इंडिया बनाम भारत! देश की आजादी के 75 साल बाद इस विषय पर व्यापक बहस हो रही है, इसे क्या माना जाए? क्या यह उतना ही महत्वपूर्ण विषय है जितना की सत्ता पक्ष और विपक्ष आपस में आक्रामक है? इंडिया बनाम भारत के बीच एक बार फिर सनातन और हिंदुओं के नाम का उल्लेख हो रहा है। देश के तमाम बुनियादी मुद्दों को दरकिनार कर इंडिया बनाम भारत ट्रेंड में है, या लाया गया है? इस पर भी हो सोचना होगा। नाम बदलने में माहिर मोदी सरकार का अपना पक्ष है और विपक्ष का अपना। इंडिया ही भारत है, तो हिंदुस्तान कहां है? नारे सुनते थे, हिंदी-हिंदू-हिंदुस्तान। यह हिंदूवादी संगठनों का चर्चित नारा है। अब हिंदुस्तान कहां रहेगा? जिस भारत को हिंदू राष्ट्र होने पर हिंदुस्तान का ख्वाब दिखाया जाता था, उसका क्या हुआ? क्या इंडिया ही भारत है? और भारत ही हिंदुस्तान है? वैसे नाम में क्या रखा है? कुछ लोग इसकी दुहाई भी दे रहे हैं। जिस देश में सारा विवाद नाम से ही हो वहां यह कहना कि, नाम में क्या रखा है? बेमानी है। देश में नाम से कुल, जाति, लिंग, धर्म सब कुछ जुड़ा हो वहां नाम पर चर्चा होना लाजमी है। इस देश के कई नाम थे आर्यावर्त, जंबूद्वीप, हिंदुस्तान, भारतखंड, भारतवर्ष आदि-आदि। क्या इंडिया इन्हीं नाम का पर्याय है? संविधान के अनुच्छेद एक में लिखा है इंडिया दैट इज भारत! यानी इंडिया जो भारत है। फिर बहस किस बात की? जब संविधान निर्माताओं ने इंडिया और भारत दो नाम दिए हैं तो, किसी एक नाम पर जोर क्यों? आखिर राजनीति है क्या?
यह विषय पनपा कहां से? दरअसल महामहिम राष्ट्रपति की ओर से जी-20 सम्मेलन में होने वाले रात्रि भोज के निमंत्रण पत्र में प्रेसीडेंट ऑफ इंडिया की जगह, गवर्नमेंट ऑफ भारत लिखा गया है।
यहीं से बहस शुरू हुई! भारत सरकार इंडिया को खारिज करने जा रही है और देश का नाम अब सिर्फ भारत होगा। ऐसे संकेत दिए जा रहे हैं, लेकिन क्या यह इतना आसान होगा? सरकार की ओर से बताया जा रहा है कि इंडिया औपनिवेशिक नाम है। अंग्रेजों ने भारत को इंडिया नाम दिया है, लेकिन यह तर्क उचित नहीं है। भारत का अंग्रेजी नाम इंडिया की उत्पत्ति सिंधु नदी के अंग्रेजी नाम इंडस शब्द से हुई है। जो यूनानियों द्वारा चौथी सदी ईसा पूर्व से प्रचलन में है। ब्रिटिश साम्राज्य से पहले से इंडिया नाम प्रचलित है। पुरानी अंग्रेजी में भारत का नाम इंडिया नौवीं सदी व आधुनिक अंग्रेजी में 17वीं सदी में इंडिया नाम चलन में है। विश्व स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व आज भी इंडिया नाम से होता है। 1601 में ब्रिटिश कंपनी भारत आई जिसे ईस्ट इंडिया कंपनी का नाम दिया गया। साफ है कि भारत का नाम इंडिया पहले से रहा होगा। संविधान सभा ने भी इंडिया को सर्वसम्मति शामिल किया है। इंडिया बनाम भारत विषय पर 2015 में एक मामले में सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने एक हलफनामा दिया था, उसमें कहा गया कि चूंकि इस मुद्दे पर संविधान सभा में विस्तार चर्चा होने के बाद इंडिया को अनुच्छेद एक में शामिल किया गया है इसलिए कोई बदलाव की जरूरत नहीं है। लेकिन अब केंद्र सरकार फिर भारत नाम होने के पक्ष में हैं। अब तक संविधान का हवाला देकर नाम बदलने का विरोध कर रही मोदी सरकार ने अचानक देश का नाम सिर्फ भारत रखने का मसाला क्यों उठाया है? यह कोई राजनीतिक स्टंट है या वास्तव में सरकार इस विषय पर देश में व्यापक बहस करवाना चाहती है? विपक्षी गठबंधन का नाम इंडिया यानी इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इंक्लूसिव रखा गया है। क्या विपक्षी गठबंधन को खारिज करने के लिए सत्ता पक्ष का यह पैंतरा है? सवाल बड़ा यह है कि नाम बदलने से क्या देश की तकरीर बदलेगी? क्या इंडिया बनाम भारत चुनावी हथकंडा है? या वास्तव में नाम बदलने की जरूरत है? इंडिया रहे, भारत रहे या हिंदुस्तान रहे, क्या देश के आखिरी व्यक्ति तक सरकार पहुंच पाएगी? क्या इंडिया यानी भारत की सूरत-ए-हाल बदल पाएगी? सोचिए…….