आम आदमी पार्टी 2022 में उत्तराखण्ड में विधानसभा चुनाव लड़ेगी। अरविन्द केजरीवाल की इस घोषणा के साथ ही राज्य में राजनीतिक सरगर्मी बढ़ी है। आप नेता जगह-जगह प्रेस कांफ्रेंस करके फ्री स्कीम की पोटली खोल रहे हैं। दिल्ली सरकार के काम गिना रहे हैं। कांग्र्रेस-भाजपा के खिलाफ आप को तीसरे विकल्प के रूप में पेश कर रहे हैं। कांग्रेस-भाजपा में उपेक्षित नेता भी ‘आप’ में अपनी जगह तलाश रहे हैं। आप भी उत्तराखण्डियों में राजनीतिक चेतना के विकास की जगह फ्री स्कीम का सब्जबाग दिखाकर अपनी पैंठ बनाने की राह में है। जैसा कि अब तक की सरकारें और पार्टियां करती रही हैं। शायद यह तरीका सरल हो, लेकिन इससे उत्तराखण्ड के न्यायसंगत, वैज्ञानिक और पर्वतीय राज्य के हिसाब से विकास का कोई रास्ता नहीं निकलता दिख रहा है। आत्मनिर्भर-सशक्त उत्तराखण्ड के लिए ‘आप’ का रोड मैप भी नाकाफी है। आप का उत्तराखण्ड में विकल्प बनना आसान नहीं है।
बीस साल के उत्तराखण्ड में कांग्रेस-भाजपा को लगभग बराबर-बराबर शासन करने का मौका मिला है। राज्य की बुनियादी स्थिति सुधरने के वजाए बद से बदत्र होती गयी। पलायन, रोजगार, कृषि, बागवानी, शिक्षा, चिकित्सा, खनन, अर्थव्यवस्था, पर्यटन के मससे और भी जटिल हुए हैं। सरकार में माफियाओं का बर्चस्व बढ़ा है। लूटो-खाओ की तर्ज पर दोनों पार्टियों की सरकारों ने राज्य को दयनीय स्थिति में ला दिया है। जनता त्रस्त है और भाजपा-कांग्रेस का विकल्प खोज रही है। यह बात सही है, लेकिन कौन सशक्त विकल्प हो सकता है, इस पर संशय है। क्षेत्रीय दल अपनी विश्वसनीयता खो चुके हैं। उनका अवसरवादी चेहरा कांग्रेस और भाजपा दोनों के साथ देखा जा चुका है। हिमालयी राज्य की अवधारणा के उलट सब कुछ पूँजी और माफिया गिरोह के हवाले करने की राह पर चलते हुए अब तक की सरकारों ने प्रदेश को नीलामी के कगार पर ला दिया है।
राज्य की अन्य संघर्षशील ताकतें, सामाजिक कार्यकर्ता, संगठन जो उत्तराखण्ड की बेहतर समझ-बूझ रखते हैं, जिनके पास राज्य के सुनियोजित विकास का उपयुक्त रोल माॅडल है, वे सभी हाशिए पर हैं। जनता ने उन्हें कभी स्वीकार ही नहीं किया, कहना गलत न होगा। चुनौतियां बेशुमार हैं। उत्तराखण्ड की परिस्थितियां दिल्ली से बहुत जुदा हैं। हिमालयी राज्य की जन अवधारणा को समझे बगैर किसी विकल्प पर सोचना भी बेमानी है। दिल्ली में बैठकर लिए गये निर्णय उत्तराखण्ड के लिए पर्याप्त नहीं हैं। ऐसे में 2022 में आप का भविष्य उत्तराखण्ड में क्या होगा? यह तो आने वाला समय ही बताएगा, लेकिन इतना तय है कि एकला चलो की आप की नीति राज्य में कांग्रेस-भाजपा की जड़ों में मट्ठा डालने के लिए नाकाफी है।
कोरोना महामारी के दौर में जब प्रदेश की स्थिति दयनीय है, तब सर्वे के आधार पर चुनाव लड़ने का एलान करना हास्यास्पद है। आप की कार्यनीति पर कई सवाल खड़े होते हैं। राज्य में व्यापक सर्वे की बात कहना झूठ है। सवाल उठता है कि जब पहले ही दिन से आप झूठ और हल्के प्रोपोगैंडा का इस्तेमाल कर रही हो, तो आगे उनसे क्या उम्मीद की जाये? आम आदमी पार्टी ने राज्य में सर्वे कब किया? सर्वे में कौन-कौन से इलाके शामिल किये गये? कितने लाख उत्तराखण्डियों की राय ली गयी? सर्वे किसी अन्य संस्था द्वारा किया गया या फिर पार्टी ने खुद किया? किन बिन्दुओं को सर्वे में शामिल किया गया? उत्तराखण्ड के किन विद्वानों और जानकारों से मिलकर प्रश्नावली तैयार की गयी? पब्लिक आॅपिनियन को सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया? दिल्ली में मौजूद साधन संपन्न, बड़े पैसे वाले पहाड़ियों तक ही तो सर्वे नहीं सिमटा है?
उत्तराखण्ड के संचालन की आप नीति क्या होगी? मुफ्त बिजली-पानी देने भर की घोषणा से राज्य की जनता आप पर यकीन कर ले? उत्तराखण्डी आप को ही क्यों विकल्प चुने, इस पर व्यापक बहस क्यों नहीं करायी गयी? पहाड़, भाबर और तराई के अलग-अलग मसले व समस्याएं हैं, इस पर आप का क्या अध्ययन है? भ्रष्टाचार को कैसे रोकेंगे? जमीन माफियाओं पर नकेल कैसे कसेंगे? ऊर्जा, पेयजल, राशन, सड़क, यातायात को कैसे दुरूस्त करेंगे? गैरसैंण राजधानी पर आप की क्या राय है? पर्वतीय क्षेत्रों के लिए एकीकृत औद्योगिक प्रोत्साहन नीति क्या होगी? सीमान्त क्षेत्रों तक कुटीर और छोटे उद्योगों को कैसे पहुँचायेंगे? सरकारी शिक्षा में क्या परिवर्तन किये जायेंगे? चिकित्सा सुविधाओं को पहाड़ के अन्तिम छोर तक कैसे पहुँचायंेगे? तमाम नीतिगत प्रश्न हैं, जिनका जवाब दिये बगैर चुनाव लड़ने की घोषणा करना कोरी बकवास नहीं तो और क्या है? सर्वे के नाम पर छलावा से आप की विश्वसनीयता को बट्टा लगा है।
राज्य के क्षेत्रीय दल, प्रगतिशील दल, वामपंथी दल, सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं और संगठनों ने दिल्ली चुनाव में हर बार आम आदमी पार्टी का खुलकर समर्थन किया है। आज उन सबको किनारे करके आप प्रदेश में विकल्प नहीं बन सकती। भाजपा-कांग्रेस की जड़े इतनी मजबूत हैं कि उन्हें एकाएक पटखनी देना इतना आसान नहीं है। उत्तराखण्ड में एक सशक्त मोर्चा ही भाजपा-कांग्रेस का विकल्प हो सकता है। आप को तीसरे विकल्प की जगह मोर्चे की ओर बढ़ना चाहिए।
भाजपा और कांग्रेस में बैठे राजनेता रंग बदलकर लगातार सत्ता का मजा लेते हुए राज्य और जनता को लूट रहे हैं। क्या इन नेताओं में उपेक्षितों को अपने साथ लेकर लूट-खसोट का वैकल्पिक गिरोह बनाना आप का मकसद है? या फिर जनप्रतिबद्ध, ईमानदार लोगों को लेकर, जो भले ही अलग-अलग क्षेत्रीय दलों, विचारधाराओं और संगठनों से जुड़े हों, उनका साझा मोर्चा बनाकर कांग्रेस-भाजपा गठजोड़ के सत्ता वर्चस्व को ध्वस्त कर उत्तराखण्डी नया राजनीतिक विकल्प देने की आप की कोई राजनीतिक सदिच्छा और चुनाव जीतने की जमीनी रणनीति है?
-रूपेश कुमार सिंह
स्वतंत्र पत्रकार
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