●शहीद मणींद्रनाथ के आठों भाई भी थे क्रांतिकारी
●20 जून 1934 को फतेहगढ़ जेल में भूख हड़ताल करते हुए थे शहीद ●अंग्रेज अफसर अपने मामा को उड़ाया था गोली से
● महज 35 साल में हुए शहीद
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास शानदार शहादतों से भरा है। शहादतओं का एक नायाब क्रम है। आजादी के लिए अपने प्राणों को न्योछावर करने के जुनून भरी सैकड़ों घटनाएं हैं, जो आज भी समाज को प्रेरित करती हैं। 35 साल की उम्र में शहीद हुए मणींद्रनाथ बनर्जी भी उन शानदार शहादतों की फेहरिस्त में शामिल हैं।
यूं तो बंगाल और बंगाली समाज बहुत प्रमुखता से स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय था, लेकिन कुछ शहादत बंगाल के बाहर भी बंगाली समाज के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को विशेष बनाती हैं। मणींद्रनाथ बनर्जी आजादी की लड़ाई में शहीद होने वाले ऐसे ही क्रान्तिकारी हैं।
इन्होंने काकोरी केस में क्रांतिकारी राजेंद्र लाहिड़ी को हुई फांसी की वजह से अपने मामा खुफिया विभाग के पुलिस अफसर जितेंद्र नाथ बनर्जी को गोली से उड़ा दिया था। उनके इन्हीं मामा की गवाही की वजह से राजेंद्र लाहिड़ी को फांसी हुई थी।
बनारस के प्रतिष्ठित बनर्जी परिवार में इनका जन्म 13 जनवरी 1909 को हुआ था। इनके छोटे भाई स्वतंत्रता सेनानी बसंत कुमार बनर्जी का 1947 की आजादी के बाद दिनेशपुर क्षेत्र के खानपुर नंबर 1 में पुनर्वास हुआ।
दिनेशपुर और तराई के लोगों का भी इस नाते मणींद्रनाथ बनर्जी से रिश्ता बनता है। वे 8 भाई थे और सब के सब क्रांतिकारी थे। मणींद्रनाथ क्रांतिकारियों के संगठन हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्य थे और क्रांतिकारी राजेंद्र लाहिड़ी को अपना गुरु मानते थे।
13 जनवरी 1928 को अंग्रेज अफसर अपने मामा जितेंद्र नाथ बनर्जी को बनारस के गुदौरिया में अपनी पिस्तौल से 3 गोली मार कर खत्म कर दिया। इसके लिए उन्हें 10 साल का सश्रम कारावास मिला। केंद्रीय कारावास फतेहगढ़ उत्तर प्रदेश में अपने क्रांतिकारी विचाराधीन कैदी साथियों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार के विरुद्ध उन्होंने 14 मई 1934 को भूख हड़ताल शुरू की।
तब इस जेल में क्रांतिकारी मन्मथ नाथ गुप्त और यशपाल भी कैद थे। यशपाल हिंदी के महान साहित्यकार भी हैं। भूख हड़ताल से मणींद्रनाथ की हालत लगातार बिगड़ने लगी। 36 दिन की लगातार भूख हड़ताल के बाद 20 जून 1934 को क्रांतिकारी साथी मन्मथ नाथ गुप्त की गोद में दम तोड़ दिया।
मणींद्रनाथ की मां का नाम सुनयना देवी है। उनके पिता ताराचंद बनर्जी बनारस के सुप्रसिद्ध होम्योपैथिक डॉक्टर थे। उनके दादाजी हरे प्रसन्न बनर्जी डिप्टी कलेक्टर थे, जिन्होंने 1899 में ब्रिटिश सरकार की नीतियों के विरुद्ध त्यागपत्र दे दिया और स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए।
इस तरह मनिंद्र नाथ बनर्जी का पूरा परिवार क्रांतिकारी था। 13 जनवरी को मणींद्रनाथ का जन्म दिवस है। इस अवसर पर खानपुर में उनके नाम से संचालित विद्यालय में प्रत्येक वर्ष वार्षिक कार्यक्रम आयोजित होता है। बच्चे सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश करते हैं। साथ ही युवा कवि किशोर मनी के संयोजन में हर वर्ष कवि सम्मेलन का आयोजन होता है।
1947 में भारत पाक विभाजन के बाद पूर्वी पाकिस्तान से बड़ी तादात में बंगाली शरणार्थी भारत आए थे। जिन्हें 1951में दिनेशपुर कि 36 कॉलोनी के अलावा ट्रांसिट कैंप, शक्ति फार्म व उत्तर प्रदेश के बिजनौर, रामपुर, पीलीभीत जनपद में बताया गया था। बेतरतीब पुनर्वास के चलते आज भी बंगाली समाज के बहुतायत शरणार्थियों को जमीन का मालिकाना हक नहीं मिला है और वे तमाम समस्याओं से जूझ रहे हैं। देश की आजादी में शहादत देने वाले मणींद्रनाथ नाथ बनर्जी जैसे तमाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हैं, जिन्होंने सपना देखा था कि आजाद भारत में दलित, वंचित, अल्पसंख्यक, मजदूर किसान, आम लोग मिलजुल कर साथ रहेंगे और तरक्की करेंगे, लेकिन मौजूदा दौर में शहीदों का यह सपना अधूरा सा प्रतीत होता दिखता है।
शहादत के अनूठे उदाहरण मणींद्रनाथ बनर्जी को हमारा सादर नमन!
-रूपेश कुमार सिंह
संपादक
अनसुनी आवाज