पृथ्वी का तापमान पूरे विश्व में तेजी से बढ़ता जा रहा है। जिससे भारत भी अछूता नहीं है। बढ़ते हुए तापमान के कारण हिमालयी ग्लेशियरों के पिघलने की प्रक्रिया तेजी से बढ़ रही है और उसके दुष्परिणाम हम सबके सामने हैं। सबसे बड़ा खतरा है ग्लेशियरों के पिघलने के कारण कृत्रिम झीलों का अस्तित्व में आना और वर्तमान झीलों का जलस्तर का बढ़ना। हाल ही के वर्षों में हिमालय में टुकड़ों में बँटी कृत्रिम झीलों की संख्या में उत्तरोत्तर वृ(ि होती जा रही है, उनका विस्तार बढ़ता जा रहा है। तेजी से पिघलते हुए ग्लेशियर से इन झीलों को लगातार पानी की आपूर्ति होने से यह खतरा सामने आया है कि ये कृत्रिम झीलंे कभी भी टूट सकती हैं और बाढ़ के रूप में बहता हुआ पानी का सैलाब पहाड़ के ढलान पर बसे गाँवों को पूरी तरह से बर्बाद करने की क्षमता रखता है। कृत्रिम झीलों से तात्पर्य हाल ही में ग्लेशियर के पिघलने से अस्तित्व में आ रही झीलों से है, जिनकी अभी गणना नहीं हुई है। ये नवीन झीलें शिवालिक की गोद में बसे शहरों, गाँवों के लिए वर्षा काल में खतरे की घंटी बन रही हैं, जो कभी भी टूट सकती हैं।
पिछले दिनों उत्तरी सिक्किम में तीस्ता नदी में अचानक आई बाढ़ से भयानक बर्बादी का मंजर अभी भी लोगों की आँखों के सामने है। कारण था ल्होनक झील का टूटना। इस झील के ऊपर अचानक दो बार बादल
फटे और उसके कारण तीस्ता नदी का जलस्तर 20 फीट तक बढ़ गया। चुंगथम बाँध टूट गया। भारी मात्रा में मलबे के साथ उफनती तीस्ता ने उसके किनारे बसी सेना की स्थाई छावनी को पूरी तरह से लील लिया। सेना के बाइस जवान मारे गए। करीबन सौ से भी अधिक रहवासी लापता हो गए। सेना के चालीस वाहन कीचड़ में दब गए। वहाँ का राष्ट्रीय राजमार्ग टूट गया। उत्तरी सिक्किम के चार जिले मंगन, पाक्योंग, नामची एवं गंगटोक जिलों में पुल और बाँध टूट गए। सड़कें और मकान बह गए। करीबन 15 से 20 हजार लोग बेघर हो गए।
सिक्किम में ल्होनक झील के समान ही लगभग 25 छोटी-बड़ी झीलें हैं, जो सभी संवेदनशील झीलों के रूप में खतरनाक घोषित हो गई हैं।
2021 में फरवरी माह में इसी तरह की घटना उत्तराखंड के चमोली जिले में भी झील टूटने से हो चुकी है, जिसे आज भी याद करके लोग सिहर जाते हैं।
यूँ तो बादल फटने की घटनाएं हिमालय क्षेत्र में आम हैं, परंतु इस बार बादल फटने की घटनाएं बहुत अधिक हुई हैं। इसका कारण है घाटी और पहाड़ों के तापमान में असामान्य तापमान का अंतर। घाटियों में तापमान बढ़ता ही जा रहा है। इस कारण तेजी से घाटी का जल वाष्पित हो रहा है। फलस्वरूप बादलों में जल की मात्रा अधिक होने से वे बार-बार फट रहे हैं। इस वर्ष उत्तरकाशी में, कश्मीर के कारगिल में एक से अधिक बार बादल फटे। बादल फटने से 24 घंटे के अंदर ही भारी मात्रा में, लगभग दस सेंटीमीटर तक एक साथ ही पानी बरस जाता है, जिससे हिमालय जैसे क्षेत्रों की झीलें टूट जाती हैं।
ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने से एक बड़ा खतरा उभर कर आया है, वह है समुद्रों के जलस्तर में वृ(ि होना। यह वृ(ि इतनी तेजी से हो रही है कि समुद्रों के किनारे स्थित कई शहर डूबने के कगार पर आ चुके हैं। हाल की एक खबर है, कैरेबियन समुद्र स्थित द्वीप ‘‘सांता क्रूज डेल इस्लोटे’’ अभी कुछ वर्षाे में ही डूब जाएगा। जकार्ता और इंडोनेशियाई शहरों के साथ भारत में मुम्बई भी इस खतरे की जद में है। जलस्तर बढ़ जाने से समुद्रों का विस्तार होता है, समुद्र के किनारों का कटाव बढ़ता जाता है। ओडीशा जलवायु परियोजना के अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि राज्य में 36.9 फीसदी समुद्री किनारा कटाव की जद में आ चुका है। यही हाल भारत के सभी समुद्र तटीय रेखा का है। यह कटाव तटीय क्षेत्रों के जन जीवन के लिए खतरा बन कर उभर रहा है।
ग्लेशियरों के पिघलने के दूसरे पक्षों पर भी विचार करना आवश्यक हो गया है। हिमालय घाटी में तापमान बढ़ाने में मानवीय क्रियाकलाप भी जिम्मेदार हैं, जो ग्लेशियर के पिघलने के कारक बन रहे हैं। हिमालय क्षेत्र में तेजी से निर्माण हो रहे हैं, सड़कें बन रही हैं। मनेरी जैसी अनेक जलविद्युत परियोजनाएं चल रही हैं, जिनके लिए भारी मात्रा में वनों की कटाई की गई है। बारह हजार करोड़ की 889 किलोमीटर चारधाम सड़क चौड़ीकरण परियोजना के चलते गौमुख ग्लेशियर के पास दो लाख देवदार के पेड़ कट चुके हैं। इसके कारण वहाँ पर तापमान में वृ(ि हो रही है।
हर वर्ष हजारों लाखों की संख्या में लोग हिमालय स्थित तीर्थ स्थानों की यात्रा कर रहे हैं। इस वर्ष अमरनाथ यात्रा में 6.5 लाख श्र(ालुओं ने भागीदारी की। इस भारी भरकम भीड़ के कारण भी वहाँ पर तापमान बढ़ रहा है। सबसे अफसोस की बात तो यह है कि सरकार इन सब बातों को जानती है, फिर भी वह अपने निर्माणों पर रोक नहीं लगा रही है। और तो और, दो साल बाद कार से सीधे 18 हजार फीट ऊपर कैलाश व्यू पाइंट तक यात्रीगण जा सकेंगे। केदारनाथ मंदिर और वहाँ के ग्लेशियरों पर एक नया खतरा मँडरा रहा रहा है, वह है हेलीकॉप्टरों की उड़ान। 1997-98 तक केवल एक हेलिपैड था। आज बारह हेलीपैड हैं। नौ कंपनियां हैं। हर कंपनी के हेलीकॉप्टरों के द्वारा 27 से 30 फेरे लगते हैं। वहाँ हेलीकॉप्टर के लिए उड़ान की सीमा 600 मीटर ऊँचाई तक है, परंतु हेलीकॉप्टर 250 मीटर की ऊंचाई पर उड़ रहे हैं। सौ डेसीबल शोर के कारण वहाँ के ग्लेशियर काँप रहे हैं। पता नहीं कब, इस कंपन से ग्लेशियर टूट कर भारी तबाही मचा देंगे, कोई नहीं जानता। इन हेलीकॉप्टरों के द्वारा छोड़े गए धुएँ के कार्बन से इस क्षेत्र में तापमान बढ़ता ही जा रहा है, जो ग्लेशियर के पिघलने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं। मन यह सोचकर ही काँप रहा है कि आदि कैलाश में 15, 000 हजार फीट की ऊँचाई पर एक नया तीर्थ बन चुका है, जहाँ नया हेलीपैड भी तैयार है।
हिमालय के छोटे-छोटे ग्लेशियर लगभग सभी पिघल चुके हैं। जोशीमठ ऐसे ही पिघल चुके ग्लेशियर के हिमोढों पर बस गया है। कश्मीर और लद्दाख इलाके के ग्लेशियरों ने 23फीसदी जगह छोड़ दी है। कश्मीर के सबसे बड़े ग्लेशियर कोल्हाई बहुत तेजी से पिघल रहा है, जिससे इसके अस्तित्व पर ही खतरा मँडरा रहा है। इससे बनी कृत्रिम झील से भूस्खलन और बाढ़ का खतरा हमेशा बना रहेगा। इसी ग्लेशियर से झेलम नदी को जल की आपूर्ति होती है। इसी एक उदाहरण से हम समझ सकते हैं कि ग्लेशियर के पिघलने से झेलम की प्रवाह प्रणाली प्रभावित होगी। हिम के बर्फ बनने की प्रक्रिया से बादल अधिक फटेंगे और हिमालय का पूरा पारिस्थितिकी तंत्र बुरी तरह गड़बड़ा जाएगा। यदि हम चाहते हैं कि बाकी के ग्लेशियर बने रहे, तेजी से पिघलें नहीं तो तापमान की बढ़ोतरी पर रोक लगाने पर ध्यान देना बहुत आवश्यक है।इस वर्ष हिमालय पर बर्फ समय पूर्व गिर रही है, आशा है वहाँ के ग्लेशियर पुनः नया जीवन पा सकेंगे। जरूरत है, गर्मियों में उन्हें सुरक्षित रखने की।