वैक्सीन पर हुआ पूरा खर्च?
आधुनिक सभ्यता में विश्व के समस्त देशों में चाहे व्यवस्था पूँजीवादी हो या समाजवादी, लोकतंत्र हो या राजतंत्र या निरंकुश तानाशाही, शिक्षा, चिकित्सा और रोजगार पर विशेष ध्यान दिया जाता है। बुनियादी सेवाओं और जरूरतों पर फोकस किए बिना कोई व्यवस्था चल ही नहीं सकती। राष्ट्र की बुनियादी इकाई नागरिक है। राष्ट्र के विकास का सीधा मतलब है नागरिक सुविधाओं और नागरिक अधिकारों का विकास।
विकास सिर्फ आँकड़ों का मामला नहीं है, आम जनता की खुशहाली का मामला है। कोरोना महामारी के समय हमने देखा कि लोक गणराज्य भारत में शिक्षा, चिकित्सा और रोजगार का क्या हाल रहा। कोरोना काल के बाद शिक्षा का बुनियादी ढाँचा सिरे से बदल गया। क्लासरूम की अवधारणा बदल गई। शिक्षक, छात्र और अभिभावक के संबंध बदल गए। नई शिक्षानीति लागू हो गई। डिजिटल, ऑनलाइन वर्चुअल क्लास का नया तंत्र खड़ा हो गया। जिसमें क्रमब( पाठ्यक्रम और पठन-पाठन विधि में भारी अंतर आ गया। नए-नए कोर्स, निजी विश्वविद्याालय, निजी शिक्षा संस्थान, भारी भरकम फीस और शत प्रतिशत अंक। क्रय क्षमता आधारित शिक्षा में सभी नागरिकों के बच्चों के लिए समान और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के अवसर नहीं हैं। ज्यादातर बच्चों के लिए रोजगार और आजीविका के दरवाजे भी बंद हैं।
महामारी के समय करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए। करोड़ों की आजीविका छिन गई। काम-धंधे और कारोबार कर्फ्यू, लॉकडाउन, मृत्यु जुलूस में चौपट हो गए। अर्थव्यवस्था पटरी से उतर गई। अब सेंसेक्स 76 हजार पार है। विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियां जैसे कि विश्व बैंक, आईएमएफ, ओईसीडी और एडीबी ने वर्ष 2024-25 में भारत की आर्थिक विकास दर क्रमशः 6.4, 6.3, 6.1 और 6.7 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है। 2020 में भारत की विकास दर -5.8 प्रतिशत थी। 2021-22 में 9.1 प्रतिशत विकास दर का अनुमान था अगले ही साल। जबकि 2022-23 में 7.2 प्रतिशत विकास दर थी। -5.8 प्रतिशत से 9.1 प्रतिशत तक की विकास दर के आँकड़े हैरतअंगेज हैं।
इन आँकड़ों के विपरीत जमीन पर हकीकत कुछ और ही नजर आती है। आँकड़ों मंे ही बात करें तो ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 2023 में भारत 125 देशों में से 111वें स्थान पर है। 28.7 के स्कोर के साथ भारत में भूख का स्तर गंभीर है। हाल ही में इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन डेवलपमेंट और इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन ने इंडिया एंप्लॉयमेंट रिपोर्ट 2024 जारी की है, जिसमें भारत में रोजगार की अति गंभीर स्थिति बताई गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में जो बेरोजगार कार्यबल है, उनमें लगभग 83 प्रतिशत युवा हैं। कुल बेरोजगार भारतीयों में माध्यमिक या उच्च शिक्षित युवा सन् 2000 में जहाँ 35.2 प्रतिशत थे, 2022 में लगभग दोगुने 65.7 प्रतिशत हो गए।
पिछले तीन वर्षों में अर्थव्यवस्था के तेज विकास, बुनियादी ढाँचे पर सरकारी खर्च, देशी-विदेशी पूँजी निवेश, रोजगार सृजन की तमाम योजनाओं के बावजूद भारत में युवाओं के रोजगार की यह स्थिति तेज आर्थिक विकास की असलियत बताती हैै। ऑक्सफैम की असमानता रपट पर बहुत चर्चा हो चुकी है। असमानता पर ऑक्सफैम की रपट में कहा गया है भारत के 21 सबसे अमीर अरबपतियों के पास देश के सत्तर करोड़ लोगों से ज्यादा संपत्ति है, जबकि 50 प्रतिशत आबादी के पास देश की कुल संपत्ति का सिर्फ 3 प्रतिशत है।
2024 के अंतरिम बजट दस्तावेज में महामारी के दौरान उसके बाद के वर्षों में स्वास्थ्य आवंटन और खर्च के ब्यौरे दिए गए हैं। इस साल 98,461 करोड़ रुपए का स्वास्थ्य बजट है। वास्तव में भारत सरकार ने वित्तीय वर्ष 2023 में स्वास्थ्य पर जीडीपी का 2.6 प्रतिशत खर्च किया है। वित्तीय वर्ष 2025 में जीडीपी का 2.5 प्रतिशत खर्च करने का अनुमान है। कोरोना काल में राज्य और केंद्र सरकार ने कुल मिलाकर स्वास्थ्य पर जीडीपी का मात्र 1.6 प्रतिशत खर्च किया, जबकि 2021-22 में मात्र 2.1 प्रतिशत। ये सरकारी आँकड़े हैं। लोगों को बचाने के लिए क्या यह प्रयास काफी था? इसके विपरीत अमेरिका में स्वास्थ्य पर जीडीपी का 16 प्रतिशत 2022 में खर्च किया गया।
2021 के बजट में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कोविड वैक्सीन के लिए 35 हजार करोड़ रुपए और पीएम आत्मनिर्भर स्वास्थ्य योजना की घोषणा की। पीएम आत्मनिर्भर स्वास्थ्य योजना पर छह साल में 64,180 करोड़ रुपए के खर्च का अनुमान उन्होंने बताया। उन्होंने यह भी कहा कि वित्तवर्ष 2021-22 में स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए 2,23,000 करोड़ से ज्यादा आवंटन किया गया, जो पिछले वित्तवर्ष की तुलना में 137 प्रतिशत ज्यादा है।
इंडिया टुडे की आरटीआई से पता चला कि भारत सरकार ने कोविड-19 वैक्सीन की खरीद पर 35 हजार करोड़ रुपए खर्च किए। कोविड के टीके खरीदने के लिए एचएलएल लाइफकेयर को 27,945.14 करोड़ रुपए जारी किए गए, जिनमें से 7054.86 करोड़ रुपए कथित तौर पर कंपनी के पास पड़े हुए थे। 4 मार्च, 2022 को एचएलएल लाइफ केयर ने आरटीआई के जवाब में कहा कि उसे वैक्सीन निर्माताओं से टीके खरीदने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय से 27,600.57 करोड़ रुपए मिले। दूसरी ओर स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना था कि उसने 27,945.14 करोड़ रुपए दिए हैं, जिसमें 344.57 करोड़ रुपए की कमी है। यह रकम कहाँ गई?
बहरहाल एचएलएल ने वैक्सीन सौदों का खुलासा करते हुए बताया कि उसे कोविशील्ड बनाने वाली कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ;एसआईआईद्ध के लिए 22,469.54 करोड़ रुपए मिले और यह रकम कंपनी को दे दी गई। कोवैक्सीन बनाने वाली कंपनी भारत बॉयोटेक के लिए 3,579.26 करोड़ रुपए दिए गए, जबकि बॉयोलॉजिकल ई लिमिटेड से कॉर्बेवेक्स वैक्सीन खरीदने के लिए 1,500 करोड़ मिले। ये रकम संबंधित कंपनियों को दे दी गई।
इस विवरण से और निर्मला सीतारमण के अंतरिम बजट भाषण से साफ जाहिर है कि महामारी काल में स्वास्थ्य और चिकित्सा पर जो खर्च हुआ, वह वैक्सीन पर खर्च हुआ। स्वास्थ्य ढाँचा और नागरिकों की चिकित्सा पर कितना खर्च हुआ? इसके ब्यौरे उपलब्ध नहीं। पीएम आत्मनिर्भर स्वास्थ्य योजना के लिए जो बजट आंवटन है, उसे छह साल में खर्च किया जाना है।
आँकड़ों से परे नागरिक अपने निजी अनुभव से बता सकते हैं कि महामारी काल में ध्वस्त हो गई चिकित्सा व्यवस्था में उनके इलाके में कितना सुधार हुआ और अस्पतालों में उनके अपने अनुभव क्या हैं। इसके लिए आँकड़े और सरकारी दस्तावेज जरूरी नहीं हैं। बहरहाल, जाहिर है कि जब प्राथमिकता वैक्सीन और टीकाकरण के विश्वरिकार्ड की थी, तो 2020 से अब तक भारतीय स्वास्थ्य व्यवस्था के बुनियादी ढाँचे पर सरकार का उतना ध्यान शायद नहीं रहा होगा। सार्वजनिक चिकित्सा व्यवस्था और सरकारी अस्पतालों की हालत अब भी वही है, जो महामारी काल में थी।
भारत में नब्बे प्रतिशत लोगों को कोविशील्ड के टीके लगाए गए। जो एस्ट्राजेनेका के फार्मूले पर भारत के सीरम इंस्टीट्यूट में बनाई गई। ब्रिटिश कोर्ट में एस्ट्राजेनेका ने कोविशील्ड के साइडइफैक्ट में ब्रेन स्ट्रोक, दिल का दौरा पड़ने की बात कबूल करके दुनियाभर से यह वैक्सीन वापस ले ली है। खास बात यह है कि चुनावी बांड के जरिए 2022-23 में ट्रस्टों के माध्यम से दान देने वालों में दूसरे सबसे बड़े दानदाता सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने 50.25 करोड़ रुपए का बांड खरीदे, जिन्हें भाजपा ने भुनाया। 2021 में कोविशील्ड बनाने के चलते बाजार में सीरम के राजस्व में 2022 में 80 प्रतिशत वृद्धि हुई।
इस व्यवस्था में किसी नागरिक के स्वास्थ्य का क्या, जब महामारी भी मुनाफा का करोबार बन गया हो?