…अभी मैं किस तरह मुस्कराऊँ ?
–रूपेश कुमार सिंह
दिनेशपुर मेरा अपना कस्बा। यहां का कण-कण बसा है मेरे रोम-रोम में। खेत-खलियान, नहर-तालाब, भाषा-बोली, नगर-बाजार, रहन-सहन, खान-पान, मिलना-जुलना, आबोहवा, तीज-त्योहार, मन-मुटाव, लोगों का परस्पर प्रेम हर चीज में पूरी तरह घुला-मिला हूँ। कस्बे की छोटी सी कामयाबी भी बड़ी खुशी देती है और क्षति गहरा कष्ट पहुँचाती है। 30 वर्षीय भुवन विश्वास को मैंने साल दर साल बढ़ते हुए देखा है। अचानक उसकी आत्महत्या की खबर ने मुझे भीतर से हिला दिया। उसकी बड़ी बेटी पांच साल की है, छोटी अभी सातवें माह में चल रही है। पत्नी के साथ खुशी-खुशी जीवन की गाड़ी चल रही थी। सिडकुल की एक फैक्ट्री में आठ-दस हजार की नौकरी से परिवार पल रहा था। लेकिन एक साल पहले आर्थिक मंदी के चलते उसे नौकरी से हाथ धोना पड़ा। कुछ दिन इस उम्मीद में गुजरे कि कम्पनी में वापसी हो जाएगी। लेकिन साल बीत गया, न तो कम्पनी में वापसी हुई और न ही कहीं और काम मिला। पिता की किराने की दुकान पर बैठना शुरू किया, लेकिन परिवार का क्लेश और बेरोजगारी का तनाव बढ़ता ही गया। 15 जनवरी को भुवन ने फांसी लगाकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली।
ठीक चार दिन बाद 19 जनवरी को मेरे जिले ऊधम सिंह नगर के मुख्यालय रूद्रपुर के ट्रांजिट कैम्प में 20 वर्षीय कुन्दन हाल्दार ने भी बेरोजगारी के चलते अपने जीवन को खत्म कर लिया। कुन्दन भी सिडकुल की एक कम्पनी में मजदूर था और लगभग आठ माह से बेरोजगार चल रहा था। 20 जनवरी को निकट के गाँव कालीनगर से भरत मण्डल किसी काम के सिलसिले में मुझसे मिलने आफिस आया। एक जमाने में भरत को मैंने दसवीं तक पढ़ाया भी है। सो उससे खुलकर बात हो जाती है। सात माह पहले तक वह अशोक लीलैंड में सीनियर हेल्पर के तौर पर नौकरी करता था। 12-13 हजार रुपये महीने मिलते थे। सात माह से घर पर खाली बैठा है। कम्पनी वाले अब बुलाएंगे, ऐसी उम्मीद नहीं है। थोड़ी बहुत खेती-बाड़ी है और अभी शादी नहीं की है, तो जैसे-तैसे जीवन घिसट रहा है। भरत ने बताया कि उसके साथ लगभग तीन सौ पचास से ज्यादा मजदूरों को एक साथ कम्पनी से बाहर का रास्ता दिखाया गया था।
21 जनवरी के दैनिक जागरण के हवाले से पता चला कि सिडकुल की शिरडी प्लाइवुड कम्पनी में बीस दिन पहले 28 मजदूरों को एक माह का अतिरिक्त वेतन देकर बाहर कर दिया गया था। विरोध करने पर 20 जनवरी को 80 अन्य मजदूरों को काम से हटा दिया। इधर सिडकुल के सेक्टर 11 में बजाज मोटर्स लिमिटेड कम्पनी भी लगातार अपने वर्कर्स की छंटनी कर रही है। परमामेंट श्रमिकों को भी टर्मिनेट किया जा रहा है। जिसके खिलाफ आन्दोलन चल रहा है। वहीं सिडकुल में दीर्घकालिक मज़दूर आंदोलनों में से एक माइक्रोमैक्स(भगवती प्रोडक्ट लिमिटेड) के मज़दूर भी 27 दिसंबर 2018 से गैरकानूनी छटनी और ले-ऑफ के ख़िलाफ़ आंदोलनरत है। बता दूँ कि सिडकुल में लगभग चार सौ से ज्यादा कम्पनियां पंजीकृत हैं, लेकिन फिलहाल 70-80 प्लांट भी उत्पादन नहीं कर रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक पिछले एक साल में सिडकुल में तमाम कम्पनियों से लगभग छः हजार से ज्यादा कुशल और अकुशल कामगारों को रोजगार से हाथ धोना पड़ा है। मैं दिनेशपुर के जिस भी गांव में जाता हूँ, वहाँ खाली बैठे बेरोजगारों के समूह दिख जाते हैं। कोई तीन माह से घर पर बैठा है, तो कोई आठ माह या एक साल से बेरोजगार भटक रहा है। पिछले एक साल से बड़े पैमाने पर कंस्ट्रक्शन का काम धीमा पड़ा है। जिससे बड़ी संख्या में मजदूरों और राजमिस्त्रियों के हाथ खाली हुए हैं। खेती पहले से ही घाटे का सौदा है। छोटे किसान खुद खेतिहर मजदूर बन गये हैं।
कुल मिलाकर मेरा क्षेत्र इन दिनों भयंकर बेरोजगारी की मार झेल रहा है। मैं पूरे देश की बात क्या करूँ, बेरोजगारी के कारण युवाओं को मरते हुए अपने इर्द-गिर्द देख रहा हूँ। लोग परेशान हैं, लेकिन विकल्प किसी के पास नहीं हैं। विकास कार्य ठप्प हैं। मुख्य सड़कें भी टूट कर गड्ढों में तब्दील हो चुकी हैं। सड़क हादसों में आम जनता मर रही है। विकास कहाँ हो रहा है, दिखता नहीं? नौजवानों को रोजगार क्यों नहीं मिल रहा है, कोई जवाब देता नहीं? लोगों के जीवन से खुशहाली क्यों छिन रही है, बताये कौन? अपराध का ग्राफ एकाएक क्यों बढ़ रहा है, कारण खोजे कौन? मेरे क्षेत्र की बेरोजगारी, समस्याओं से राज्य और केन्द्र सरकार को क्या लेना-देना, वह तो अभी सी0ए0ए0, एन0आर0सी0, पाकिस्तान, कश्मीर और हिन्दू-मुस्लिम करने में लगी हुई है।
मेरा सीधा सवाल है, सरकार जी बताओ, मेरी इस उपजाऊ तराई की जमीन पर बेरोजगारी का यह आलम क्यों? रोजगार के लिए नौजवानों को तरसना पड़े क्यों? काम छिनने पर मेरे क्षेत्र के युवा आत्महत्या कर रहे हैं, जिम्मेदार कौन? तमाम फैक्ट्रियों में मजदूर आन्दोलन करने को बाध्य हैं, क्यों? मेरे क्षेत्र में किसान, मजदूर, छोटे व्यापारी, आम लोग परेशान क्यों हैं? है कोई जवाब?
दोस्तों! खबर है कि मेरे राज्य में दूरस्थ जनपद पिथौरागढ़ के चार और सरकारी अस्पताल बंद होंगे। सैकड़ों स्कूलों पर तो पहले ही ताला लग चुका है। जिला अस्पताल में मरीजों की बाढ़ है, लेकिन उन्हें देखने के लिए न तो उचित संख्या में डाक्टर हैं और न ही दवाएं। फिर भी सरकारी अमला और भाजपा के नेता मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत को अब तक का सबसे शानदार मुख्यमंत्री साबित करने में लगे हैं। उन्हें अजेय मुख्यमंत्री बताया जा रहा है। जबकि हकीकत इससे जुदा है। पिछले तीन साल में उत्तराखण्ड ठहर सा गया है। कोई माने या न माने, उत्तराखण्ड के पहाड़, भावर, तराई के किसी भी गाँव में चले जाइए, ईमानदारी से पड़ताल कीजिए, लोगों से बात कीजिए, उनकी तकलीफों का अंदाजा हो जाएगा।
दोस्तों! देश की स्थिति भी दयनीय है। एक आधिकारिक आँकड़े के मुताबिक साल में 26085 युवा आत्महत्या कर रहे हैं। 2018 में प्रतिदिन औसतन 35 बेरोजगारों और स्वरोजगार से जुड़े 36 लोगों ने खुदकुशी की है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के खुदकुशी के आँकड़े चौंकाने वाले हैं। आर्थिक विषमता को उजागर करती वल्र्ड इकोनाॅमिक फोरम (डब्ल्यूईएफ) की रिपोर्ट बताती है कि भारत में कुल 63 अरबपतियों की संपत्ति देश के पिछले साल के बजट से भी ज्यादा है। पिछले वित्त वर्ष के लिए सरकार ने 24.42 लाख करोड़ रुपये का बजट पेश किया था। इतना ही नहीं देश की एक फीसदी आबादी की कुल संपत्ति 70 फीसदी निचले तबके की कुल सम्पत्ति के चार गुना से भी ज्यादा है। मतलब साफ है कि चंद लोगों के पास देश की आर्थिक सम्पदा है। देश में अमीर और गरीब की खाई लगातार बढ़ रही है। यह आर्थिक असमानता देश को गर्त में ले जाएगी। देश के संसाधनों और संपत्ति पर आम जनता का अधिकार नहीं है। देश को आम जनता का वोट नहीं, बल्कि चंद पूँजीपतियों के घराने चला रहे हैं।
घोर असमानताओं, तमाम समस्याओं के बीच कोई चाहे देश के 71 वें गणतंत्र दिवस पर कितना भी जश्न मनाये, नाचे-गाये, लेकिन मैं नहीं मुस्करा सकता। जब ‘तंत्र’ ‘लोक’ पर हावी हो और बोलने की आजादी पर भी पहरा बैठा दिया जाए, तो ‘‘अभी मैं किस तरह मुस्कराऊँ?’’
आज़मी के शब्दों में-
‘‘अभी वही है निज़ामे कोहना, अभी तो जुल्मो सितम वही है
अभी मैं किस तरह मुस्कराऊँ, अभी तो रंजो अलम वही है
अभी वही हैं उदास राहें, वही हैं तरसी हुई निगाहें
सहर के पैगम्बरों से कह दो, यहां अभी शामे-ग़म वही है’’
-9412946162