वनभूलपुरा बेदखली का पायलट प्रोजेक्ट

banbhoolpura haldwani
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हाईकोर्ट के आदेश पर मानवीय आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने जरूर स्टे लगा दिया है,लेकिन साथ ही सरकार से जवाब तलब भी किया है कि पुनर्वास की योजना बताएं। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि पुनर्वास के बिना इतनी बड़ी आबादी को रातोंरात बेदखल नहीं किया जा सकता।

जमीन रेलवे की है या नहीं, बनभूलपुरा के वाशिंदों के दावों पर फैसला अभी होना है।सुनवाई के बाद।हो सकता हैं कि सुनवाई लंबी चले। इतनी सी मोहलत है,बस।

सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि अदालत सिर्फ कानूनी प्रक्रिया की वैधता और सबूत के आधार पर फैसला करती है। नीतियां सरकार तय करती है।राहत अदालत नहीं,सरकार देती है और जरूरी हुआ तो सरकार कानून भी बदल सकती है। रेलवे सरकारी विभाग है। रेलवे का जमीन पर दावा,सरकारी दावा है। बेदखली के बाद खाली जमीन का सरकार क्या करेगी,यह अदालत के लिए विचारणीय नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला किसके हक में होगा,इससे बड़ा सवाल हैं कि सरकार आखिर क्या चाहती है।अतीत के बेदखली के फैसलों को देखा जा सकता है।आजादी के बाद देश के विभाजन के शिकार शरणार्थी से बहुत बड़ी तादाद विकास और कानून के नाम पर बेदखल देश के अंदर विस्थापन के शिकार शरणार्थियों की है।

बनभूलपुरा के वाशिंदों के पक्ष में न सरकार है और न मजहबी सियासत। उन्हें अल्पसंख्यक होने के कारण पहले ही अलग थलग कर दिया गया है और व्यापक जनसमर्थन उनके पक्ष में नहीं है।

आदिवासी भूगोल में बेदखली का इतिहास देखें तो इसका सबसे बड़ा कारण आदिवासियों का अलगाव है।हाल के कायदे कानून जनता को जल जंगल जमीन से बेदखली करने के पक्ष में हैं। सरकार लोक कल्याणकारी नहीं है,मुनाफाखोर हो गई है और अंध त्राष्ट्रवादी भी। निरंकुश तो वह है ही।

उत्तराखंड की सियासत का मुख्य उद्देश्य तराई,भाबर और पहाड़ से बड़े पैमाने पर बेदखली का है। इसका कारण बहुत साफ है। शहरी क्षेत्रों में ज्यादातर रिहाइश नजूल जमीन पर है और बेदखली के टारगेट लोग कमजोर या अल्पसंख्यक लोग हैं।धार्मिक, जातीय और भाषाई अल्पसंख्यक लोग। तराई में पुनर्वास के तहत बिना मालिकाना हक के लीज पर जमीन देकर जिनका पुनर्वास हुआ, जो तराई की सबसे बड़ी आबादी भी है और बड़ी संख्या में भूमिहीन मजदूर तबके के लोग हैं,असल एजेंडा इनकी बेदखली का है।

वनबुलपुरा की बहुत बड़ी आबादी अल्पसंख्यकों का है, सरकार और सियासत को उनकी बेदखली से किसी बड़े आंदोलन या प्रतिरोध का खतरा नहीं है।

अगर सुप्रीम कोर्ट पुनर्वास की शर्त पर वनभूलपुरा की बेदखली को हरी झंडी दे देती है,तो बाकी उत्तराखंड में बेदखली के बुलडोजर को रोकना मुश्किल है।

पलाश विश्वास
कार्यकारी सम्पादक
प्रेरणा-अंशु

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