” जश्न-ए-आजादी पर आज भी हावी है विभाजन का मातम “
आखिर कैसा था बंटवारे का मंजर???,
कैसे लोगों ने अपने घर, जमीन और जमीर को छोड़कर पलायन किया???,
क्या होता है रिफ्यूजी होने का दर्द???
क्यों न इस स्वतंत्रता दिवस पर हम ऐसे भुगतभोगियों और पीड़ितों के बीच जायें जिन्होंने विभाजन का खौफनाक दौर जिया है???
जो आज हैं कल नहीं होंगे, फिर कैसे उनकी दास्तान सुनोगे???
दोस्तों! तब के बच्चे आज बुजुर्ग हैं। उनकी आपबीती दर्ज होनी ही चाहिए।
तो मित्रों! इस आजादी हम उन बुजुर्गों से मिलें जिन्होंने जीवन का वो भयावह दौर देखा है। उनके अनुभवों को साझा भी करें।
शुक्रिया ।
रूपेश कुमार सिंह
दास्तां-ए-विभाजन 1947 (भाग – एक)दास्तां-ए-विभाजन 1947 (भाग – दो)