जोशीमठ धंस रहा है। जोशीमठ डूब रहा है। ग्लेशियर पिघल रहे हैं।हिमालय खतरे में है।
खतरे की जद में है दार्जिलिंग, उत्तरकाशी, टिहरी झील क्षेत्र, नैनीताल,मुंश्यारी, धारचूला, कर्ण प्रयाग और न जाने कितने शहर,इलाके और गांव।मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने फिलहाल पहाड़ के हर शहर का सर्वे करने की घोषणा की है।
खतरे में है उत्तराखंड और देश,मनुष्यता और सभ्यता।इतिहास और भूगोल।आस्था और विरासत।
अभी हाल में उत्तराखंड सरकार ने कैबिनेट फैसले के तहत पनबिजली परियोजनाओं को खुली छूट दी है।पूंजी और बाजार के हवाले है हिमालय। रिजॉर्ट संस्कृति ने देवभूमि की पवित्रता भंग की है।
अनैतिकता,भ्रष्टाचार और अय्याशी का आखेटगाह बना दिया गया है उत्तराखंड। निजी पार्किंग के नाम रिजॉर्ट संस्कृति को मजबूत किया जा रहा है।
ऑल वेदर रोड पूंजी का स्वर्णिम राजमार्ग है।
एवरेस्ट तक में ट्रैफिक जाम।
पहाड़ में भी बुलडोजर चलने लगा है। जोशीमठ के खतरनाक में, दुकान,होटल वगैरह ढहाए जा रहे हैं। बिना नोटिस,बिना पुनर्वास विध्वंस की इस कार्रवाई का जोशीमठ विरोध कर रहा है।लम्बे अरसे से जोशीमठ के लोग विकास के नाम विनाश का विरोध कर रहे हैं।
फिलहाल 678 में खतरनाक घोषित किए गए हैं,लेकिन पूरे जोशीमठ को रिहाइश का अयोग्य मन लिया गया है।जिस बिजली परियोजना के कारण यह तबाही का नजारा है,उसीको केंद्र में रखकर नए जोशीमठ का नक्शा बनाया गया है,जो बेहद खतरनाक है।विशेषज्ञ इसके भी नेस्तनाबूत होने की चेतावनी दे रहे हैं। 81 परिवार सुरक्षित स्थान पर हटा दिए गए हैं। हटाए गए लोगों को में भाड़ा बाबत चार हजार रुपए देने की घोषणा की गई है।यह तदर्थ व्यवस्था है।पूरे शहर के लोगों को खान बसाएंगे?
दार्जिलिंग और नैनीताल जैसे शहर भी संकट में हैं।जहां होटल,रिजॉर्ट और इस तरह के निर्माण अंधाधुंध हुए हैं और भूस्खलन की घटनाएं आम है।धारचूला और मुंश्यारी में भी भूस्खलन जारी है।उत्तरकाशी और टिहरी बांध क्षेत्र में दरारें देखी गई हैं। हिमालय सबसे युवा पहाड़ है और इसका विकास जारी है।यह अत्यंत संवेदनशील है।दूसरी ओर पूरा हिमालय क्षेत्र भूकंप की दृष्टि से अति संवेदनशील है।इसी के तहत टिहरी बांध और बिजली परियोजनाओं, ऑल वेदर रोड का विरोध दशकों से किया जाता रहा है,जिसकी अभितक सुनवाई नहीं हुई है।
कितने शहरों और कितने गांवों के लोगों को सुरक्षित क्षेत्र में हटा सकती है भारत सरकार? आपदा पीड़ितों का पुनर्वास का क्या हुआ और आगे क्या हो सकता है?
मुख्यमंत्री खुद राहत कार्य की देख रेख कर रहे हैं।लोगों के उनसे लिपटकर रोने और उनके भरोसा दिलाने की तस्वीरें वायरल की जा रही हैं। क्या यही है आपदा प्रबंधन?दावा यह है कि प्रधानमंत्री पल पल की खबर ले रहे हैं। बांग्ला के सबसे बड़े अखबार दैनिक आन्नदबाजार पत्रिका ने जोशीमठ संकट के लिए सीधे तौर पर प्रधानमंत्री और उत्तराखंड सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। ऑल वेदर रोड प्रधानमंत्री का प्रकल्प है तो विकास का ताजा रोडमैप मुख्यमंत्री की है,जिसे प्रधानमंत्री ने हरी झंडी दे दी है।केदारनाथ आपदा से दोनों सरकारों ने कोई सबक नहीं सीखा है। बद्री केदार,गंगोत्री और यमुनोत्री क्षेत्र के विकास के नाम पर विध्वंसक गतिविधियां तेज हैं और इन चार धामों के राजनीतिक इस्तेमाल में देश के प्रधानमंत्री सबसे आगे हैं। उनके केदार बद्री यात्रा उत्सव से पहाड़ में श्रद्धालुओं के साथ कारपोरेट कंपनियों की बढ़ आ गई है।
जिस बिजली परियोजना को जोशीमठ की तबाही का जिम्मेदार बताया जा रहा है,उसमें दो साल पहले बड़ी दुर्घटना हो चुकी है।मीडिया ने इसे क्लीन चिट जारी कर दिया है।इस पर तुर्रा यह कि हाल में उत्तराखंड सरकार ने बिजली परियोजनाओं में पूंजी निवेश के लिए कंपनियों को कायदा कानून में खुली छूट दे दी है।
जोशीमठ या ज्योतिरपीठ भारत में हिंदुओं के शंकराचार्य पीठों में प्रमुख है। अलकनंदा किनारे बसे जोशीमठ में आठवीं सदी में शंकराचार्य ने पहला मठ बनाया था। जाड़े में बद्रीनाथ की गद्दी जोशीमठ में विराजमान होती है,जहां नरसिंह मंदिर में उनकी पूजा होती है।बद्रीनाथ, औली और नीति घाटी नजदीक होने की वजह से जोशीमठ एक प्रमुख पर्यटन स्थल भी है। त्रिशूल पर्वत की ढलान पर बसे जोशीमठ की भूपारिस्थितिकी अत्यंत संवेदनशील है,जिसकी धज्जियां उड़ा दिए जाने से तबाही का यह मंजर है।
भारत चीन सीमा सिर्फ सौ किमी दूर है जोशीमठ से।इसलिए इसकी रणनीतिक और सैन्य दृष्टि से महत्व का मुद्दा अलग है। सीमावर्ती क्षेत्रों में प्रकृति से छेड़छाड़ की वारदातें बढ़ती ही जा रही हैं, जहां हिमालय को सबसे ज्यादा खतरा है। जोशीमठ में तो बद्री मार्ग में भी दरारें आ गई हैं। सुरक्षा के बुनियादी ढांचे को तहस नहस करने की कौन सी विकास नीति है?
जोशीमठ के लोगों का आरोप है की तपोवन विष्णुगढ़ बिजली परियोजना की 12 किमी लंबी सुरंग इस आपदा की मुख्य वजह है। परियोजना एनटीपीसी की है,जिसने इस आरोप का खण्डन किया है। 1976 में महेश चंद मिश्र की रपट में यह परियोजना न रुकने पर तबाही की चेतावनी दी गई थी। यह सुरंग नदी का पानी पनबिजली केंद्र के टरबाइन तक ले जाने के लिए बनाई गई है। इसका कुछ हिस्सा जोशीमठ की जमीन के नीचे से गुजरता है।
जोशीमठ के लोगों का आरोप है कि सुरंग बनाने के लिए को धमाके किए जाते हैं,उनके कारण ही धरती के अंदर कोई प्राकृतिक जलस्रोत फट गया है और जोशीमठ जलमग्न हो रहा है।
पूंजी और बाजार के वर्चस्व में आस्था, पर्यटन, आजीविका और रोजगार से बेदखल है उत्तराखंड की जनता,जिसे विकास के नाम कायदा कानून और नीतियां बदलकर जल,जंगल जमीन से बेदखल किया जा रहा है। आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था को ध्वस्त कर देने से गांव वीरान हो रहे हैं, जहां बुनियादी सेवाओं का नामोनिशान नहीं है।
मनुष्यता और सभ्यता के लिए संजीवनी है हिमालय के जलस्रोत, जो तेजी से सूख रहे हैं। ग्लेशियर मरुस्थल में बदल रहे हैं।विकास के नाम हिमालय की भूपारिस्थितिकी को तबाह किया जा रहा है। जलवायु संकट और ग्लोबल वार्मिंग का शिकार है हिमालय।
दो ऊंची जातियों की वर्चस्व वाली सरकार,व्यवस्था और राजनीति ने उत्तराखंड की जनता को पहाड़, तराई और भाबर के नाम पर,पहाड़ी और गैर पहाड़ी के नाम पर, जाति,धर्म और भाषा के नाम पर,कुमायूं और गढ़वाल के नाम पर इतने टुकड़ों में विभाजित कर रखा है कि एकताबद्ध आंदोलन या प्रतिरोध की कोई गुंजाइश नहीं है।
ये राजनीतिक मुद्दे भी नहीं है। उत्तराखंडी अस्मिता ऊंची जातियों की अस्मिता है,जिसमें हिमालय नहीं है।इस अस्मिता राजनीति में घृणा और हिंसा,अलगाव है,लेकिन पहाड़ की भूपरिस्थितिकी,उसके पर्यावरण,जलवायु की कोई चिंता नहीं है। आम लोगों को कोई सूचना नहीं है।वे अस्मिता अंध हैं या धर्मांध। मनुष्य की रची हुई आपदा को वे प्राकृतिक आपदा समझते हैं और राहत,बचाव और पुनर्वास के लिए सरकारी खैरात पर निर्भर हैं।
अस्मिता की राजनीति में भी हिमालय,जलवायु परिवर्तन, जल जंगल जमीन,ग्लोबल वार्मिंग, आपदा और आपदा प्रबंधन कोई मुद्दा नहीं है।
जोशीमठ हिमालय की मृत्यु की चेतावनी है।
पलाश विश्वास