प्रेरणा-अंशु, मई 2021 का सम्पादकीय
स्थितियों के बिगड़ने का जिम्मेदार कौन?
–वीरेश कुमार सिंह
आइंस्टाइन ने कहा था कि इस संसार में दो ही चीजें असीम हैं, पहली ‘ब्रह्माण्ड‘ और दूसरी ‘मानवीय मूर्खताएं’ उपर्युक्त दोनों में से ब्रह्माण्ड के असीम होने के बारे में वह पूरी तरह आश्वस्त नहीं थे। लेकिन मानवीय मूर्खता के असीम होने को लेकर उनके मस्तिष्क में कोई सन्देह नहीं था।
मानवीय मूर्खता के साथ यदि सनक और अतिमहत्वाकांक्षा को भी जोड़ दिया जाए, तो इसके वही परिणाम होते हैं जिनसे आज हिन्दुस्तान दो-चार हो रहा है।
कोविड-19(कोरोना) का कहर पूरे देश में बरपा है और हालात नरक समान हो चुके हैं। अस्पतालों में बेड, वेंटीलेटर, आक्सीजन, जीवनरक्षक दवाओं का टोटा मरीजों की जान ले रहा है। हालात की गम्भीरता इस बात से समझी जा सकती है कि श्मशान में अंतिम संस्कार तक के लिए टोकन बांटे जा रहे हैं, जहाँ 8-10 घंटों के इंतजार के बाद ही अंतिम क्रिया हो पा रही है। कई जगहों पर विद्युत शवदाह गृह की चिमनियाँ तक पिघल जाने की खबरें हैं। शायद ही कोई भाग्यशाली होगा जिसने तथाकथित ‘सिस्टम‘ जन्य अव्यवस्थाओं के मध्य अपने किसी सगे-परिचित-मित्र को नहीं खोया होगा। न्यूज चैनल, अखबार, सोशल प्लेटफार्म सभी जगह मातम के ही समाचार हैं जिनसे दिल बैठा जाता है।
अजीब सा डर लगा रहता है कि कब कौन सा अप्रिय समाचार आप पर वज्रपात कर दे। इस समय भी जब मैं सम्पादकीय लिख रहा हूँ तो एक बेहद करीबी का फोन आया है, रुद्रपुर में किसी अस्पताल में एक आक्सीजन बेड की व्यवस्था कराने के लिए। कहना नहीं होगा, फिलहाल तमाम हाथ-पैर मारने के बाद भी नतीजा सिफर है। उम्मीदें दम तोड़ रही हैं। चारों दिशाओं से त्राहिमाम्-त्राहिमाम् की आवाजें सुनाई दे रही हैं, लेकिन कोई मदद मिल पाना सम्भव नहीं हो रहा है।
आंकड़ों की बात करें तो इस समय देश में दो करोड़ से भी अधिक मामले कोरोना के आ चुके हैं और मरने वालों की संख्या भी दो लाख से ऊपर पहुँच चुकी है। ध्यान रखिए कि ये सरकारी आंकड़े हैं, वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक ही होगी, क्योंकि भय और सन्देह के इस माहौल में लोग जाँच करवाने तक से कतरा रहे हैं और घरेलू नुस्खों या नीम-हकीमों और स्थानीय झोलाछाप चिकित्सकों से ही दवा ले ले रहे हैं। यह बात दावे के साथ कही जा सकती है कि इस दुस्समय में ये तथाकथित झोलाछाप यदि नहीं होते तो करोड़ों लोगों को प्राथमिक उपचार तक मिल पाना मुश्किल होता।
आखिर इस सबका जिम्मेदार कौन है? बड़ी चतुराई से इस सवाल पर व्यवस्था को बलि का बकरा बना कर असली गुनहगार को छिपाने और बचाने का काम किया जा रहा है। यह स्पष्ट है कि पिछली बार जब कोरोना की पहली लहर आयी तो उसमें ‘नमस्ते ट्रम्प‘ जैसे मूर्खतापूर्ण कार्यक्रम और उसके बाद मार्च में अनियोजित तरीके से लगाए गए लाॅकडाउन का बहुत बड़ा हाथ रहा। उसके बाद एक लम्बा समय सरकार को मिला जिसमें दूसरी लहर को नियन्त्रित करने के लिए आवश्यक उपाय किए जा सकते थे, लेकिन तमाम चेतावनियों को दरकिनार करते हुए पश्चिम बंगाल सहित पाँच राज्यों में विधानसभा चुनाव व उत्तर प्रदेश में स्थानीय पंचायत चुनाव कराए गए।
उत्तराखण्ड में समय से एक वर्ष पहले ही कुम्भ जैसा विशाल आयोजन करने की अनुमति दी गई। देश के प्रधानमंत्री से लेकर पूरा सरकारी अमला लगभग दो महीने तक इन्हीं सब में उलझा रहा और दूसरी लहर का मुकाबला करने के लिए जरूरी कदम उठाने में ढिलाई का ही परिणाम है कि आज पूरा देश श्मशान में तब्दील है। एक सनकी तानाशाह की अतिमहत्वाकांक्षा ने सब कुछ दांव पर लगा दिया है। न्यायालयों को भी इसे जनसंहार कहने पर विवश होना पड़ा है। यह अकारण भी नहीं है।
खबर है कि देश में अक्टूबर से कोरोना की तीसरी लहर आ सकती है जो इससे भी अधिक घातक होगी। यह लहर विशेषकर बच्चों को अपना शिकार बना सकती है। अभी से यदि जमीनी हकीकत का सटीक आंकलन करके और कोविड के अन्तर्राष्ट्रीय प्रोटोकाॅल का पालन करते हुए कार्ययोजना तैयार की जाए तो शायद हम कल का सूरज देखने के लिए जिन्दा बच जाएंगे। केन्द्र और राज्य सरकारों को सब कुछ छोड़कर अपना पूरा ध्यान अब इस ओर ही लगाना चाहिए।
अस्थायी अस्पताल, नए आक्सीजन प्लांट, जीवन रक्षक दवाओं की समुचित उपलब्धता, डाॅक्टर्स व पैरामेडिकल स्टाफ की भर्ती, विशेष कार्यबल का गठन करने जैसे काम युद्धस्तर पर शुरू करने चाहिए और दैनिक रूप से इनकी माॅनीटरिंग करने के लिए भी विशेषज्ञों की नियुक्ति करनी चाहिए। आपदा के इस समय में कालाबाजारी करने वालों पर भी तत्काल नकेल कसनी चाहिए।
स्थितियों को बिगाड़ने में इन कफनखसोटों की भी बड़ी भूमिका रही है, जिन्होंने मानवीय संवेदनाओं को ताक पर रखकर जीवनरक्षक उपकरणों, दवाओं, आक्सीजन आदि की जमाखोरी कर कृत्रिम संकट पैदा किया और फिर औने-पौने दाम पर उन्हें बेच कर परेशान लोगों की जेबों पर डाका डाला।
-वीरेश कुमार सिंह
सम्पादक
प्रेरणा-अंशु
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