फलक उनका भी है…

धीरा खंडेलवाल गुरुग्राम, हरियाणा
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यह कैसी नस्ल है?
आदम हो नहीं सकती
जिंदगी इतनी बे-वस्ल हो नहीं सकती
रहा इंतजार उस दिन का जिस को
वह वैलेंटाइन डे कह पाती
गली की चाची, भाभी, बहना को पढ़ाती
अपने प्यार की पाती
कभी तो मिल पाता प्यार
तकरार के बाद मनुहार
कभी तो कोई करता
नापसंद बातों को दरकिनार

नारी मन में उठते सवालों का
कोई हल नहीं देता
प्रश्नवाचक नजर से देखते हैं,
भावनाओं को बल नहीं देता
अब भी बदल लें नारियां गर
उम्मीद की परिभाषा
थोथे मोह से परे
एक जहां और भी है,
स्वयं से ही रखें आशा
स्वाभिमान और स्वायत्तता पे हक उनका भी है
सेवाभावी रहें मगर उड़ने को
फलक उनका भी है

धीरा खंडेलवाल गुरुग्राम, हरियाणा
धीरा खंडेलवाल
गुरुग्राम, हरियाणा

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