पड़तालः ऊधम सिंह नगर रक्षा समिति आन्दोलन 1997-2000 (भाग-चार)

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सत्ता में वर्चस्व के लिए प्रायोजित था रक्षा समिति का आन्दोलन

नेतृत्वकारियों पर आर्थिक गवन का आरोप भी लगा- 

1999 में 12 फरवरी से 22 फरवरी तक नादेही(जसपुर) से मेलाघाट(खटीमा) तक जनपद में पद यात्रा निकाली गयी। यात्रा का नेतृत्व सपा नेता राजेश शुक्ला  कर रहे थे। जानकार बताते हैं कि उस दौरान आन्दोलन को तमाम बड़े किसान नेताओं व व्यवसायियों ने खूब चंदा दिया। हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में वाद दाखिल करने के लिए लाखों रूपये एकत्र हुए। नेतृत्वकारियों पर आर्थिक गवन का आरोप भी लगता रहा है। सबसे बड़ी बात यह है कि नेतृत्वकारियों द्वारा आय-व्यय का कोई ब्यौरा सार्वजनिक नहीं किया गया। इसको लेकर भी कई बार आपस में तना-तनी हुई। बताया जाता है कि पंजाब और लखनऊ के बड़े नेताओं ने भी आन्दोलन जारी रखने के लिए खूब फांइनेंस किया।

राज्य गठन से पूर्व हल्द्वानी-रूद्रपुर, काशीपुर, खटीमा तीन विधानसभा क्षेत्र तराई में थे। काशीपुर में के सी सिंह बाबा, खटीमा में यशपाल आर्या कांग्रेस के विधायक थे। हल्द्वानी-रूद्रपुर से तिलक राज बेहड़ भाजपा के विधायक थे। दो विधायक पर्वतीय होने के कारण भी उनके क्षेत्र में आन्दोलन ज्यादा विस्तार नहीं पा सका। चूंकि भाजपा को राज्य बनाने का श्रेय लेना था, इसलिए भाजपा आन्दोलन के खिलाफ थी। लेकिन तराई में भाजपा नेता रक्षा समिति के साथ थे। 2000 के प्रारम्भ में कांग्रेस नेता एन डी तिवारी ने चैंकाने वाला बयान दिया। जिसका रक्षा समिति ने तो स्वागत किया, लेकिन पहाड़ में तीखा विरोध हुआ। तिवारी ने कहा, ’’ उत्तराखण्ड के साथ मझौला, पीलीभीत, बहेड़ी, बिलासपुर व ठाकुरद्वारा का एरिया शामिल करना चाहिए। ’’ उनका तर्क था, ’’ऐसा करने से राज्य की 6 शुगर मिलो को गन्ना मिलता रहेगा।’’

प्रकाश सिंह बादल ने पहले ही अटल सरकार से कर ली थी सांठ-गांठ-

2000 आते-आते आन्दोलन जमीन पर लगभग समाप्त हो चुका था। लेकिन सियासी गलियारे में इसकी गूंज बरकरार थी। प्रकाश सिंह बादल उस समय पंजाब के मुख्यमंत्री थे। बताया जाता है कि वो आन्दोलन को लीड भी कर रहे थे। राष्ट्रीय स्तर पर उन्होंने तमाम नेताओं को अटल सरकार पर दबाव बनाने के लिए राजी किया। ऊधम सिंह नगर की जनता की राय जानने के लिए केन्द्र सरकार द्वारा कमेटी का गठन किया गया। जिसमें उत्तर प्रदेश के तत्कालीन भाजपा के मुख्यमंत्री राम प्रकाश गुप्ता, पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल, तत्कालीन रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडीज को शामिल किया गया। यह कमेटी सितम्बर 2000 में पंतनगर आयी जरूर, लेकिन रिपोर्ट रक्षा समिति के पक्ष में नहीं दी गयी। जानकार बताते हैं कि कमेटी आन्दोलनकारियों को शान्त करने के लिए एक शिगूफा मात्र थी। दरअसल प्रकाश सिंह बादल ने पहले ही अटल सरकार से सांठ-गांठ कर ली थी।

राज्य गठन के फैसले के साथ रक्षा समिति का आन्दोलन बिना बताये हो गया समाप्त- 

केन्द्र में गठबंधन की भाजपा सरकार थी। अकाली दल के नौ सांसद थे। रक्षा समिति के आन्दोलन की आड़ में बादल ने अपने पुत्र सुखवीर सिंह बादल को क्रेन्दीय मंत्री व दो अन्य सांसदों को केन्द्रीय राज्य मंत्री बनवा लिया। इसके अलावा पंजाब की राजनीति में गहरी दखल रखने वाले नेता सुरजीत सिंह बरनाला को एडजस्ट करना भी प्रकाश सिंह बादल के लिए बड़ी चुनौती थी। उन्होंने अटल से भीतर खाने  बात करके सुरजीत सिंह बरनाला को उत्तराखण्ड का पहला राज्यपाल भी नियुक्त कराया। इसके बदले में बादल ने रक्षा समिति के आन्दोलनकारियों को शान्त कराने की जिम्मेदारी ली और पूरी की। 9 नवम्बर 2000 को राज्य गठन के फैसले के साथ रक्षा समिति का आन्दोलन बिना बताये समाप्त हो गया। अगुवा नेता भाजपा-कांग्रेस में जगह तलाशने लगे। इन सबके बीच प्रशासन के द्वारा लादे गये मुकदमों को आन्दोलनकारी 2014 तक भुगतते रहे। हालांकि 2002 में एन डी तिवारी ने मुख्यमंत्री बनने के बाद अधिकांश मुकदमे वापस ले लिये। कुछ रह गये जो धीरे-धीरे 2014 तक अदालत से बरी हुए।

समाप्त……………………………….

-रूपेश कुमार सिंह09412946162
पड़तालः ऊधम सिंह नगर रक्षा समिति आन्दोलन 1997-2000 (भाग-एक)
पड़तालः ऊधम सिंह नगर रक्षा समिति आन्दोलन 1997-2000 (भाग-दो)
पड़तालः ऊधम सिंह नगर रक्षा समिति आन्दोलन 1997-2000 (भाग-तीन)

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