मेरी पोटली से- रूपेश कुमार सिंह 

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दो पड़ोसन बच्चे को लेकर आपस में झगड़ रही थीं।

पहली पड़ोसन (दूसरी से), “क्यों जी तुमने मेरे बेटे पप्पू को क्यों मारा? शर्म नहीं आती बच्चों को मारते-पीटते?”

दूसरी पड़ोसन साड़ी का पल्लू कमर में घूसेड़ती हुई बोली, “जानती हो तुम्हारे पप्पू ने मुझे क्या कहा है?”

“क्या कहा है?”, पहली पड़ोसन ने तमतमाते हुए पूछा।

“भैंस कहा है इसने मुझे।” दूसरी पड़ोसन तपाक से बोली।

“तो इसमें मारने-पीटने की क्या बात थी?” पहली पड़ोसन ने नाक-मुँह सिकोड़ते हुए सवाल किया।

“तो मैं क्या इसे भैंस नज़र आ रही हूँ?” दूसरी पड़ोसन  ने काउंटर सवाल दागा।

“अरे बच्चा ही तो है, आखिर उसे प्यार से समझा-बुझा सकती थीं। अभी जानवरों की उसे इतनी पहचान कहाँ है•••?” पहली पड़ोसन अपने बेटे को दुलारते हुए बड़ी मासूमियत से बोली।

(यह व्यंग्य कथा 2002 में लिखी गई थी)

रूपेश कुमार सिंह समाजोत्थान संस्थान दिनेशपुर, ऊधम सिंह नगर उत्तराखंड 2631609412946162

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