-रूपेश कुमार सिंह
“तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है
मगर ये आँकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है”
आजादी के 73 साल बाद भी गाँव और किसान की हालत क्यों नहीं बदली? इस सवाल पर सरकार के पास सिवाए जुमले के कुछ नहीं है। गाँव की हकीकत दयनीय है, लेकिन फिर भी नेता हिन्दू-मुस्लिम करके अपना उल्लू सीधा कर लेते हैं। जनता बेचारी हर बार झांसे में आ ही जाती है। आज बात खानपुर, रुद्रपुर क्षेत्र की।
#रुद्रपुर के विधायक #राजकुमार_ठुकराल को मेरी खुली चुनौती है, “एक दिन अपने विधानसभा क्षेत्र के खानपुर इलाके की सड़कों पर पैदल चलकर दिखायें। लगभग 15 किमी की दूरी में सौ मीटर सड़क भी साबुत नहीं मिलेगी। पिछले 15 साल से सड़क पूरी तरह से क्षतिग्रस्त है। दो बार आप भी विधायक चुन लिए गये, लेकिन यहाँ के लोगों को आप हिन्दुत्व का झुनझुना थमाने के अलावा कुछ नहीं दे सके। गाँव के लोग किस हाल में हैं इससे आपको मतलब नहीं है। खैर, आप जैसे नेताओं से जनता ने उम्मीद करना छोड़ दिया है।”
इन दिनों हम #प्रेरणा_अंशु और मास्साब की किताब #गाँव_और_किसान लेकर गाँव-गाँव पैदल जा रहे हैं। वास्तव में गाँव बुरी तरह बदहाल हैं। गुरूवार को मैं और रेनू दिनेशपुर से खानपुर पूरव और पश्चिम के लिए पैदल निकले।
ढलती शाम और हमारे कदम दोनों एक साथ तेजी से खानपुर की ओर बढ़ रहे थे। पहला पड़ाव आनन्दखेड़ा के हरिनगर बस्ती पर था। दिनेश, मुकेश और राकेश के घर। पहुंचते ही उन्होंने दिल खोलकर स्वागत किया। अपनेपन से मिले। प्यार से हमें चाय पेश करने की बात की। जिसे सिरे से हम दोनों ने खारिज कर दिया। कोरोना के चलते बस्ती के प्रवेश द्वार पर लोगों ने नाका लगा रखा है, लेकिन हमें किसी ने नहीं रोका। किताबों पर चर्चा हुई, साथ ही जन साहित्य को लेकर के बातचीत चली। हरिनगर को हरी नगर क्यों कहा जाता है? बताया कि हरि मंदिर के मतुआ मिशन को मानने वाले लोग यहाँ अधिक जनसंख्या में रहते हैं इसलिए गाँव का नाम हरिनगर रखा।
यहाँ 15-16 परिवार हैं और सभी भूमिहीन मजदूर हैं। जो नमो:शूद्र जाति में आते हैं। अचानक ही महेश की शादी की बात चल निकली, “बताया 2021 में बचेंगे तो करेंगे।” हँसी के बीच, “बचना तो है ही। इस घातक महामारी से हम बाहर निकलेंगे और एक नई दुनिया, एक नए समाज का निर्माण करेंगे और जिंदगी भी नए तरीके से शुरू होगी।
दिनेश के बड़े और छोटे भाई ने 12 वीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी। अब दोनों मेहनत-मजदूरी करते हैं। दिनेश ही ऐसे हैं जिन्होंने बीएससी किया हुआ है। मुख्य सड़क के क्षतिग्रस्त होने से गाँव वालों में खासा रोष है। हर कोई विधायक को कोस रहा है। इस बार चुनाव आने पर सबक सिखाने की बात की ग्रामीणों ने । बातचीत करते हुए हम धर्मनगर की ओर बढ़ चले। दिनेश साथ थे। यहाँ से खानपुर पूरब तकरीबन चार किमी था। पूरा रास्ता टूटा हुआ है। पत्थर बिखरे हुए हैं । ऐसा लगता है कि दशकों से इस सड़क पर कभी कोई सरकारी गाड़ी और नेता का वाहन नहीं घूमा। नहीं तो कोई तो सुध लेता। चलना मुश्किल हो रहा था। पैर में पत्थर गड़ रहे थे। चप्पल पहन कर चलना तो और भी खतरनाक था। मोटरसाइकिल भी 20 की रफ्तार से ज्यादा नहीं भाग सकती है। हर कोई #राजकुमार ठुकराल से जानना चाहता है कि आखिर उनकी सड़क कब बनेगी। अब तो राम मंदिर भी बनने लगा है, अब तो गाँव की सड़क को अंजाम तक पहुंचा दो विधायक जी। हर आँख में नेताओं के प्रति गहरा आक्रोश है। लेकिन यह गुस्सा चुनाव के समय पता नहीं कहाँ काफ़ूर हो जाता है? खैर, हम आगे बढ़ते रहे।
हम मुड़िया गाँव पहुंचे। जहाँ प्रदीप मंडल के ससुर जी से भेट हुई। उन्होंने सप्रेम घर बैठने के लिए बुलाया, लेकिन हम जल्दी में थे, इसलिए फिर आने की बात कहकर पत्रिका देकर निकल लिए।
हम चल ही रहे थे कि किशोर मनी का फोन आया। 7:30 बज चुके थे। देरी का कारण पूछा। हमने कहा, “पैदल आ रहे हैं।” दिनेशपुर से पैदल•••? किशोर हथप्रभ रह गए।
तुरंत बाईक लेकर हमें लेने आए। दो किमी की यात्रा मोटरसाइकिल से तय की और खानपुर पूरब पहुंच गये।
साधन बर भाई के घर गए, जिन्हें खानपुर और आसपास के गाँव की जिम्मेदारी दी गई है, कि वहाँ पर जो भी आएगा उसे क्वारंटाइन करना, उनकी देखभाल करना, उनकी जिम्मेदारी है। साधन की पत्नी कोरोना काल में महिलाओं की स्थिति पर पत्रिका के लिए अगले अंक में कुछ लिखकर देंगी इस आशा के साथ हमने उन्हें किताब दी। चाय-नाश्ता किया और सुजाॅय से बातचीत में लग गये।
क्वारंटाइन बनाये गये स्कूल में सरकार की ओर से कोई सुविधा नहीं है। लोग खुद से चीजे जुटा रहे हैं । नियमित जांच तक की व्यवस्था नहीं है। गाँव आतंक के साये में है। एक छात्रा के पिताजी की तेरहवीं थी, वहाँ भी गये। शोक व्यक्त किया बच्चों से, भाभी से थोड़ी देर बातचीत किया। उनके पिताजी के जाने का दुःख है।
सुजाॅय ने सवाल किया, “जांच ठीक-ठाक से हो रही हैं?अभी तक कितने डॉक्टरों, अस्पतालों की संख्या बढ़ाई गई है? जो कोविड-19 से लड़ने में अग्रसर हैं?
हमें केवल मरीजों की संख्या, मरने वालों की संख्या और ठीक होने वालों की संख्या ही बताई जा रही है। वास्तविक स्थिति से हम वाकिफ नहीं हैं।”
वास्तव में सरकार की विफलताओं को लोग अब जान रहे हैं। मजदूरों की स्थिति पर सब परेशान हैं।
दूसरी बात पुलवामा घटना को लेकर के हुई। जिसमें यह बात साफ तरीके से नजर आई कि लाकडाउन के चलते जब लोग पैदल नहीं निकल पा रहे हैं, तो गाड़ी से आना और इस तरीके से आरडीएक्स रखना और उसे फिर हेलीकॉप्टर के माध्यम से उड़ा देना यह कैसे पॉसिबल हो सकता है? क्या वाकई में ऐसा है या नहीं? इस पर थोड़ी देर चर्चा हुई।
#किशोर भाई की माता जी ने मछली और बत्तख का मीट बनाया था। बहुत दिनों बाद बत्तख का इतना लज़ीज़ मीट खाया। भांजी #पूजा से खूब गप्प हुई, वो अभी 11 वीं में पढ़ती है। पूजा की किताबें पढ़ने पर ध्यान देगी, ऐसा उसने वादा किया। किशोर के पास मंटो का विशाल संग्रह है। वो आज कल कितने पाकिस्तान पढ़ रहे हैं। गाँव-देहात में पत्रिका के लिए सक्रिय काम करेंगे, ऐसा उन्होंने विश्वास जताया। बतियाते-बतियाते 10:30 बज चुके थे। अब पैदल आना संभव न था। मोटरसाइकिल लेकर हम दिनेशपुर आ गये।
गाँव और किसान बचेंगे, तो शहर बचेगा।
भारत की तरक्की का रास्ता यही हो सकता है।
-रूपेश कुमार सिंह स्वतंत्र पत्रकार 9412946162