विधायक राजेश शुक्ला जी आपसे मेरा सीधा सवाल है- पं0 राम सुमेर शुक्ला स्मृति राजकीय मेडिकल कालेज रूद्रपुर से संबंधित प्रकाशित विज्ञापन में स्वतंत्रता संग्रमा सेनानी और तराई की बसासत में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले पं0 राम सुमेर जी का फोटो क्यों नहीं है? जिस विज्ञापन में प्रधानमंत्री, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री, केन्द्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री और स्वयं आपका बड़ा सा फोटो लगा है, वहाँ राम सुमेर जी का फोटो नहीं क्यों नहीं है? जिस महान व्यक्ति की स्मृति में मेडिकल कालेज बनाने की कवायद हो रही हो, उनका फोटो तक देना आप कैसे भूल गये? राम सुमेर जी के फोटो के बगैर यह विज्ञापन अधूरा और सूना नहीं है? विज्ञापन में छपे तमाम नेताओं से कम ओहदा है राम सुमेर जी का, जो उनका फोटो नहीं छापा गया? क्या पं0 राम सुमेर जी के नाम के साथ-साथ उनकी छवि से नयी पीढ़ी को परिचित नहीं होना चाहिए? राम सुमेर जी का नाम क्या आपकी राजनीति चमकाने भर के लिए है?
आखिर यह आभार विज्ञापन किसलिए? लाखों रुपये किस लिए खर्च किये गये? क्या इन रुपयों का कहीं और जनहित में खर्च करना ज्यादा मुनासिब नहीं रहता? जनपद में छपे इस विज्ञापन से मुख्यमंत्री, केन्द्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री तक आपका आभार कैसे पहुँचेगा? क्या यह विज्ञापन सिर्फ जनता की कोरी वाहवाही, श्रेय लेने और अपनी राजनीति को चमकाने के लिए नहीं प्रकाशित किया गया? क्या रूद्रपुर मेडिकल कालेज का काम 2004 से अधर में नहीं लटका हुआ है? क्या इसके लिए भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियों की अब तक की सरकारें उदासीन नहीं रही? काम शुरू हो जाता या पूरा हो जाता, तब आभार जताना क्या ज्यादा मुनासिब नहीं होता? आम जनता को साथ में लेकर आभार प्रकट करना शायद ज्यादा असरदार नहीं होता? आभार प्रकट करने की इतनी जल्दबाजी क्यों?
जहाँ तक मैंने पं0 राम सुमेर जी को जाना-समझा है, उन्होंने लोगों के लिए निःस्वार्थ काम किया, उसके प्रतिफल में उन्होंने वाहवाही बटोरने का काम कभी नहीं किया। तब क्या उस दिशा से हम भटक तो नहीं रहे हैं? नेताओं के बड़े-बड़े विज्ञापन तो रोज अखबारों में छपते हैं। मैं कभी उन्हें देखता भी नहीं हूँ, देखना चाहता भी नहीं हूँ। लेकिन गुरूवार को राजेश शुक्ला जी आपका विज्ञापन देखा और उसमें उस व्यक्ति का फोटो ही नहीं, जिनके इर्द-गिर्द सारी कवायद है। मुझे कतई अच्छा नहीं लगा। इसलिए सवाल आप तक पहुँचाना जरूरी समझा।
जब राजेश शुक्ला जी, आप विधायक नहीं थे, हाँ! विधानसभा और लोकसभा का चुनाव जरूर लड़ चुके थे, मैं आपको तब से जानता हूँ। मेरे परिवार के सहयोगी भी रहे हैं आप। तब आपकी छवि एक आक्रामक, संघर्षशील और जुझारू नेता की थी। बौद्धिक नेता के तौर पर आप उभर रहे थे। कला, साहित्य, संस्कृति के लिए सजग थे। आपसे मिलने पर मीर, गालिब, दुष्यंत, फ़ैज, पाश की शेर-शायरी से बात शुरू होती थी और बहुत दूर तलक जाती थी। समय के साथ सब कुछ छूट गया। आप भी नेताओं की भीड़ में शुमार हो गये। आप विधायक भी हो गये और मैं भी सत्ता के साथ खप नहीं पाता हूँ। किच्छा विधानसभा क्षेत्र में जाना होता है, लेकिन अन्य विधानसभा क्षेत्रों से अलग स्थिति नहीं दिखायी देती है। मतलब कुछ अलग हट कर काम नहीं करा पाये आप भी, दो बार विधायक बनने के बाद भी। लोगों से सुना और मैंने महसूस भी किया कि विधायक बनने के बाद आप जमीन से जरूर कट गये हैं। व्यवहार बदल गया। कुछ तो यहाँ तब कहते हैं कि आपमें बहुत अहम आ गया। जब व्यक्ति अपनी मूल प्रवृत्ति को छोड़ता है तो इस तरह के बदलाव होना लाजिमी हैं। तब जल्दबाजी में आप पं0 राम सुमेर जी का फोटो लगाना भूल जाए तो, कोई अचरज नहीं। आपके विधानसभा क्षेत्र में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। लोग संतुष्ट नहीं हैं। विकास में बहुत पिछड़ा है किच्छा। इसलिए कहता हूँ आपको नये सिरे से सोचने की आवश्यकता है। दुष्यंत के शब्दों में कहूँ तो-
‘‘तुम्हारे पाँव के नीचे कोई जमीन नहींकमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यकीन नहीं।’’
राजनीति जब छद्म श्रेय लेने और मौकापरस्ती पर टिक जाये तो समझ लेना चाहिए नेता पतित और अवसरवादी हो गया है। झूठ और प्रोपेगेंडा के तहत अपनी राजनीति को चमकाया जा सकता है, लेकिन पं0 राम सुमेर शुक्ला की तरह इतिहास में जगह नहीं बनायी जा सकती। आप मेरी बात पर नाराज नहीं होंगे, ऐसी मुझे उम्मीद है। विचार कीजिए आखिर हमारी राजनीति जा कहाँ रही है। जवाब मिले तो मुझे जरूर बताइएगा। दुष्यंत की दो लाइनें और-
‘‘ पक गई हैं आदतें बातों से सर होगी नहींकोई हंगामा करो ऐसे गुज़र होती नहीं।’’
आपका अपना
रूपेश कुमार सिंहस्वतंत्र पत्रकार