कोरोना काल से- भाग चार

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पैदल रिपोर्टिंग
-रूपेश कुमार सिंह 

     भौंकते सिर्फ कुत्ते ही नहीं हैं। दिमाग से पैदल, सोच-समझ शून्य, अंधभक्तों में शुमार चीत्कार करने वाले चिरांद भी इसी श्रेणी में आते हैं। एक विशेष किस्म का चीर धारण कर खूब भौंका-भांकी चल रही है इन दिनों। लोगों को ट्रोल किया जा रहा है। खैर, सबका अपना-अपना सोचना है। सबको आजादी है। अपनी बात करो और दूसरों को भी मौका दो। विचारों का टकराव ही स्वस्थ लोकतंत्र का सूत्रपात है। रेनू से बातचीत करते हुए हम खटोला कैप्टन खड़क सिंह कार्की जी के घर पहुँच गए थे। अंकल जी बड़ी सी कुर्सी पर बैठे थे। नगर के युवा पत्रकार दिपांकर भी मौजूद थे। गेट पर ब्रजेश भाई ने गर्मजोशी से स्वागत किया। बिना हाथ और गले मिलाए, अपने चिर-परिचय अंदाज में। अंकल जी मुझसे बहुत स्नेह रखते हैं। देखते ही खड़े हो गये और फिर दुनिया भर की किस्से-कहानी चल निकली। कार्की अंकल पूर्व सैनिक संगठन के जिलाध्यक्ष हैं इसलिए दिपांकर उनके पास एक समस्या लेकर बैठा था। ब्रजेश भाई बोले, “लाकडाउन में रोज पीने वालों की हत्या हो रखी है।” खटोला रिटायर फौजियों का गाँव है, सो यहाँ कैन्टीन की शराब भी आसानी से मिल जाती है। एक माह लाकडाउन में पीने वाले अंग्रेजी से कच्ची पर आ गये हैं। शराब की दुकान खुलने की पैरवी करने वालों में शहरी और सम्पन्न तबका शामिल है। खैर, जरूरत तो होने वाली ही ठैहरी। चाय पी, किताब दी। अंकल जी ने पत्रिका के लिए कुछ धनराशि दी और गाँव_और_किसान पुस्तक का मूल्य सौ रुपये भी दिया।

     वापसी में सुभाष चौक से गुजरा तो पता चला कि रिटायर फौजियों को तैनात किया गया है। 500₹ प्रति दिन के हिसाब से। इनका काम पुलिस की कमी को पूरा करना है। फौज के अनुशासन में काम करने वाला फौजी सड़क पर कैसे तैनात रहेगा, अंदाजा लगाया जा सकता है। एक बार को ऐसा लगा कि जैसे नगर में सैनिक शासन लग गया है। खैर, सख्ती कई बार जरूरी भी हो जाती है। पुलिस के जवान रिटायर सैनिकों के सामने लुन्जपुन्ज नजर आ रहे थे। सैनिकों में फुर्ती तो गजब की होती है। जानने वाले फौजी जोशी जी से खड़े-खड़े कुछ देर बात हुई। बोले, “आम आदमी छोड़ो पुलिस के जवान भी अनुशासन मानने को तैयार नहीं हैं।” वार्ड नम्बर दो मैं अपने पूर्व स्टूडेंट नितिन और सरिता के घर पहुँचा। सरिता अंग्रेजी में एम0 ए0 कर चुकी है और एक स्कूल में पढ़ा रही है। नितिन भी एम0ए0 अंग्रेजी से करके सिडकुल की एक कम्पनी में एकाउंट का काम देख रहा है। कविता, ग़ज़ल लिखने का शौकीन है। रचना में वजन कैसे पैदा किया जाए, चर्चा हुई। सोचो उतना ही नहीं जितना हमें दिख रहा है, झांकों बाहर भी जो अनन्त है। व्यापक सोचने से ही रचना निखर सकती है। सरिता बी0एड0 करना चाह रही है। साहित्य पढ़ना शुरू करेगी, ऐसा उसने मुझसे वादा किया है। घर कुछ साल पहले नया बना है। लेकिन नितिन ने पुस्तक दीर्घा नहीं बनायी है। इस कमी को पूरा करेगा। माँ ने लिकर चाय बनायी। बिस्कुट और नमकीन खाकर हम शिवानी चौधरी के घर चले गये। राजमा की सब्जी खाई और कोरोना पर विस्तार से बातचीत हुई। व्हाट्स एप बहुत कुछ भ्रम भी फैला रहा है, जिसपर रोक लगनी चाहिए। देश-विदेश में कोरोना से निपटने की तैयारी पर भी विमर्श हुआ। वास्तव में हमारे देश में स्वास्थ्य सेवाएं बहुत पिछड़ी हुईं हैं। खैर, सरकार अब मन्दिर-मस्जिद और दूसरे मसलों को छोड़कर अपने देश की शिक्षा और चिकित्सा व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त करेगी, इसी उम्मीद के साथ मैं घर आ गया। साथियों, स्थानीय स्तर पर किसी जरूरतमंद को राशन आदि की आवश्यकता हो तो मुझे फोन कीजिएगा। किताब लेने के लिए भी आपके फोन का इंतजार रहेगा। 
(02-05-2020)

“कुछ लिख के सो, कुछ पढ़ के सोतू जिस जगह जागा, सवेरे उस जगह से बढ़ के सो”

     भवानी प्रसाद मिश्र की इन पंक्तियों के इर्द-गिर्द आज शाम 5:25 बजे डाॅ0जे_एन_सरकार जी से बात शुरू हुई। आप कांग्रेस के पुराने नेता हैं। दिनेशपुर की बसासत पर बात हुई। आवंटित आठ एकड़ जमीन के मालिक किस तरह से भूमिहीन हो कर मजदूर हो गए, बारीक जानकारी दी। विस्थापित बंगाली समाज की दास्तान लम्बी है। अफसोस तराई में बसे बंगाली समाज का कोई लेखा-जोखा नहीं है। हम जल्द ही इसकी शुरुआत करने वाले हैं। इस बावत पलाश विश्वास जी से मेरी बात हो चुकी है, इसलिए इस विषय पर विस्तार से बात बाद में। 2014 के बाद जिस तरह से हर पुरानी चीज को उलट कर पेश किया जा रहा है, उससे विचलित हैं डाॅक्टर साहब। मसले आज के और जवाब नेहरू- गाँधी दें? मौजूदा सरकार की चतुराई देश को सही दिशा नहीं दे सकती। खैर, मूंगफली की नमकीन और खरबूज खाकर मैंने मास्साब की किताब गाँव_और_किसान दी। लाकडाउन में यह किताब पढ़ना महत्वपूर्ण रहेगा, मुझे शुभकामनाएं देते हुए डाॅक्टर साहब ने बुक के सौ रुपये दिए और मुझे विदा किया। जर्फ़ताज जी ने आज साथ चलने का वायदा किया था, लेकिन वो राहत सामग्री देने निकल लिए। रसिक भाई को साथ लेकर मैं ओमप्रकाश सहदेव जी के घर पहुँचा। आप पिथौरागढ़ जनपद में इंटर कालेज में हिन्दी के प्रवक्ता हैं। एक चपरासी से मास्टर बनने तक का उनका सफर बहुत ही आइडियल है। उन पर मैं विस्तार से बाद में लिखूँगा। बड़ा बेटा संदीप जम्मू में केन्द्रीय विद्यालय में हिन्दी का प्रवक्ता है। एक बरस होने को है उसे नौकरी मिले। भाभी जी का स्वास्थ्य कुछ ठीक नहीं है। घर पर निर्माण कार्य छेड़ रखा है, घुमाया-फिराया। दिनेशपुर के वाल्मीकि समाज के पढ़े-लिखे युवाओं ने झाडू पकड़ ली है। अब न कोई पढ़ रहा है न कोई रचनात्मक काम कर रहा है। इंटर, बी0 ए0 किये हुए युवा नगर पंचायत में दो सौ पचास रुपये रोज की मजदूरी में लग गये हैं। जबकि इन्हें वाल्मीकि समाज की नयी पीढ़ी को आगे ले जाना था, लेकिन नशे में फंस कर पैसा कमाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। इस पर ओमप्रकाश जी ने चिन्ता व्यक्त की। दिनेशपुर में अब वाल्मीकि समाज को नेतृत्व देने वाला कोई नहीं है। ढेर सारी बातें हुईं। संदीप प्रेरणा-अंशु के लिए जम्मू में काम करेगा और आर्थिक सहयोग भी करेगा, ऐसा विश्वास जताया है। गाँव और किसान किताब दी। किसी काम से ग्राम प्रधान विकास सरकार जी ने अपने घर बुला लिया। वापसी में नौ बज गये। अभिषेक और जर्फ़ताज भाई कृष्णा स्वीट्स से गरमा गरम गुलाब जामुन लेकर बाजार से आते दिखे। दो पीस मैंने भी चटका लिए। मुन्ना दा 10 बजे कन्ट्रोल रूम रुद्रपुर से मेरे पास पहुंचे। बात कर ही रहे थे कि जोर आंधी-तुफान और बारिश से हम घिर गये। आनन-फानन में मुन्ना दा घर निकल लिए। मैं भी मम्मी के साथ दो रोटी खाकर फेसबुक पर पिल पड़ा हूँ। आज तीन चार किमी ही चलना हुआ। स्थानीय साथी फोन करें 9412946162 बताएं मुझे किस किस के घर आना है।
(04-05-20)
-रूपेश कुमार सिंह समाजोत्थान संस्थान दिनेशपुर ऊधम सिंह नगर, उत्तराखंड9412946162

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