आजकल बहुत शोर मचा है। आधुनिक भारतीय स्त्री ऐसी, आधुनिक भारतीय स्त्री वैसी… पर क्या टटोल कर देखा है कभी किसी ने उस आधुनिक स्त्री का मन? क्या चाहती है वो?
क्या पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित होकर बेतुके कपड़े पहनना, बेपरवाह घूमना- फिरना, धूम्रपान करना, चरित्रहीनता, पैसे, जेवर और जमीन जायदाद के लिए झगड़े?
नहीं, शायद ये सब तो स्त्री कभी चाहेगी ही नहीं।
वो तो चाहती है बस, थोड़ी-सी आजादी उस घूघँट से, जिसमें से उसे कुछ दिखाई नही देता और वो अक्सर ठोकर खाकर गिर जाती। वैसे उसे सिर पर पल्लू रखकर बड़ों का सम्मान करना बेहद पसंद है।
वो चाहती है थोड़ी-सी आजादी अपने विचारों को अभिव्यक्त करने की, अपने मन की कहने की। वो चाहती है, उसकी बात को भी सुना और समझा जाए, उसके विचारों और बात को भी महत्व दिया जाए। वैसे वो कभी भी बेवजह बहस नहीं करना चाहती। बस, तर्क-वितर्क करके दूसरे विचारों को भी समझना चाहती है और सही बातों का अनुकरण भी करना चाहती है। उसे आपके विचारों को मान-सम्मान देना भी बहुत अच्छा लगता है।
वो चाहती है कि जब यह शरीर उसका है तो इस पर कौन-सा कपड़ा पहना जाए, उसकी आजादी। क्योंकि उससे बेहतर कौन जान सकता है कि उसे किस कपड़े को पहनने पर आराम महसूस होता है। बस, अपना वही थोड़ा-सा आराम चाहती है वो। वैसे उसे साड़ी पहन कर भारतीय संस्कृति की पहचान बनना और अपने पति को अच्छा लगना बहुत भाता है।
वो चाहती है कि पूरे दिन वो अकेली सिर्फ रसोई में ना लगी रहे, परिवार के सभी लोगों के लिए उनकी पसंद के विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाने और उन्हें खिलाने में।
वो तो बस इतना चाहती है कि कोई उसकी भी मदद करे रसोई में और वो कभी-कभी अपनी पसंद से कोई नया व्यंजन बनाए और उसे प्यार से सबको खिलाए।
उसे जब भूख लगी हो, तब वो भी खाना खा सके, ना कि परिवार के सभी सदस्यों के खाना खाने के बाद ही उसे खाने को मिले। वैसे उसे सबके लिए प्यार से उनकी पसंद के व्यंजन बनाना भी बहुत अच्छा लगता है। बस, तब कोई खाकर ये कह दे, ‘‘तुम्हारे हाथों में जादू है, कितना अच्छा खाना बनाती हो!’’
आधुनिक स्त्री आजादी चाहती है, पर उसे अपनी मर्यादा पता है। वो उड़ना चाहती है, पर अपनी सीमाओं में। वो पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलना चाहती है, पर यह कदापि नहीं चाहती कि कोई पुरुष उसे गलत निगाहों से देखे। वो सहकर्मी पुरुषों के साथ बैठकर उन सभी विषयों पर बात करना चाहती है, जो दैनिक और सामाजिक हैं, पर गंदे मजाक, कटाक्ष और व्यंगों का हिस्सा नहीं बनना चाहती है।
वो चाहती है कि उसको मान-सम्मान मिले, ना कि पुरुष प्रधान समाज के नाम पर शारीरिक-मानसिक शोषण, कष्ट और तनाव।
वो चाहती है संबंधों को जीना, पर नहीं चाहती कि कोई उससे जबर्दस्ती करे। वो चाहती है कि जब उसका पति भी उससे प्रेम करे, तो उसमें उसकी भी सहमति हो, ना कि जबर्दस्ती या सिर्फ शादी की जरूरत।
वो हर उस पल को जीना चाहती है, जिसमें प्रेम हो ताकि सब कुछ मधुर हो-मीठा हो, जिसकी यादें समस्त जीवन को सुवासित करती रहे।
वो आभूषण, सुंदर और मँहगे वस्त्र, धन-दौलत नहीं पाना चाहती। वो तो बस, पाना चाहती है दकियानूसी-खोखले विचारों और कुरीतियों से छुटकारा, बराबरी का स्थान और स्वभिमान के साथ जीना।