13 दिसंबर को संसद के शीतकालीन सत्र के दसवें दिन तब लोकसभा में भारी अफरा-तफरी फैल गई, जब दो युवक दर्शक दीर्घा से सदन में कूद गए। इन युवाओं ने रंगीन धुएँ का केन इस्तेमाल करते हुए ‘तानाशाही नहीं चलेगी’, जैसे नारे लगाए। सांसदों ने उन्हें पकड़ लिया, उसी दौरान संसद भवन के प्रवेश द्वार के पास ट्रांसपोर्ट भवन के सामने एक युवक और एक युवती ने भी रंगीन धुएँ का इस्तेमाल करते हुए नारेबाजी की। चारों युवा मौके पर पकड़ लिए गए। यह संसद पर 2001 में हुए आतंकवादी हमले की 22वीं बरसी का दिन भी था। खालिस्तान समर्थक आतंकवादी गुरूपतवंत सिंह पन्नू ने इससे पहले 7 दिसंबर को 13 दिसंबर तक संसद में हमले की धमकी भी दे रखी थी। सुरक्षा में हुई चूक को लेकर विपक्ष लगातार संसद में हंगामा करता रहा और 21 दिसंबर को लोकसभा अनिश्चिकाल के लिए स्थगित हो जाने से पहले 146 सांसदों के निलंबन से संसद लगभग विपक्ष शून्य हो गया। इसी के मध्य देश के आपराधिक कानूनों में संशोधन के लिए तीन अति महत्वपूर्ण विधेयकों भारतीय न्याय संहिता, सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य विधेयक दोनों सदनों में पारित कर दिए गए। संसदीय लोकतंत्र की यह कैसी तस्वीर है? विपक्ष के बिना संसद में किसी भी ज्वलंत मुद्दे पर चर्चा नहीं हुई और न ही संसद की सुरक्षा में हुई इस भारी चूक पर कोई गंभीर चर्चा हो सकी।
13 दिसंबर, 2001 को पाँच आतंकवादी पुराने संसद भवन के दरवाजे तक पहुँच गए थे। तब घंटों चली मुठभेड़ में दिल्ली पुलिस के पाँच जवान समेत नौ लोग मारे गए। नए संसद भवन की कड़ी सुरक्षा व्यवस्था में अत्याधुनिक तकनीक के इस्तेमाल के दावे किए गए थे। इसके बावजूद दो युवाओं ने संसद के अंदर घुसकर धुआँ फैलाया, नारेबाजी की और सांसदों की मेज पर चलते हुए अध्यक्ष की आसंदी तक पहुँचने की कोशिश कर दी तो इसका जिम्मेदार कौन है? इस घटना में कुल छह लोग हिरासत में लिए गए, जिन पर यूपीए की सख्त धाराओं के तहत मुकदमे दर्ज किए गए हैं। जाँच मुश्तैदी से चल रही है। इस घटना के बाद ससंद का दर्शक दीर्घा बंद कर दिया गया है। सांसदों और उनके पीए के नाम से जारी होने वाले पास भी बंद कर दिए गए हैं। इसकी जवाबदेही किसकी है?
अभी तक की जाँच से इस मामले में गिरफ्तार छह आरोपी सागर शर्मा, मनोरंजन डी, नीलम, अमोल शिंदे, ललित झा और महेश कुमावत के साइको एनालिसिस टेस्ट से भी उनके किसी संगठन से जुड़े होने का पता नहीं चला और न किसी आतंकवादी संगठन का नाम सामने आया है। सिवाय इसके कि छह के छह बेरोजगार हैं। मोसाद और एफबीआई की तर्ज पर हो रही जाँच के बावजूद बेरोजगारी के अलावा कोई दूसरी वजह अभी तक सामने नहीं आई है। अभी तक की जाँच और आरोपियों के परिजनों से पूछताछ से यह बात सामने आई है कि ये सभी बेरोजगारी से निराश थे। अगर ये किसी साजिश का हिस्सा बने तो इसकी वजह भी यह बेरोजगारी है।
संसदकांड के अभियुक्त देश की विभिन्न ज्वलंत समस्याओं पर मुखर रहे हैं और सोशल मीडिया पर मोदी सरकार के कामकाज और नीतियों की आलोचना करते रहे हैं। सिर्फ मैसूर का मनोरंजन डी सोशल मीडिया पर नहीं है। वह इंजीनियर और बेरोजगार है। मैसूर के भाजपा सांसद से उसी ने संसद में प्रवेश के लिए पास हासिल किया था। ये बेरोजगार युवा फेसबुक पर भगत सिंह फैन क्लब के जरिए एक-दूसरे से अपरिचित और विभिन्न राज्यों में रहने के बावजूद जुड़े और इस घटना को अंजाम दिया। सागर शर्मा लखनऊ के हैं। नीलम हिसार की, अमोल लातूर, महाराष्ट्र का, ललित झा बिहार और महेश कुमावत राजस्थान का। वे भगत सिंह की विचारधारा मानते हैं। इनमें नीलम अंबेडकरवादी भी है, जो एम फिल करके नेट पास कर चुकी है और उसे नौकरी नहीं मिली। मनोरंजन सोशल मीडिया पर नहीं है लेकिन सबसे ज्यादा अध्ययन उसी का है।
बेरोजगारी पर अंकुश नहीं लगा और पढ़े-लिखे, दक्ष और कुशल युवाओं के लिए रोजगार सृजन नहीं हुआ तो आगे चलकर यह देश की सुरक्षा के लिए भारी खतरा बन सकता है, यह बात क्या माननीय सांसदों को समझ में नहीं आती है? सरकार को? विपक्ष को? विपक्षी गठजोड़ के नेता कांग्रेसी राहुल गाँधी ने जरूर कहा है कि इस कांड के लिए बेरोजगारी जिम्मेदार है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसके लिए दोषी हैं। क्या उनकी और विपक्ष की कोई जिम्मेदारी नहीं है? हर साल करोड़ों की तादाद में विश्वविद्यालयों और तकनीकी संस्थानों से डिग्रियां लेकर जो निकलते हैं, उनके लिए रोजगार सृजन क्या पर्याप्त है? क्या विपक्ष ने इसे मुद्दा बनाया? आरोप-प्रत्यारोप और हंगामा करके संसद को ठप करने और निलंबित होने के बजाय क्या किसी सांसद ने आरोपियों की बेरोजगारी के हवाले से रोजगार सृजन का मुद्दा उठाया है?
आजादी के बाद से अब तक राजनीति सिर्फ युवाओं का अपनी पैदलसेना के रूप में इस्तेमाल करती है। राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता युवा होंगे, आंदोलन भी युवा करेंगे। सड़क पर वे ही उतरेंगे। लाठी-गोली खाएंगे, जेल जाएंगे-लेकिन उनके रोजगार और आजीविका का सवाल किसीका सरदर्द नहीं है। न सत्तापक्ष का और न विपक्ष का। 1974 में जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति के लिए जो करोड़ों छात्र-युवा सड़कों पर उतरे, उनका क्या हुआ? साठ और सत्तर के दशक में नक्सलवादी आंदोलन में जो शहीद हुए या जिन्होंने अपनी जिंदगी गवॉ दी, उन्हें क्या मिला? उनके सपनों का क्या हुआ? पंजाब में खालिस्तानी आंदोलन और
हिंसा के बलि आखिर युवा ही थे। पूर्वोत्तर के युवाओं को ऐसे ही आग में झोंकती रही है सियासत। लेकिन बेरोजगारी के सवाल पर फिर भी विधानसभाएं और संसद मौन हैं। क्या यह देश के भविष्य के साथ न्याय है? वे आत्महत्या करते हैं, भारी पैमाने पर नशा और अपसाद के शिकंजे में हैं, आपराधिक और आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त हैं। तो यह किसकी जिम्मेदारी है?
आखिरकार जाँच का नतीजा क्या निकलेगा? क्या संसद विपक्ष के बिना चलेगी? क्या सांसदों की सुरक्षा सुनिश्चित होगी? ये सवाल ऐसे हैं, जिनके जवाब भविष्य में मिलेंगे। नई संसद बनने से सांसदों की सुरक्षा पुरानी संसद से बेहतर नहीं हुई है, यह तो मालूम हो गया। यह भी मालूम हो रहा है कि चाहे सिल्क्यारा सुरंग का मामला हो या चाहे संसद की सुरक्षा, अत्याधुनिक तकनीक फेल है। अत्याधुनिक तकनीक रोजगार सृजन के मामले में भी फेल है। वैज्ञानिक खोजों ने रोजगार सृजन किया और आजीविका को मजबूत बनाया, मनुष्य के जीवन यापन को सरल बनाया। तकनीक से विकास की उड़ान सौर्यमंडल के पार तक छलाँग लगा रही है। जीवनशैली सिरे से बदल गई है। समाज बदल गया है। लेकिन तकनीक रोजगार छीन रहा है। आजीविका भी। कृत्तिम बु(िमता का उदाहरण काफी है, जो सुरक्षा के मामले में भस्मासुर है।
रोजगार सृजन नहीं हो रहा, लेकिन रोजगार छिन रहा है। आजीविकाएं खत्म हो रही हैं। युवाओं के लिए रोजगार सृजन के बजाय नशे की उपभोक्ता संस्कृति है। भविष्य में ऐसे अवसादग्रस्त और हताश, आत्मध्वंस पर तुले बेरोजगार युवा क्या कुछ कर सकते हैं! नए संसद भवन के रंगीन
धुएँ की तस्वीरों में सबसे डरावनी तस्वीर यह है। ताज्जुब है कि न राष्ट्र नेताओं और न माननीय सांसदों ने और न ही भारतीय नागरिकों ने यह तस्वीर देखी।
संयुक्त राष्ट्र की रपट में भारत की जनसंख्या 142.9 करोड़ बताई गई है। आबादी में हम पहले नंबर पर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार कह रहे हैं कि हमारी युवा आबादी देश की आर्थिक प्रगति की गाथा लिखेगी। जनसंख्या के आँकड़ों के मुताबिक विश्व की सबसे बड़ी युवाशक्ति भारत की है। भारत की 10 से 24 साल की उम्र की आबादी 26 प्रतिशत है, जबकि चीन में इस उम्र की 18 प्रतिशत आबादी है। वर्ल्ड ऑफ स्टैटिस्टिक्स के आँकड़ांे के मुताबिक भारत की बेरोजगारी दर आठ प्रतिशत है, जबकि पाकिस्तान में बेरोजगारी दर 6.3 प्रतिशत है, चीन में बेरोजगारी दर 5.3 प्रतिशत तो अमेरिका में 3.8 प्रतिशत और आस्ट्रेलिया में 3.7 प्रतिशत।
संसद और सांसदों की सुरक्षा का सवाल बहुत बड़ा है। इस पर गौर करना बहुत जरूरी है? इसके साथ ही देश की युवा शक्ति के लिए रोजगार सृजन और बेरोजगारी की समस्याएं भी कम संवेदनशील या कम महत्वूपर्ण नहीं हैं।