हास-परिहास (क्षणिकाएं)
-रूपेश कुमार सिंह
“जितनी बार साल में नहाते नहीं हैं, उससे ज्यादा बार एक दिन में हाथ धोना पड़ रहा है। अब तो, हाथ भी घिसने लगे हैं।”
“जिन्हें कल तलक ढंग से मुँह धोना नहीं आता था, वो आज फेसबुक लाइव पर हाथ धोना सिखा रहे हैं।”
“जो कल तलक दूसरों के घरों में ताँक-झाँक करते थे, आप अपने सगे बीबी-बच्चों को हाथ लगाने से भी कतरा रहे हैं”
“हद तो यह है कि अपनी ही टायलेट में लोग मास्क लगा कर बैठ रहे हैं।”
“धूल लगी पकौड़ी और जलेबी की ठेली पर भीड़ देखे भी अरसा हो गया। आधे से ज्यादा हिन्दुस्तानियों का वायरस तो वहीं झड़ता है।”
“छः-छः दिन चड्डी न बदलने वाले भी दिन में दो बार कपड़े बदल रहे हैं।”
“आजकल बीबी और गर्लफ्रेंड भी शक नहीं कर रहीं, जाओ कहाँ जाओगे, गले तो छोड़ो हाथ तक न मिला पाओगे।”
“फेसबुक पर जमकर मजाक करें•••बुरा न मानो ‘कोरोना’ है।”
“हद है, अब तो माँएं बच्चों को सुलाते हुए कहती हैं, सो जाओ••• नहीं तो ‘कोरोना’ आ जाएगा।”
“हमारे यहाँ जो सुबह, दोपहर, शाम मीट-मांछ छोड़कर खाना नहीं सूंघते थे, वो दिन में तीन बार आलूभात खा रहे हैं।”
“कोरोना के डर से पति- पत्नी अपने पुराने अफेयरों की सही-सही संख्या बताने लगे हैं, आखिर ऊपर जाकर भी तो मुँह दिखाना है।”
“तरकारी तक माॅल से लाकर शेखी बघारने वाले आजकल अपनी सोसाइटी में राशन के लिए रेढी और छोटे दुकानदारों का मुँह ताक रहे हैं।”
“टाप की व्हिस्की से नीचे बात न करने वाले इन दिनों कच्ची पीकर भी मदमस्त हैं।”
“बड़े सैलून में हजामत कराने वाले भी इन दिनों शनि बाजार में बाल काटने वाले नाईंयों को खोज रहे हैं।”
“इन दिनों लोग सेनेट्राइज की दो बूँद भी हथेली पर ऐसे ले रहे हैं, जैसे पूजा के बाद पंचामृत लेते हैं।”
“रात में गली के कुत्ते एक आहट में शेर की तरह दहाड़ने लगते थे, भूख के कारण आजकल मिमयाने की आवाज भी नहीं आ रही है।”
कौन पहचानने से इंकार कर दे•••महिलाएं बालकनी में आने से भी कतरा रही हैं। ब्यूटी पार्लर जो बंद हैं!बुरा न मानो कोरोना है।
“मेरे ‘ये’ तो घर में टिकते ही नहीं हैं••• शायद अब महिलाओं की यह आम शिकायत दूर हो जाए।” बुरा न मानो कोरोना है।
“बच्चे:-मम्मी शादी के समय भी हूबहू ऐसी थीं ?पापा:- जले पर क्यों नमक छिड़कते हो! बुरा न मानो कोरोना है। निजी उपजनये विवाहित जोड़ों को जिस हिसाब से घर में टिकने का समय मिल रहा है, लगता है अगले साल बच्चों की उपज बेहतरीन होगी। बुरा न मानें कोरोना है।”
“पतियों को घोड़ा, कुत्ता, बंदर, ऊंट बनाने का चलन जोर पकड़ रहा है। गधे तो पहले के बने बनाये थे ही।बुरा न मानो कोरोना है”
“9 मिनट तक दिए जलाने को कहा था, 15 मिनट से ज्यादा हो गये पटाखे अब भी जल रहे हैं। पागल पन की हद है।”
“सर्वाधिक बुद्धिमान होने में मजा ही क्या है, जब रहना आपको मूर्खों के बीच ही है।”बताओ किसका कथन?
“सीधा-सामान्य आदमी या तो अपना हर पल सतर्कता के सहारे जीता है या फिर भाग्य और भगवान के सहारे”बताओ किसका कथन?
“आज छाया विश्व में कोरोना घना है, ये कैसे मिटे हम सबको सोचना है”किस महान आत्मा की लाइन है ?
“ठलुआ लोग टाइम पास करने को ताश खेलते हैं, बातून और बेईमान बार-बार पत्ते बदलता है।”उक्ति आज के किस नेता पर फिट है?
“जीवन अन्त की ओर तभी बढ़ना शुरू हो जाता है, जब हम ज़रूरी विषयों पर चुप रहना शुरू कर देते हैं।”बताओ किसका कथन?
“दुनिया तबाह करने को बस एक कोरोना ही काफी है, गोला-बारूद,परमाणु बम क्या खाक मिटायेंगे???”
“तुम हिन्दू-मुस्लिम करते रह जाओ, वहाँ कोरोना ने सबको औकात पर ला दिया है।”
“18दिन घर में बैठे-बैठे मर्दों की हालत ऐसी हो गयी है कि खुजियाना सिर में है, लेकिन उंगली नाक में डाले हुए हैं।”
“अखबार को हाथ तक न लगाने वाले मर्द, पुराने पैंफ्लेट को लेकर भी आधा-आधा घंटा टायलेट में बैठ रहे हैं।”
“बात-बात में दूसरों को उंगली करने वाले इन दिनों घर में भीगी बिल्ली बने दुबके हुए हैं।”
“तुम्हारी खांसी खांसी और हमारी खांसी कोरोना???”वाह रे देश की राजनीति •••
“घर में बैठे-बैठे कई नवाबजादों की शक्ल केले के उतरे हुए छिलके की तरह हो गयी है।”
“इन दिनों चुगली का बाजार भी थम गया है, सास-बहु दोनों ही घर में जो कैद हैं 🤣बुरा न मानो कोरोना है।”
” सबसे पतली हालत तो उन छुटभैया नेताओं की है, जिनकी गाड़ी बड़े नेताओं के इर्द-गिर्द घूमकर कमीशन से चलती थी।”
“शहर में बालकनी से लोग सड़क पर गुजरने वाली कार को भी ऐसे देख रहे हैं, जैसे सन् 75 में गाँव में मोटरवाइक आने पर ताकते थे।”
“धोखाधड़ी और फरेब के लिए बड़े शहर पहले ही बदनाम थे, इस कोरोना ने तो शहर को अछूत भी बना दिया है।”
“जीवन में पहली बार ऐसा हुआ है, तकरीबन 20 दिन से पैंट-शर्ट नहीं पहनी, सिर्फ लोवर और टी शर्ट से ही काम चल रहा है।”
“जूते-मौजे पहने भी मुद्दत हो गयी, चप्पल से ही काम चल रहा है, वो भी हबाई। लाकडाउन के बाद पुराने जूते काम देंगे भी या••”
“मुरादाबाद की घटना घोर निंदनीय है। कार्यवाही हो। कुछ जाहिल, कट्टर, इंसान विरोधी देश में आम मुसलमानों का जीवन संकट में डाल रहे हैं।”
“तुम्हें चाहेगा कौन मेरे जाने के बादयह सोचकर पैग में चार बूंदें घटा लीं”
(यह लाकडाउन के दौरान फेसबुक पर निजी अनुभव और निजी उपज शीर्षक से किया गया सामान्य हास-परिहास है। कभी-कभी कुछ हल्का-फुल्का भी होना चाहिए।)
-रूपेश कुमार सिंह 9412946162