथित घोटाले से जुड़े केस में 21 मार्च, 2024 को गिरफ्तार कर लिया।
इससे पहले अमेरिका ने अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी और चुनाव से पहले कांग्रेस के बैंक खातों को फ्रीज करने के मामले में दो बार टिप्पणी की। भारत सरकार के सख्त ऐतराज के बाद दूसरी बार अमेरिका ने टिप्पणी की। यह अभूतपूर्व है। अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता ने दो टुक कहा कि केजरीवाल की गिरफ्तारी से जुड़ी रपटों पर अमेरिका बारीकी से नजर रख रहा है और वह निष्पक्ष कानूनी प्रक्रिया को मजबूत करने के पक्ष मंे खड़ा है। इससे पहले जर्मनी ने भी केजरीवाल की गिरफ्तारी के मामले में निष्पक्ष सुनवाई की अपील की थी। इसका भारतीय मतदाताओं पर कोई असर होगा?
इस बीच केजरीवाल ने अदालत से कहा कि वे रिमांड का विरोध नहीं करते हैं, बल्कि वे ईडी की ओर से लगाए गए आरोपों की पूरी जाँच के लिए तैयार हैं। अपने लंबे बयान में उन्होंने कहा, ‘‘असली घोटाला तो ईडी की जाँच के बाद हुआ है। एक मकसद था ‘आप’ को खत्म करना, एक माहौल बनाना कि आम आदमी पार्टी भ्रष्टाचारी है।’’ दरअसल सत्ता पक्ष के प्रचार और सरकारी जाँच एजेंसियों की कार्रवाई एक-दूसरे के पूरक नजर आ रहे हैं, जिसके तहत भ्रष्टाचार के मामले में सिर्फ विपक्षी नेताओं को घेरा जा रहा है और समूचे विपक्ष को भ्रष्ट घोषित किया जा रहा है। यहाँ तक कि चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद भी प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार के पैसे लोगों को लौटाने का वायदा भी कर रहे हैं।
केजरीवाल ने आरोप लगाया, ‘‘शरत रेड्डी के केस में शरत रेड्डी को जमानत दो कारणों से मिली। सबसे पहले रेड्डी ने मेरे खिलाफ बयान दिया और गिरफ्तार होने के बाद भाजपा को 55 करोड़ रुपए का चंदा।’’ गिरफ्तार होने के बाद रेड्डी ने 55 करोड़ के चुनावी बांड खरीदे थे, जिसे भाजपा ने भुनाया।
चुनावी बांड के जरिए गुपचुप पूँजीपतियों ने भाजपा को जो भारी रकम चंदे के रूप में दी, वही उसकी ताकत बन गई है। सरकारी एजेंसियों ने अपनी कार्रवाई से विपक्षी दलों को कंगाल बना दिया है। अब भाजपा का मुकाबला कौन करेगा?
मोदी ने 2017 में लोगों और कारपोरेट समूहों को चुनावी बांड के रूप में गुमनाम तरीके से किसी भी राजनीतिक दल को असीमित मात्रा में चंदा देने की अनुमति दी थी, जिसका सबसे ज्यादा लाभ भाजपा को हुआ। इन बांडों की पारदर्शिता को लेकर लगातार सवाल उठ रहे थे और आरोप लग रहा था कि चुनावी बांड के जरिए धन वसूली, मनी लांड्रिंग या काले धन को सफेद करने की खुली छूट दे दी गई। चुनावी बांड को सूचना के अधिकार के दायरे से बाहर रखा गया।
सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड योजना को असंवैधानिक करार दिया। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यह योजना नागरिकों के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है, जिससे संविधान के अनुच्छेद 19;1द्ध;एद्ध के तहत अभिव्यक्ति की स्वतत्रंता पर असर पड़ता है। 15 फरवरी को अपने इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट जारी कर्ता भारतीय स्टेट बैंक को चुनावी बांड जारी करने पर तत्काल रोक लगाने का आदेश दिया। इसके साथ कोर्ट मंे चुनाव आयोग से कहा कि वह 2019 से अब तक की जानकारी सार्वजनिक करे। सुप्रीम कोर्ट का आदेश था कि बांड जारी करने वाले भारतीय स्टेट बैंक को यह जानकारी देने होगी कि अप्रैल 2019 से लेकर अब तक कितने लोगों ने कितने-कितने चुनावी बांड खरीदे।
अब सारी जानकारी सुप्रीम कोर्ट की पहल से सार्वजनिक है। घोटाला दर घोटाला है। चुनाव आयोग ने इस पर क्या कार्रवाई की? ईडी और दूसरी एजेंसियों ने? क्या विपक्ष और मीडिया के लिए न सही, भारतीय जनता और मतदाताओं के लिए यह कोई मुद्दा नहीं है?

वीरेश कुमार सिंह
वीरेश कुमार सिंह

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