प्रवासी / महेन्द्र ‘आज़ाद’
जब गांवों से लोग बाहर निकले तो उन्होंने मिलकर बनाएकस्बेनगर और फिरशहर;कुछ लोग शहर बनाने में मशगूल रहेतो कुछ उनमें रहने लगे
रहने वाले लोग अब शहरी थे.
शहर बनाने वाले लोगप्रवासी ही रहेवो साल में एक-आध बार लौटते थे गांवतीज-त्योहार के लिएबीज बोने के लिएफसल काटने के लिएऔर फिर किसी रेलगाड़ी,बस,टेक्सी में लदकरनिकल जातेशहर के लिएताकि कमा सकेंकुछ रोटियांथोड़ा सा भातऔर कर सकें नून-तेल का इन्तजाम;
वैसे भी गांव में उगता ही कितना हैजमीन और उसका पानीशैतान ने पहले ही हथिया लियाकुछ डुबो दियाकहीं पाट दिया सीमेंट सेकहीं गाड़ दिए इस्पात के मोटे-मोटे सरियेअब कुछ उगता भी है तोसाल भर खाने को भरपूर नहींऔर कुछ बिकता भी है तो बहुत कम दाम पर;
आज जब फैलती है बिमारीजिसे लोग कहने लगते हैं महामारीशहर के शहर बन्द हो गएवो शहरी अपने घरों में छुप गएपर ये शहर को बनाने वाले लोगजिनके पास शहरी जरूरत की हर चीज बनाने का हुनर हैउनको नहीं मिलता कोई कामबेघर और खाली पेटअपनी हिम्मत के सहारेनिकल पड़ते हैं अनन्त यात्रा परजिस यात्रा की मंजिल तो गांव हैलेकिन हर पड़ाव तक का सफ़र अनिश्चितता से भराफिर भी कदम दर कदम उन मलवे के ढेरों को पार करतेजिनमें निर्जीव सासें चल रही हैं;
वो अपने हाथों को देखताऔर देखता अपने हाथों से बनी हुई चीजेंफिर सोचता ये सब एक मिथ्या हैजैसे केनवास पर पेंटर की पेंटिंगकवि के उकेरे शब्दों की किताबकाम के बीच में सूरती का एक डोज़बीड़ी का धुआं भरा कशईश्वर से की गई प्रार्थनाकाम के दौरान की पगारथकान के बाद की सस्ती सी शराब।. . .
2.
रोटी / महेन्द्र ‘आज़ाद’
हो सकता है किताबों में पढ़ा होबेहतर अवसर की तलाश में निकलना पलायन है।
हो सकता हैकिसी सेमीनार में वक्ता नेअपनी कीमियागिरी दिखाते हुएकहा होगासभ्यताओं के विकास में पलायन का अहम योगदान है।
हो सकता हैकिसी अख़बार के पन्ने पर पढ़ा होबेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य के लिएलोग पलायन कर गए हैं।
हो सकता है टेलीविजन के पर्दे परभेदभाव के चलते असुरक्षित स्थान को छोड़ते हुए लोग दीखे हो।
पर रोटीपलायन का पुख्ता प्रमाण हैये ही है ‘पुश’ और ‘पुल्ल’ कारकरोटी ही है वो चुम्बक जो खींच ले जाती शहर की ओरऔर धक्का मार पहुंचा देतीएक शहर से दूसरे शहर।
और एक दिन छूट जाती अधूरे सफर मेंफिर अवसर आकाश हो जातेसभ्यता असभ्य ही रह जाती।. . .