काली रेखा

योगेश ध्यानी कानपुर, उत्तर प्रदेश
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चारों तरफ देखने के बाद लाला की नजर नीचे जमीन पर पड़ी। उसे एक लंबी काली रेखा दिखाई दी। रेखा कहीं-कहीं मुड़ती भी थी, लेकिन लगभग सीधी ही थी। लाला के मनमें यह जानने की इच्छा हुई कि रेखा कहाँ से शुरू हो रही है और कहाँ खत्म? लाला रेखा की दिशा मंे बढ़ने लगा। रेखा जहाँ-जहाँ मुड़ती, लाला भी उन बिंदुओं पर मुड़ जाता।
लाला रेखा के साथ चलता जा रहा था, लेकिन रेखा का आरंभ नहीं मिल रहा था। फिर रास्ते के बीच में एक छोटी-सी नहर पड़ी। लाला ने देखा नहर के ऊपर पत्तों की एक रेखा बनी थी, जो दूसरे किनारे तक जा रही थी। लाला एक नाव में बैठ गया और अपनी नाव को पत्तों के साथ ही बढ़ाने लगा। ऐसा करते हुए जब वह दूसरे किनारे पर पहुँचा तो उसने फिर से उसी रेखा को देखा। लाला फिर से उस रेखा के साथ आगे चलने लगा।
आगे चलने पर रेखा एक ऊँचे टीले से होकर टीले के दूसरी तरफ उतर रही थी। लाला अब थक चुका था, लेकिन अब यह प्रश्न कि रेखा कहाँ से शुरु हो रही है, उसके सामने चुनौती की तरह खड़ा था। उसे जानना ही था, इसलिए वह उस रेखा की दिशा में बढ़ता गया। उस मरुस्थल-सी जमीन पर तेज धूप में चलते हुए लाला ने चढ़कर टीले को पार किया।
लाला जैसे ही टीले के दूसरी तरफ पहुँचा, उसने एक आश्चर्यचकित करने वाला दृश्य देखा। उसके सामने सफेद रंग का एक बड़ा-सा पहाड़ था। ऐसा लग रहा था, जैसे बर्फ हो। इस गर्म और उमस भरे दिन में बर्फ का पहाड़ कहाँ से आ गया? ऐसा सोचते हुए लाला उस पहाड़ को देखता ही रह गया। लाला की आँखें उस पहाड़ से हटने का नाम ही नहीं ले रही थीं और उसके पैर अपने आप पहाड़ की तरफ बढ़ते जा रहे थे।
जब वो पहाड़ के बहुत करीब पहुँचा, उसके दाएं पैर के पंजे में जोर का दर्द उठा। लाला ने नीचे देखा तो पाया एक चींटी उसके पैर पर चढ़ रही थी। लाला को उस रेखा का सारा रहस्य समझ में आ गया। रेखा इसी पहाड़ से शुरु हो रही थी। फिर उसने देखा सारी चीटियों का मुँह उसी की तरफ है और सारी चीटियां उसकी तरफ बढ़ रही हैं।
लाला ने रेखा के बराबर ही उल्टी दिशा में भागना शुरू किया। लाला अब नए सवाल का जवाब ढूँढ रहा था। नया सवाल पुराने सवाल के ठीक उलट था। सवाल था कि चीटियों की यह रेखा खत्म कहाँ पर हो रही है? सवाल का जवाब भी विपरीत दिशा में ही था। इसलिए लाला ने पहले की दिशा की विपरीत दिशा में रेखा के साथ-साथ चलना शुरु किया। बीच में जब नहर पड़ी तो लाला ने देखा कि बहते हुए पत्तों के नीचे मछलियों की एक रेखा बनी हुई है। एक मछली पत्ते को थोड़ा आगे बढ़ा कर दूसरी मछली की तरफ ढकेल देती है। दूसरी मछली तीसरी की तरफ और इस तरह पत्ता किनारे तक पहुँच रहा था।
आखिरकार रेखा के साथ चलते-चलते लाला अपने गोदाम तक पहुँचा। लाला ने अपने बड़े से गोदाम में चारों तरफ नजर दौड़ाई तो हक्का-बक्का रह गया। गोदाम में चीनी के सारे बोरे खाली पड़े थे और चींटियां चीनी का एक-एक दाना अपनी पीठ पर लादकर पहाड़ की तरफ ले जा रही थीं।

योगेश ध्यानी
कानपुर, उत्तर प्रदेश
योगेश ध्यानी
कानपुर, उत्तर प्रदेश

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