सत्ता में वर्चस्व के लिए प्रायोजित था रक्षा समिति का आन्दोलन !
जानकार बताते हैं कि इस आन्दोलन को जनता का व्यापक समर्थन हासिल नहीं था। इसलिए यह स्वतःस्फूर्त न होकर प्रायोजित लगता था। सिख और पूर्वांचली समाज के नेता ही इसके अगुवा थे। मुस्लिम, बंगाली, जनजाति, पर्वतीय समाज के नेताओं ने आन्दोलन से दूरी बनाये रखी। हालांकि कांग्रेस, सपा, बसपा, सीपीएम, किसान यूनियन के नेता खुलकर सड़क पर थे, लेकिन आम जनता को अपने पक्ष में करने में नाकामयाब रहे। भाजपा के तत्कालीन विधायक तिलक राज बेहड़ सहित तराई के तमाम भाजपा नेता अन्दर खाने ऊधम सिंह नगर को उत्तराखण्ड से अलग करने के पक्ष में थे।
रूद्रपुर था आन्दोलन का केन्द्र-
जनपद का मुख्यालय रूद्रपुर आन्दोलन का केन्द्र था। यहां व्यापक असर भी था। इसके अलावा किच्छा, सितारगंज, गदरपुर, बाजपुर, काशीपुर, जसपुर में आन्दोलन का जोर रहता था। पंतनगर, खटीमा, नानकमत्ता, दिनेशपुर, गूलरभोज, शक्तिफार्म में मिली जुली प्रतिक्रिया रहती थी। सरदार प्यारा सिंह, जीत सिंह बिष्टी, स्वामी नाथ चतुर्वेदी, सरदार सुख्का सिंह, ठाकुर जगदीश सिंह, तजिन्दर सिंह विर्क, यशवंत मिश्रा, प्रीतम सिंह संधू, सेवा सिंह, मोहर सिंह, प्रेम सिंह सहोता, कामरेड मंगल सिंह, विवेकानन्द विद्रोही आदि नेता जनपद में रक्षा समिति के लिए सक्रिय थे। हालांकि राज्य बनते ही तमाम नेताओं ने भाजपा-कांग्रेस में ही अपनी गोटी फिट कर ली।
आन्दोलन के तेज होते ही एकाएक सपा का दबदबा बढ़ता गया। प्रारम्भ में किसानों द्वारा शुरू किया गया आन्दोलन जल्द ही समाजवादी पार्टी का आन्दोलन बन गया। राजेश शुक्ला आन्दोलन के संयोजक बन गये थे। हालांकि सर्वदलीय एकता दिखाने के लिए रक्षा समिति का बैनर ही इस्तेमाल किया गया। यह बात 1999 के संसदीय चुनाव से भी सिद्ध होती है। कांग्रेस (ई) से एन डी तिवारी व भाजपा से बलराज पासी चुनाव मैदान में थे। सपा से पैराशूट उम्मीदबार उतारा गया। मशहूर निर्माता निर्देशक मुजफ्फर अली चुनाव लड़े। मुजफ्फर अली को रक्षा समिति का भरपूर समर्थन था। आन्दोलन के चेहरे के तौर पर अली को चुनाव लड़ाया गया। लेकिन घोर निराशा हाथ लगी। जनता ने रक्षा समिति के प्रत्याशी को नकार दिया। तिवारी ने पासी को एक लाख बारह हजार वोटों से पराजित किया। अली की जमानत जब्त हो गयी। उन्हें मात्र 63 हजार वोट मिले। इससे रक्षा समिति के आन्दोलन को जबर्दस्त धक्का लगा। बुरी तरह हार ने साबित किया कि जनता आन्दोलन के साथ नहीं है। समिति में टूटन भी हुई। मुलायम सिंह की फटकार भी नेतृत्वकारियों को झेलनी पड़ी। शीर्ष नेताओं का समर्थन भी कम होने लगा।
सीपीएम नेता हरकिशन सिंह सुरजीत का भी था आन्दोलन को समर्थन-
1998 का साल रक्षा समिति के आन्दोलन का स्वर्णिम काल था। 20 मई 1998 से जनपद के सभी मुख्यालयों में क्रमिक अनशन व भूख हड़ताल शुरू की गयी। कई बार जनपद बंद का भी आहवान हुआ। आन्दोलन हिंसक भी हुआ। बहुत सी जगह राज्य समर्थक और रक्षा समिति के लोगों के बीच हाथापाई और हिंसा हुई। इस बीच तत्कालीन केन्दीय मंत्री बलवंत सिंह रामूवालिया, पंजाब के सांसद सिमरन जीत सिंह मान, जग देव सिंह तलबंडी ने तराई में कई रैलियां व सभाएं कीं। 1998 के मध्य में ही सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव और सीपीएम नेता हरकिशन सिंह सुरजीत ने रूद्रपुर के गांधी पार्क में आम सभा करके केन्द्र की राजनीति में भूचाल ला दिया था। 1999 के प्रारम्भ में किसान यूनियन के नेता महेन्द्र सिंह टिकैत ने भी रूद्रपुर आकर रक्षा समिति का भरपूर समर्थन किया। अपना लोक दल के नेता अजीत सिंह ने केन्द्र व राज्य सरकार पर आन्दोलन के समर्थन में जबर्दस्त दवाब डाला।
अगले भाग में जारी……………………
-रूपेश कुमार सिंह09412946162
पड़तालः ऊधम सिंह नगर रक्षा समिति आन्दोलन 1997-2000 (भाग-एक)
पड़तालः ऊधम सिंह नगर रक्षा समिति आन्दोलन 1997-2000 (भाग-दो)
पड़तालः ऊधम सिंह नगर रक्षा समिति आन्दोलन 1997-2000 (भाग-चार)