पहले जिंदगी से लड़ी, अब मौत से संघर्ष कर रही हैं बेबी हालदार

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13 साल की उम्र में शादी, तीन बच्चे, बचपन में माँ का निधन, ससुराल में पति का अत्याचार, 23 साल की उम्र में न सिर्फ पति को छोड़ा, बल्कि कोलकाता शहर ही छोड़ दिया।
फरीदाबाद पहुँचकर लोगों के घर में वर्षों तक झाड़ू-पोंछा, नौकरानी से साहित्यकार बनना और फिर देश-विदेश में छा जाना… कहानी बस इतनी भर नहीं है बेबी हालदार की।
आलो-आँधारि पढ़नी होगी पूरी दास्तान जानने को। इतना समझो कि जिंदगी के लिए घुट-घुट कर नहीं जी बेबी हालदार। मौत की दया पर जीने से बेहतर जिंदा रहने की ख्वाहिश के हाथों मर जाना बेबी ने मुनासिब समझा।
जिंदगी भर जिंदगी से लड़ी और अब मौत से बहादुरी से संघर्ष कर रही हैं बेबी दीदी। एक साल से ज्यादा का वक्त हो गया, कैंसर से पीड़ित हैं।
तन्हाई और आर्थिक अभाव में जीने वाली बेबी हालदार ने जिंदगी के लिए कभी भीख नहीं माँगी।
जितना बड़ा ओहदा और कद बेबी दीदी का, उतना ही बड़ा स्वाभिमान।
इलाज हुआ, सक्सेस भी रहा, लेकिन कुदरत को कुछ और ही मंजूर था। इंफेक्शन फैल गया और अब स्थिति कुछ नाजुक है। कोलकाता के कैंसर अस्पताल से उनका इलाज चल रहा है। दीदी शारीरिक रूप से जरूर कमजोर हुई हैं, लेकिन उनके इरादे अभी भी बहुत मजबूत हैं। संघर्ष की अनूठी प्रतिमूर्ति बेबी हालदार झुकने और टूटने वाली नहीं हैं।
वे कहती हैं, ‘‘अभी मुझे नहीं जाना है। जब मैंने मरना चाहा, तब तो मैं नहीं मर पाई। अब तो मुझे और जीना है। कौन मार पाएगा मुझे? काफी कुछ लिखना शेष है। लड़ते हुए जीना सीखा है, और हँसते हुए मरने में कोई गम नहीं।’’
मैं और शालिनी दो दिन से दीदी के हालिशहर, कोलकाता में उनके घर पर हैं। 2 अप्रैल को उन्हें फिर अस्पताल में एडमिट किया जाएगा।
उनकी जकड़न बहुत सुकून देती है। मेरी प्रिय लेखिका बेबी दीदी जिंदाबाद! आप यह लड़ाई भी जीतेंगी, अपने इतिहास के बल पर। हम सबको आप पर बहुत भरोसा है।
प्रेरणा अंशु के 37 वें वार्षिकोत्सव में उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड के विभाजन पीड़ित बंगाली समाज की आपबीती पर लिखी मेरी किताब ‘छिन्नमूल’ पर बोलते हुए दीदी बेहद भावुक हो गईं थी। इस पुस्तक की भूमिका उन्होंने ने लिखी है। कैंसर से जूझती हुई बेबी दीदी का आठ महीने से कोलकाता में इलाज चल रहा था। उनका स्वास्थ्य लगातार गिर रहा था। बेहद कमजोर हो गई थीं। लिखना पढ़ना बंद हो गया था। फिर भी उन्होंने इस किताब की भूमिका लिखी। वार्षिकोत्सव में किताब के विमोचन के लिए चली भी आई।
देशभर में फैले प्रेरणा अंशु परिवार के सदस्यों के आर्थिक सहयोग से उनकी चिकित्सा चल रही है। वे जल्दी स्वस्थ हो जाएंगी, ऐसी उम्मीद है। वह बांग्ला की लेखिका हैं और सारा हिंदी समाज उनके साथ है, उसी तरह जैसे हिंदी समाज देश में सर्वत्र विभाजन पीड़ितों और विस्थापितों, हाशिए के समूह के साथ हमेशा खड़ा है। ‘छिन्नमूल’ की कथा भी यही है।
राजनीति से परे यही हिंदी समाज का मूल चरित्र है। जो स्वभाव से उदार और लोकतांत्रिक है। कट्टरता और सांप्रदायिकता से हमारी विरासत का कोई रिश्ता नहीं है।
महाश्वेता देवी कहती थीं, ‘‘हिंदी में छपने के बाद ही मैं भारतीय लेखिका बनी। बेबी हालदार को भी हिंदी समाज ने ही लेखिका बनाया। जिंदा रखा। मैं जो कुछ हूँ, जैसा हूँ, हिंदी समाज की बदौलत हूँ।’’
इस उदार और लोकतांत्रिक हिंदी समाज पर हमें गर्व है और हिंदी हमारी पहचान है।
जिंदाबाद बेबी हालदार।
तमगे और देशी-विदेशी पुरस्कारों को शोकेस में रखने के बजाय बंद करके अखबारों और किताबों के बीच अलमारी में डाल देने और प्रसिद्धि को ताक पर समेट देने के बाद हजारों लिखने वालों में कोई एक लेखक बेबी हालदार बनता है। देशी-विदेशी दर्जनों भाषाओं में अनुवादित बेबी दीदी की किताबों पर चढ़ी गर्द और जालों को मैंने साफ किया। सवाल करने पर बेबी दीदी ने बताया, ‘‘यदि मैं किताबों की गर्द साफ करने में समय जाया करने लगी, तो समाज के चेहरे को कौन साफ करेगा?’’ वास्तव में यूँ ही कोई बेबी हालदार नहीं बन जाता। उसके लिए टकराना होता है घर, समाज और व्यवस्था से। भिड़ना होता है दकियानूसी, परंपरावादी, जुल्मी मानसिकता से।
पिछली बार बेबी दीदी का फोन आया, ‘‘तुम जहाँ हो, तुरंत घर चले आओ।’’ बस मैं और मुन्ना दा रात नौ बजे उनके घर हालिशहर पहुँच गए। उन्होंने परवल की सब्जी, मिक्स दाल, चिकन, रोटी, चावल, के बाद आम और पपीता हमें खिलाया। देर रात तक साहित्य, समाज, प्रकाशक, घर परिवार और कोलकाता की राजनीति पर चर्चा चलती रही। सुबह नाश्ते के बाद हम लोग साथ-साथ घर से निकले। दीदी जल्द रूद्रपुर आएंगी, इस वादे के साथ वो ट्रेन पकड़कर ड्यूटी चली गईं और हम काचरापाड़ा आ गए।
दोस्तों, बेबी दीदी मेरी पसंदीदा राइटर हैं। आपसे निवेदन है कि उनकी कृति ‘ऑलो-आंधारि’ जरूर पढ़ें। बाकी लिखने वालों की कमी नहीं है, ऐसे भी हैं जो लिखते कम हैं, पोकते ज्यादा हैं, लटके- झटके भी कम नहीं हैं आजकल के लेखकों के। बेबी दीदी लीक से अलग, बहुत सरल और सामान्य लेखिका हैं। ऐसी है बेबी हालदार।

रूपेश कुमार सिंह

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