’’गैरसैंण राजधानी का विरोध करने वालों, तुम वही हो जो उस समय जनपद ऊधम सिंह नगर को उत्तराखण्ड से अलग करने की मांग कर रहे थे। आज विधायक, मंत्री-संत्री, नेता बने धूम रहे हो! तब तुम्हारी मांग मान ली जाती, तो तुम उत्तर-प्रदेश में रहकर जिन्दगी में कभी गांव के प्रधान तक न बन पाते।’’ तराई के एक विधायक से बहस के बाद मैंने 26 अप्रैल, 2018 को उपरोक्त पोस्ट फेसबुक पर शेयर की थी। जल्द एक लेख लिखूंगा, यह रज़मंदी भी फेसबुक पर तमाम मि़त्रों के कमेंट के बाद मैंने दी थी।
राज्य गठन से पूर्व ऊधम सिंह नगर रक्षा समिति ने जनपद ऊधम सिंह नगर को उत्तराखण्ड से पृथक करने के बावत जबर्दस्त आन्दोलन छेड़ा था। यह बात दीगर है कि उस समय आन्दोलन के अगुवा आज अपने-अपने राजनीतिक स्वार्थ सिद्ध कर चुके हैं। कोई ब्लाक प्रमुख है, तो कोई जिला पंचायत सदस्य। कोई विधायक है, तो कोई मंत्री। तत्कालीन समय जिन नीतियों और उन्हें लागू करने वाली भाजपा सरकार की जमकर मुखालफत करने वाले नेता आज भाजपा की गोद में बैठकर सत्ता की चासनी का रसपान कर रहे हैं। मौकापरस्त वे नेता आज ऊधम सिंह नगर रक्षा समिति के इतिहास पर बात करने को बिल्कुल तैयार नहीं हैं।
सीधा सवाल-
सीधा सवाल है उन नेताओं से-’’या तो ऊधम सिंह नगर को उत्तराखण्ड से अलग करने का विरोध गलत था, या फिर आज भाजपा में शामिल होकर अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा सिद्ध करना गलत है’’, ’’या तो आप तब एक आन्दोलनकारी के तौर पर सही थे, या आज एक मौकापरस्त दलबदलू नेता के तौर पर सही हैं।’’ दोनों में से एक ही स्थिति सही हो सकती है। राज्य गठन के 18 साल बाद प्रदेश की जनता आपसे सवाल कर रही है। किसी एक कृत्य के लिए आपको माफी मांगनी ही चाहिए। यह बात भी दिलचस्प है कि ऊधम सिंह नगर को उत्तराखण्ड से अलग रखने की मांग रूद्रपुर से शुरू हुई, आग पंजाब में सुलगी और असर तत्कालीन केन्द्र में अटल सरकार पर पड़ा। वास्तव में रक्षा समिति का आन्दोलन स्वतःस्फूर्त नहीं बल्कि प्रायोजित था। ऐसा तमाम घटनाओं से प्रतीत होता है। इस आन्दोलन के तमाम पहलू हैं, जिनको समय के साथ-साथ सत्ता की राजनीतिक धूल से पाट दिया गया है। उन्हें उजागर होना ही चाहिए।
नव गठित राज्य का घोर अपमान-
9 नवम्बर, 2000 को पृथक उत्तराखण्ड राज्य बना। लेकिन इससे पूर्व संसद में कई दिनों तक बहस के नाम पर जमकर नौटंकी हुई। सत्ता पक्ष और विपक्ष के नेताओं के बोल ने नव गठित राज्य का घोर अपमान भी किया। राज्य की सीमागत स्थिति पर बोलते हुए सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने कहा, ’’उत्तराखण्ड में विधायक की हेसियत ब्लाक प्रमुख जितनी भी नहीं होगी। राज्य के पास संसाधन नहीं हैं। या तो ऊधम सिंह नगर और हरिद्वार को उत्तराखण्ड से अलग कर दो या फिर इनसे लगे दो-दो जिले और शामिल कर दो।’’ उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी ने कहा, ’’ तराई के जनपदों को उत्तराखण्ड में शामिल करना इसलिए जरूरी है कि पहाड़ को रोटी मिलती रहे।’’ आशय साफ है कि कोई भी दल उत्तराखण्ड को पर्वतीय प्रदेश के रूप में डेवलप करने को राजी नहीं था। असल में पहाड़ और मैदान के बीच अन्तर्विरोध को भाजपा व सपा ने साजिश के तहत जबर्दस्त हवा दी। कांग्रेस सहित बाकी राजनीतिक दल भी इस अन्तर्विरोध को समय-समय पर तीखा करते रहे हैं।
अगले भाग में जारी……………………
-रूपेश कुमार सिंह09412946162
पड़तालः ऊधम सिंह नगर रक्षा समिति आन्दोलन 1997-2000 (भाग-दो)
पड़तालः ऊधम सिंह नगर रक्षा समिति आन्दोलन 1997-2000 (भाग-तीन)
पड़तालः ऊधम सिंह नगर रक्षा समिति आन्दोलन 1997-2000 (भाग-चार)