अधूरी पूजा

अधूरी पूजा
Share this post on:

बाल कहानी
‘माँ, मुझे खाना दे दो!’ राधिका ने पूजा की तैयारी में बैठी माँ से कहा तो वह उसकी ओर ध्यान दिए बिना अपनी पूजा की सामग्री को व्यवस्थित करने लगी थी। ‘माँ, मुझे—’ राधिका आगे कुछ कहती इससे पहले माँ ने उसकी ओर आँखें तरेरते हुए उसे जैसे चुप रहने का इशारा किया था।
राधिका नौवीं में पढ़ती थी। अपने घर से तीन किमी की दूरी पर बने अटल उत्कृष्ट राजकीय इंटर कॉलेज में उन्हें पढ़ने के लिए जाना पड़ता था। गाँव से अनेक लड़के-लड़कियां वहाँ पढ़ने जाते थे। उनका पैदल ही आना-जाना होता था। उनके गाँव के कुछ बच्चे गैर सरकारी विद्यालयों मे भी पढ़ने जाते थे। उन्हें लेने व छोड़ने उनके विद्यालयों की गाड़ियां आती थीं। सुबह गाडियां उन्हें लेने पहुँच जातीं और दोपहर को उन्हें छोड़ जातीं। अपनी गाड़ियां पकड़ने के लिए बच्चों को सुबह ही गाँव के बाहर की सड़क पर सीमा पर तैनात जवानों की तरह खड़ा रहना होता। गाड़ियां आतीं। वे सवार होते और फिर गाड़ियां चल पड़ती। नीली, लाल, हरी, पीली रंग-बिरंगी गाड़ियां। गाड़ियों का आना-जाना कभी एक साथ होता तो कभी आगे-पीछे। वे एक साथ आतीं तो एक मोहक-सी छटा मन को मोहने लगती।
राधिका का बड़ा भाई राजेश भी उसी कॉलेज में ग्यारहवीं में पढ़ता था। राजेश सुबह उठकर पहले गाँव के बाहर की ओर जाने वाली सड़क पर अपने कुछ साथियों के साथ दौड़ लगाने जाता । वहाँ से लौटकर कुछ देर व्यायाम करता, फिर पढ़ाई में जुट जाता। आखिर में नहा-धोकर अपने कॉलेज जाने की तैयारी करने लगता। अपने कॉलेज की वेशभूषा धारण कर वह भी कॉलेज के लिए चल पड़ता। उनके कॉलेज जाने की तैयारी तक माँ उनके लिए खाना तैयार कर लेती और फिर वे खाकर चल पड़ते। सर्दियों के दिनों यही दिनचर्या रहती, जबकि गर्मियों में वे प्रातः ही तैयार होकर कॉलेज के लिए चल पड़ते और दोपहर की चिलचिलाती धूप में उनकी वापसी होती। रास्ते में वृक्षों की घनी छाँव उन्हें बहुत सुकून देती। पुराने पानी के धारों से मिलता शीतल जल उनकी प्यास बुझाता। घर लौटने तक कभी-कभार भूख से वे बेहाल हो जाते और पहुँचते ही खाने पर बेतहाशा टूट पड़ते।
माँ उनके कॉलेज जाने से पहले ही उन्हें कुछ खाने के लिए देती तो राजेश कभी- कभार साथ लेकर चला जाता, लेकिन राधिका साफ मना कर देती थी। राजेश को जब भूख भी लगती तो सहना उसके बस से बाहर की बात हो जाती। उनके कॉलेज जाने का समय होता, तब पिता अखबार या फिर किसी पत्रिका में खोए हुए होते। सर्दियों के दिनों आफिस जाने की तैयारी कर रहे होते। माँ घर की साफ-सफाई करने के बाद घर के दूसरे कामों में लग जाती। ‘आसन शुद्ध तो मंतर शुद्ध’ माँ का कहना होता और फिर सुबह बिस्तर पर ‘बेड टी’ के बाद उन्हें नहाने धोने के उपरांत ही उन्हें दूध या चाय-नाश्ता मिलता। फिर वे अपनी- अपनी राह पर आगे बढ़ते।
यूँ तो उनके जाने की तैयारी तक माँ भी साफ- सफाई और पूजा से निवृत्त हो जाती, लेकिन कभी-कभार उसे देर हो जाती तो उसके हिस्से के कुछ काम पिता को ही करने होते। जैसे कि बच्चों को चाय- नाश्ता देना, उनके बस्ते तैयार कर उन्हें कॉलेज के लिए रवाना करना।
आज पिता आफिस के काम से कहीं बाहर गए थे। सुबह उठने के बाद माँ अपने काम में जुट गई थी और राधिका तथा राजेश अपनी पढ़ाई में। उनके लिए चाय- नाश्ता तैयार करने के बाद माँ पूजा की तैयारी में लगी थी, तभी राधिका एक बार फिर से बोल पड़ी थी, ‘माँ, मुझे खाना… कुछ देर की प्रतीक्षा के बाद भी माँ ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया तो वह एकदम रुआँसी हो गई। ‘माँ मुझे…’ उसने फिर से कहा तो माँ ने उसे ऐसे घूरा कि वह बेचारी बुरी तरह सहम गई। वह एक ओर खड़ी उसकी प्रतीक्षा करने लगी।
‘देख नहीं रही, मैं पूजा करने बैठी हूँ। तुझसे कुछ देर भी इंतजार नहीं होता! ‘माँ ने राधिका को डाँटते हुए कहा और स्वयं ताँबे की लुटिया में जल लेकर छत की ओर बढ़ी, जहाँ धूप व तुलसी के पौधे को जल चढ़ाना था।
राधिका ने दीवार पर टँगी घड़ी पर नजर डाली, उसे कॉलेज के लिए देर हो रही थी। राजेश पहले ही जा चुका था। कॉलेज में देर से पहुँचने पर मिलने वाली डाँट के डर से उसने अब माँ के आने की प्रतीक्षा नहीं की। चुपचाप अपना बस्ता उठाया और पीठ से लगाकर तेज कदमों से कॉलेज के लिए चल पड़ी।
तुलसी को जल चढ़ाने के बाद माँ वापस कमरे में लौटी तो देखा कि राधिका वहाँ नहीं थी। उसने इधर-उधर देखा, राधिका कहीं नहीं थी।
‘राधिका! राधिका!’ वह जोर-जोर से आवाज देने लगी, लेकिन कौन उत्तर देता? राधिका कॉलेज जा चुकी थी।
‘ओह! मेरी बच्ची बिना खाए ही कॉलेज चली गई’ उसके भीतर से फूटा और मन ही मन उसे गहरा दुःख होने लगा कि उसकी पूजा के कारण राधिका को बिना खाए ही कॉलेज जाना पड़ा। उसे राधिका के साथ किए अपने बर्ताव पर बहुत ही ग्लानि और पश्चाताप होने लगा। ‘मेरी प्यारी बच्ची आज भूखी ही–ईश्वर मुझे क्षमा करे।’ वह झुँझलाती हुई अपने आप में बुदबुदा पड़ी और फिर दोपहर के लिए उसकी पसंद का खाना पकाने में जुट गई।

महावीर रवांल्टा
उत्तरकाशी, उत्तराखंड
महावीर रवांल्टा
उत्तरकाशी, उत्तराखंड

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *