*अनुभूति*
कहने पर तुम्हारे
बारंबार/भरोसा जताने पर,
उतरा था मैं
तलाशने को
खूबसूरत सत्य!
दर्द को बर्दाश्त करो
समर्पण को महसूस करो
जीवन की रूहानियत को करो आत्मसात
तुम्हें होगी मेरे प्रेम की अनुभूति!
बिना शर्त विश्वास करो
भाव में एहसास करो
गहराई में उतरो मुझसे करो मुलाकात
तुम्हें होगी मेरे कोमलतम की अनुभूति!
परवाह
सेवा
त्याग
क्षमा
और निस्वार्थ
प्रेम की बात कहकर/तुमने
भावनात्मक सुरक्षा का किया था वादा
देखो न•••
मैं भी यकीन कर बैठा
तुम्हारी मृगनैयनी आँखों पर
और डूब गया प्यार के
अथाह समुंदर में!
मैंने अपनी अंगुलियों से
तुम्हें छूने की कोशिश की
जानने को तुम्हारी अनुभूति/तुम्हारा सत्य
ये क्या••••मेरी अंगुलियां
तुम्हारी देह के आर-पार हो गयीं
फिर भी मेरा हाथ तुम्हारी
छुबन से है महरुम!
परतें खुलीं जब परत दर परत/तो
मैं स्तब्ध हूँ!
अब मैं अपनी छुबन से भी हूँ बेखबर।
–रूपेश कुमार सिंह