जमानती औरतें

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माधो और उसके छोटे भाई की उमर निकली जा रही थी। उनके ब्याह की चिंता हो भी तो किसे..! माता पिता को स्वर्गवासी हुए बरसों […]

काली रेखा

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चारों तरफ देखने के बाद लाला की नजर नीचे जमीन पर पड़ी। उसे एक लंबी काली रेखा दिखाई दी। रेखा कहीं-कहीं मुड़ती भी थी, लेकिन […]

एक बेतरतीब जिंदगी

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20 मई 2018-मेरी शादी को अभी हफ्ता बीता है। लगता है, यहाँ की मिट्टी मेरी जड़ों के लिए नहीं बनी।25 मई 2018-सुना था, शादी सुख-दुःख […]

ऋचा गौतम की कविताएं

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ऋचा गौतम की कविताएं
गाँव का पुराना घर
बाट जोहता है किसी अपने का।।
पिछली बारिश में चू रही थी छत
इस बारिश आँगन के दीवार में आ गई है दरार
कभी छोटी-सी छत पर बारी-बारी
सारे अनाज सुखा लेती थी माँ,
अब वहाँ उगते हैं, सूखते हैं, झरते हैं सालों भर
खर-पतवार।।