कोलकाता यात्रा से•••
कोलकाता में युवाओं के बैठने के “अड्डे” सी0 पी0 एम0 के जमाने में “क्लब” बनें। क्लब पठन-पाठन, शारीरिक दक्षता, मनोरंजन, थियेटर, स्वास्थ्य, शिक्षा, सामाजिक और धार्मिक गतिविधियों के केंद्र थे। हर बड़े मोहल्ले में क्लब का विस्तार हुआ। शहरों के नजदीक मोहल्ले और कस्बों में क्लब बहुत सुदृढ व आलीशान हुए। धीरे-धीरे वामपंथी विचारधारा के गढ़ बने और बाद में अराजकता के अड्डे। मतलब जहाँ से शुरू हुए थे, वहीं आकर जम गये। 25-30 साल में वामपंथी दिशानिर्देश के बावजूद क्लब क्यों पतित हुए, यह महत्वपूर्ण सवाल है।
आज क्लब के नाम पर खण्डहर में तब्दील होती बिल्डिंग हैं, लाइब्रेरी हैं, लेकिन किताबें नहीं, कहीं किताबें हैं तो पढ़ने वाले नहीं, टूटी फूटी कुर्सियां कौने में धूल फांक रहीं हैं। सामान तितिरबितिर है। एक कमरे में लड़के सिगरेट पी रहे रहे हैं, और कैरम खेल रहे हैं। बगल के कमरे में दो नौजवान बच्चों को चित्रकला के गुण सिखा रहे हैं। इस दौर में जब क्रियेशन कथित राष्ट्र भक्ति बन गयी हो, तो इन नौनिहालों का कुछ मन माफिक रचनात्मक करना आशा की एक किरण दिखाता है। स्थानीय लोगों ने बताया कि “अब क्लब का कांसेप्ट बदल गया है, कभी कोलकाता के क्लब नयी नयी, विविधता पूर्ण गतिविधियों के केंद्र थे, आज अधिकांश बंद हैं या बदहाल हैं। पहले राज्य सरकार कुछ पैसा सालाना क्लब को देती थी, लेकिन पिछले पांच साल से वो भी बंद है। पहले क्लब में एक डाक्टर तीन घंटे के लिए नियमित बैठता था। बच्चों को पढ़ाने की व्यवस्था थी। लेकिन अब वैसा कुछ नहीं है। क्लब अपना अस्तित्व खो रहे हैं।”
हां, कोलकाता की राजनीतिक खींचातानी में बचे खुचे क्लब, दलों के बर्चस्व की आग में भुन रहें हैं। पहले टीएमसी और वाम पार्टी आमने-सामने थीं, लेकिन अब नये सिरे से आर0 एस0 एस0 और भाजपा ने क्लबों पर कब्जा जमाना शुरू कर दिया है। जानकारी हुई कि कई जगह क्लब में तो आर0 एस0 एस0 की शाखाएं भी संचालित हो रही हैं। बड़ा सवाल यह है कि जिस राज्य में तीस साल वामपंथी दलों का शासन रहा हो, वो राज्य इतना आक्रामक, हिंसक, अस्थिर, पिछड़ा, गरीब, असुरक्षित और असंवेदनशील कैसे हो सकता है??? सवाल और भी बहुत हैं, लेकिन जवाब देने को कोई तैयार नहीं है।
रूपेश कुमार सिंहस्वतंत्र पत्रकार