नारायण दत्त तिवारी के कार्यकाल में 2005 में रुद्रपुर मेडिकल कॉलेज का निर्माण शुरू हो गया था। भाजपा के पूर्व विधायक राजेश शुक्ला के पिताजी रामसुमेर शुक्ला के नाम पर रुद्रपुर मेडिकल कॉलेज का नामकरण होने के बाद अरसा बीत गया। विधायक रहते हुए राजेश शुक्ला ने निर्माण पूरा करवाकर मेडिकल कॉलेज चालू करवाने की कितनी कोशिश की है?
पिछले दो विधानसभा चुनावों से राज्य में भाजपा की डबल इंजन सरकार है। सांसद,विधायक भाजपा के हैं। फिरभी मेडिकल कॉलेज का निर्माण पूरा हुआ, न ओपीडी शुरू हुई और न स्टाफ है।
भाजपा नेताओं और भाजपा सरकारों को कितनी परवाह है रुद्रपुर, ऊधम सिंह नगर और उत्तराखंड की जनता की?
निर्माण पूरा नहीं हुआ और न मेडिकल कॉलेज चालू है।इसलिए इस कॉलेज के लिए मेडिकल छात्रों की न काउंसिलिंग होती है, न भर्ती। तराई और पहाड़ के मेडिकल छात्रों को डॉक्टरी की पढ़ाई के अवसर से वंचित रखने के लिए कौन जिम्मेदार है?
कोरोना महामारी के समय कोविड मरीजों की आपातकालीन चिकित्सा के लिए निर्माणाधीन मेडिकल कॉलेज का इस्तेमाल जरूर हुआ था। उसके बाद वहां सन्नाटा है।
उत्तराखंड में आम जनता के लिए सुलभ चिकित्सा, मेडिकल ढांचा और डॉक्टरों के अभाव के नजरिए से देखें तो यह आपराधिक लापरवाही है।
इसी पृष्ठभूमि में रुद्रपुर मेडिकल कॉलेज फिर खबरों में है। मेडिकल कॉलेज का निर्माण ही अधूरा है, ओपीडी भी चल नहीं रही और न डॉक्टर और स्टाफ हैं,लेकिन मेडिकल कॉलेज प्रबंधन ने दावा किया है कि जल्दी ही मेडिकल कॉलेज में आईसीयू सेवा चालू कर दी जायेगी।
मेडिकल कॉलेज के निर्माण पूरा होने से पहले आईसीयू पूरी तरह बनकर तैयार है,ऐसा दावा है। आईसीयू चलेगा कैसे? इसके इंतजाम का भी खुलासा कर दिया गया है।
रुद्रपुर जिला अस्पताल के पीएमएस से एनस्थेटिस्ट, फिजिशियन,नर्सिंग अधिकारी व अन्य स्टाफ की तैनाती पर बात चल रही है। न तैनाती हुई है और न तैनाती का आदेश हुआ है। आईसीयू हवा हवाई हवा से चलेगा शायद।
जिला अस्पताल बहरहाल तमाम समस्याओं और कमियों के बाद चालू है और गरीबों के इलाज का एकमात्र भरोसा है। यहां के डॉक्टर, विशेषज्ञ, नर्सिंग अधिकारी और स्टाफ की तैनाती निर्माणाधीन मेडिकल कॉलेज में हो गई तो जिला अस्पताल का क्या हाल होगा?
बहरहाल इस हवा हवाई आईसीयू को 24 घंटे चालू रखने का दावा किया है मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य और डीन डॉक्टर केदार सिंह शाही ने।
जिले के इस एकमात्र मेडिकल कॉलेज के सीसीबी, छात्रावास, गेस्ट हाउस और दूसरे भवनों का निर्माण अभी अधूरा है।
यह एक ऐसा अजूबा मेडिकल कॉलेज है, जहां न अस्पताल है और न कॉलेज। न डॉक्टर है और न मेडिकल छात्र। तो क्या हुआ, जिले में मरीज क्या काम हैं?
चूंकि आईसीयू का बजट है तो आईसीयू जरूर चालू होगा,भले ओपीडी चले न चले। मेडिकल कॉलेज चालू नहीं है तो चालू जिला अस्पताल को भी अब चलने नहीं देंगे।