कविता- रूपेश कुमार सिंह

रूपेश कुमार सिंह सम्पादक, अनसुनी आवाज
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डाॅ दिनेश अग्रवाल और डाॅ अंकिता के साथ दाँत निकलवाने के बाद

हे प्रिय!
तुम्हें बहुत मिस कर रहा हूँ आज
टटोल रहा हूँ तुम्हारे स्वाद के अनुभवों को
जैसे नहीं दिखता स्वाद
सिर्फ होता है महसूस
तुम भी तो नहीं दिखे
लेकिन, रहे हमेशा मेरे साथ
आइने में आड़े-तिरछे
हर हरकत से
तुम्हें देखने की कोशिश की मैंने
नाकाम रहा बारमबार
लेकिन, तुम्हें सबसे ज्यादा चाहा है
देख-भाल की है
पिछले पन्द्रह साल में।

जो कमजोर हो
पिछड़ा हो
अल्पसंख्यक हो
या हो तकलीफ में
उसका रखरखाव
स्वाभिमान और सुरक्षा
की जिम्मेदारी बढ़ जाती है
औरों से ज्यादा
बहुसंख्यक का नैतिक धर्म है
अल्पसंख्यक के अधिकार, सम्मान, स्वाभिमान
और सुरक्षा का ख्याल रखना
बात लोकतांत्रिक है और सामाजिक भी।

तुम अकेले थे
तभी तो तुम्हें बहुत प्यार से
बहुत जतन से
सहेज कर रखा था, पिछले डेढ़ दशक
और इस मोहब्बत में
तुम्हें कभी अकेलापन नहीं लगा होगा
मेरी हर इन्द्री तुम्हारे साथ खड़ी थी
तुम्हारी कुशलक्षेम जानने को।

जीवन में स्थायित्व तो कुछ भी नहीं है
ठहराव वैसे भी प्रगति का बाधक है
आना-जाना लगा रहता है
लेकिन, मैं चाहता था तुम्हारा साथ
अभी कुछ और साल
अभी तो मेरे बाल सफेद होना शुरू हुए हैं
पूरी तरह सफेद होना शेष हैं
दाढ़ी पूरी तरह काली है
यदि ठोढ़ी के नीचे के बालों को छोड़ दें तो
आँखें भी नहीं मिचमिचाती हैं
देर तक पढ़ने, कम्प्यूटर पर काम करने
या मोबाइल पर अँगुलियाँ फेरते हुए
तब तुम्हारा साथ, मेरे साथ कुछ दूर तक
और होना ही चाहिए था
कम से कम चालीस पार करने तक।

छेदक
भेदक
अग्रचर्वणक
चर्वणक
की शानदार संरचना में तुम बहुत खास थे
मेरी हर मिसमिसाहठ में तुम थे
खाने-पीने के स्वाद में तुम थे
मुँह फाड़कर खिलखिलाने में तुम थे
दन्तक्षरण की आगोश में घिरे थे
तुम पन्द्रह साल पहले
तभी से तुम मेरी मोहब्बत बने
और मेरे सबसे अजी़ज बन गये
तुम्हें सहेजने में मेरे मित्र
और दन्त चिकित्सक डाॅ दिनेश अग्रवाल ने भी
आठ साल मेहनत की।

लेकिन, तुम आज मुझे
हमेशा के लिए अलविदा कह कर चले गये
मैंने महसूस किया
तुम जाना नहीं चाहते थे
लेकिन, तुम्हारा अब मेरे साथ बना रहना मुझे बीमार कर रहा था
तुम्हारी बुनावट में शामिल तुम्हारे हमशक्ल भी सुरक्षित नहीं थे
नासूर बन गये थे तुम
डाॅ अंकिता ने तुम्हें टुकड़ों में
मेरे मसूड़ों से बाहर निकाला है
तुम जिद्दी थे, बिल्कुल मेरी तरह
दर्जनों चोट और इंग्जेक्शन के टाॅर्चर के बाद
तुम अलग हुए मुझसे
एक बार तो डाॅ अंकिता भी हार मान गयीं थीं तुमसे, पस्त हो गयीं थीं
तुम अड़ गये थे
मैं अर्द्धबेहोशी तुम्हें मनाने की मन्नत कर रहा था
तुम्हें पन्द्रह साल के प्यार का वास्ता दिया
तब तुम एक-एक कर लहुलुहान होकर पाँच हिस्सों में बिखर गये
जैसे मानो तुमने डेढ़ दशक की मेरी मोहब्बत का रिर्टन गिफ्ट दिया हो।
लव यू मेरे प्रिय दाँत।

रूपेश कुमार सिंह
9412946162

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