-रूपेश कुमार सिंह
गतिरोध के दौर में चुप्पी तोड़ने का सशक्त माध्यम होता है सांस्कृतिक अभियान। यात्राएं संस्कृति की संवाहक हैं। पुरातन काल से ही यात्राएं सीखने और सिखाने का जरिया रही हैं। कांग्रेस नेता राहुल गाँधी भी देश को समझने और जनता की भावनाओं को पढ़ने के लिए भारत जोड़ो यात्रा के तहत 7 सितम्बर 2022 को पैदल यात्रा पर निकले। यात्रा से भारत कितना जुड़ा, एकजुट हुआ, इससे अहम सवाल यह है कि राहुल गाँधी जनता से खुद को कितना जोड़ पाये हैं?
24 दिसम्बर को 7 दिनों के लिए यात्रा रोकी गयी है। नये वर्ष में यात्रा पुनः शुरू हो पायेगी, इस पर संशय है। कारण कोरोना।
हमारा इतिहास यात्राओं की निरंतरता से भरा हुआ है। धार्मिक यात्राएं तो देश में आम हैं, लेकिन समय-समय पर सामाजिक, सांस्कृतिक व राजनीतिक यात्राएं होती रही हैं। इन यात्राओं का व्यापक असर और संदर्भ है।
भारत जोड़ो यात्रा पर बात करने से पहले आजाद भारत की कुछ महत्वपूर्ण राजनीतिक यात्राओं पर नजर डालते हैं। आजाद भारत में इन्दिरा गाँधी, लाल कृष्ण आडवाणी, चन्द्रशेखर, एन टी रामाराव, वाई एस रेड्डी, चन्द्र बाबू नायडू, जगमोहन रेड्डी, दिग्विजय सिंह आदि के नेतृत्व में निकलीं यात्राएं बहुचर्चित रहीं।
इन्दिरा गाँधी को आपातकाल के बाद 1977 के चुनाव में करारी हार मिली। इसके तुरंत बाद इन्दिरा गाँधी ने बिहार के बेलछी में यात्रा की। यह जातिए हिंसा के खिलाफ यात्रा थी। इससे इन्दिरा गाँधी को खासा फायदा हुआ और 1980 में उनकी सत्ता में पुनः वापसी हुई।
1983 में इन्दिरा गाँधी को सत्ता से बेदखल करने के लिए चन्द्रशेखर ने कन्याकुमारी से दिल्ली तक की 4260 किमी की पैदल यात्रा की। यात्रा का तात्कालिक कोई फायदा नहीं हुआ। इसकी मुख्य वजह 31 अक्टूबर 1984 को इन्दिरा गाँधी की हत्या से उपजी सहानुभूति लहर रही। लेकिन चन्द्रशेखर आखिर सात महीने के लिए प्रधानमंत्री चुन लिए गये।
1985 में राजीव गाँधी ने मुंबई से कांग्रेस संदेश यात्रा का शुभारम्भ किया। यह यात्रा कश्मीर, कन्याकुमारी और उत्तर पूर्व के राज्यों से होते हुए तीन माह में दिल्ली पहुंची। इसके बाद 1990 में राजीव गाँधी ने सेकेंड क्लास बोगी में बैठकर यात्राएं की, लेकिन इसका बहुत ज्यादा फायदा कांग्रेस को नहीं हुआ।
आन्ध्र प्रदेश के एन टी रामाराव ने 1980 में अपने ही प्रदेश की लगातार चार बार पैदल यात्रा की। इस दौरान वे 75 हजार किमी पैदल चले। यह कीर्तिमान गिनीज बुक आॅफ वल्र्ड रिकार्ड में दर्ज हुआ। यात्रा के बाद उन्होंने तेलुगु देशम पार्टी का 1982 में गठन किया। 2013 में उनके दामाद चंद्र बाबू नायडू ने 1700 किमी यात्रा की और 2014 में वे आन्ध्र के मुख्यमंत्री बने। आन्ध्र प्रदेश में 2003 में वाई एस रेड्डी ने 1500 की पैदल यात्रा की। वे भी 2004 में मुख्यमंत्री बने। 2019 में जगमोहन रेड्डी ने आन्ध्र की 3648 किमी पैदल यात्रा की और वे अभी कांग्रेस के साथ सरकार में हैं।
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने नर्मदा नदी के किनारे 2017 में 3300 किमी की यात्रा की। उन्होंने कांग्रेस में नयी जान फूंक दी।इसके अलावा किसानों-मजदूरों, छात्रों, आम लोगों की तमाम यात्राओं का जिक्र आपको मिल जाएगा।
सवाल•••
क्या वास्तव में राहुल गाँधी भारत जोड़ो यात्रा में सफल हो पाये हैं?
क्या राहुल गाँधी जनता से खुद को जोड़ पाये हैं?
क्या 2024 के आम चुनाव में इस यात्रा का लाभ कांग्रेस को मिल पायेगा?
क्या राहुल गाँधी की छवि एक संघर्षशील जननेता की बन पायेगी?
क्या वास्वत में राहुल गाँधी मोदी का विकल्प बन पायेंगे?
क्या यात्रा का सामाजिक दायरा राजनीतिक बदलाव की ओर रूख कर पायेगा?
क्या यात्रा से देश में गुटबाजी में बंटी कांग्रेस एकजुट हो पायेगी?
क्या अर्थशास्त्री रघुराम राजन का सदुपयोग कांग्रेस कर पायेगी?
क्या देश में भाजपा का विकल्प कांग्रेस बन पायेगी?
क्या कांग्रेस देश की जनता की नब्ज पकड़ पायेगी?
क्या राहुल गाँधी का पैदल चलना सफल हो पायेगा?
सवाल और भी बहुत से हो सकते हैं। जिस तरह से भाजपा भारत जोड़ो यात्रा पर आक्रामक है और उनके नेता बयानबाजी करते दिख रहे हैं, उससे लगता है कि कहीं न कहीं यात्रा का दायरा व्यापक हो रहा है। राहुल गाँधी की सादगी और लोगों से मिलने के जज्बे को जनता पसंद तो कर ही रही है। कोरोना के आतंक के चलते और नोटिस प्राप्ति के बाद राहुल गाँधी वर्ष 2023 में पुनः यात्रा शुरू कर पायेंगे, इस पर अभी संशय है।