गाँधी को तुम कहां मार पाओगे वे••••
-रूपेश कुमार सिंह
“आज गाँधी जयन्ती है•••”
•••बात यहां से शुरू होती थी और सड़क के दोनों ओर गू से पटी घास व झाड़ियों को उखाड़ कर खत्म होती थी।
तब हमारे स्कूल के इर्द-गिर्द नहर की पगडण्डी और सड़क के दोनों ओर मुहल्ले के लोग खुले में टट्टी फिरते थे।
वैसे तो समय-समय पर मास्साब बच्चों को साफ-सफाई व लोगों को सड़क किनारे न हगने के लिए प्रेरित करने में लगाये रहते थे, लेकिन 2 अक्टूबर, गाँधी जयन्ती के दिन विशेष अभियान चलाया जाता था।
सैकड़ों बच्चे साफ-सफाई व खुले में न हगने के लिए घर-घर जाकर स्वयं के बनाये पर्चे देते थे। लोगों को खुले में शौच न करने का आग्रह हाथ जोड़कर करते थे।
मजाक बनाने वालों और गोडसे को मानने वालों की तब भी कमी नहीं थी, लेकिन विचारों की उग्रता नहीं थी। हम अपना काम करते थे। हमें मालूम था कि जिसके हाथ में हम सड़क किनारे न हगने वाला पर्चा गाँधी की फोटो के साथ वाला देकर आये हैं, अगली सुबह वो उसी पर्चे से अपना पिछवाड़ा साफ करेगा। लेकिन मास्साब की गहरी बात हम बच्चों के दिल-दिमाग में उतरती थी, कि एक दिन लोग जरूर जागरूक होंगे, तब तक के लिए लगे रहो। हुआ भी ऐसा। साल दो साल में लोगों ने खुले में हगना छोड़ दिया।
कुछ लड़के- लड़कियां स्कूल से लेकर मैन रोड तक लगभग चार सौ मीटर तक की सड़क साफ करते थे। सड़क किनारे की झाड़ियां काटते थे, झाड़ू लगाते थे। लोगों के मल-मूत्र भी साफ करने में तब हमें घिन नहीं आती थी।
गाँधी को याद करने का अपना-अपना तरीका था। आज भी है। मास्साब इस दिन बच्चों को अपने आसपास के पर्यावरण और साफ-सफाई से जोड़ने का काम करते थे।
गाँधी को मारने की कोशिश न तब कामयाब हुई थी न आज होगी। शरीर आज है कल नहीं होगा। गोडसे के बस में गाँधी को खत्म करना न तब संभव था, न आज गोडसे के वंशजों के लिए मुमकिन है। गाँधी से वैचारिक मतभेद अपनी जगह है, लेकिन उन्हें राष्ट्र विरोधी करार देने की फासिस्ट कोशिश कभी कामयाब नहीं हो सकती।
आज बहुत सारे नेताओं के फोटो झाड़ू लगाते हुए फेसबुक पर देख रहा हूं। अबे पहले अपने मन की गंदगी को साफ करो, फिर बाहरी आवरण पर आना। तुम्हारे भीतर के छल-कपट-प्रपंच ने देश को बर्बाद कर दिया है। फासीवादी ताकतें गाँधी को मार सकती हैं, लेकिन गांधीवाद को नहीं।
मैंने तो आज सुबह अपने घर का पाखाना साफ किया और तय किया कि देश और दुनिया में मौजूद सारी गंदगी को उखाड़ फेंकने के संघर्ष में शामिल रहूंगा।
काश! आज भी स्कूल बच्चों को वास्तविक गाँधी से रूबरू करा रहे होते तो कितना बेहतर होता। बच्चे अगर गंदगी साफ करने को निकलते तो कम से कम ये तथाकथित नेता झाड़ू लेकर दिखावे के लिए न निकल पाते•••
गाँधी जी को नमन!
आपका-
रूपेश कुमार सिंह