ऋचा गौतम की कविताएं
गाँव का पुराना घर
बाट जोहता है किसी अपने का।।
पिछली बारिश में चू रही थी छत
इस बारिश आँगन के दीवार में आ गई है दरार
कभी छोटी-सी छत पर बारी-बारी
सारे अनाज सुखा लेती थी माँ,
अब वहाँ उगते हैं, सूखते हैं, झरते हैं सालों भर
खर-पतवार।।