उदास लड़की

उदास लड़की
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उस लड़की को बन जाना चाहिए
आवारा, निडर, बेखौफ और साहसी।

उसे खुद को ढाल लेना चाहिए
किसी भी विधा में
संस्मरण लिखते समय
अक्षयवट के नीचे क्या घटा?
कहानी से गुजरते
नाटक में कर जाना चाहिए प्रवेश
नाटक में देश, काल और वातावरण का
खास महत्व होता है

याद रहे
परदा गिरते ही
किरदार को वहीं छोड़ना है
उद्देश्य की पूर्ति के लिए
फिर रच लेना
नया किरदार।

उदासी को छिपाए रखना है
बहुत उदास हो जाना अपने समय में
देश और दुनिया को समझ लेना भी होता है
इसलिए जल्दी से लड़कियां उदास नहीं होतीं
सबकुछ जानकर
अनजानी बनी रहती हैं
बची रहती हैं उदासी से

जानती हैं उनके हिस्से में
बहुत कम हँसी आई है
अपने ही उदास बिंब को पीछे धकेलती
लपककर हँसी को पकड़ लेती हैं
फैल जाती है उदासी के मैदान में
हँसी की नदी

हँसते पार करती हैं जंगल, समुद्र, नदी, पहाड़
चढ़ती जाती हैं ढलानों पर
ढरकने से निर्भय रहतीं हैं

उसे गढ़ने होंगे
दुनिया की सभी उदास लड़कियों के लिए
हँसी के नये प्रतिमान
जो स्थाई रहें सदा
नुकीले, धारदार शब्दों के अर्थ
अपनी ही सोच की सीध में चले जाना है

अकेले सड़क पर चलते
दया, धर्म के नाम पर रहना है चौकन्ना
किसी से रास्ता नहीं पूछना है
जिसने भी रास्ता पूछा
वे सब की सब लापता हो गईं लड़कियां।

अगरबत्ती

मंदिरों को छोड़
महक रही थी रसोईघर में
अलसुबह
भीतर ही भीतर सुलगती
स्वादिष्ट व्यंजनों की माँग में एकमेक होती
घर के हर कोने में मौजूद थी
अपने अस्तित्व को नकारते हुए
सुलगना उनके लिए खुशबू का ही पर्याय था
इसलिए घर आँगन
तुलसी के बिरबे में
नीम के पेड़ की छाँव तले
फिर लौटती दोपहर
बुझकर राख में विलुप्त
आत्मलीन
संध्या मुख पर
दीप रखती हैं
खाली आँखों से ताकती रात
एक दम ताजा मुस्कान पर
सुलगकर ढेर होती
अलग-अलग
दर्जे की अगरबत्ती

अपमान

हम बिछड़ गए इसका मुझे कोई मलाल नहीं
हम तुम्हें न मिल सके इसका रंज रहेगा सदा

एक मुद्दत से आँख लगी नहीं है
जगी बहुत है पर सोई नहीं है
कुछ तो फासले कम हो जाते
तुमने अब तलक कोई बात कही नहीं है

आशा सिंह सिकरवार
अहमदाबाद, गुजरात
आशा सिंह सिकरवार
अहमदाबाद, गुजरात

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