“पश्चिम पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान से विस्थापित होकर आये सिख/पंजाबी समाज व बंगाली समाज की तकलीफों की तुलना नहीं की जा सकती। दोनों के विस्थापन की वजह एक थी, लेकिन स्थितियां भिन्न-भिन्न थीं। बंगाली समाज अभी भी बहुत पिछड़ा और उत्पीड़ित है। असम में 75 फीसदी हिन्दू बंगाली 1976 से संदिग्धता का दंश झेल रहे हैं। उड़ीसा, छत्तीसगढ़ व उत्तर प्रदेश में बंगाली बसासत की स्थिति भी बहुत ठीक नहीं है। पीलीभीत के डूब क्षेत्र में बंगाली बसाए गये जो आज भी बरसात में कैम्पों में रहते हैं। सड़कें नहीं हैं उनके गाँव में। उत्तराखंड के बंगाली समाज की स्थिति अपेक्षाकृत बहुत बेहतर है। बंगालियों के इतिहास को जानने में #छिन्नमूल यकीनन बहुत मददगार होगी।”
तिलक राज बेहड़ विधायक, किच्छा, ऊधम सिंह नगर
अविभाजित उत्तर प्रदेश के दो बार और उत्तराखंड में तीन बार विधायक चुने गये तिलक राज बेहड़ ने आज तराई में बसे बंगाली विस्थापित समाज की आपबीती #छिन्नमूल के लिए लेखक #रूपेश कुमार सिंह को शाल पहनाकर सम्मानित किया।
बेहड़ उत्तराखंड की चुनी हुई पहली सरकार में सूबे के स्वास्थ्य मंत्री भी रहे। 1988 में रुद्रपुर नगर पालिका में सभासद का चुनाव जीतकर राजनीति की शुरुआत करने वाले तिलक राज बेहड़ तराई के मजबूत स्तंभ माने जाते हैं। वर्तमान में वे किच्छा के विधायक हैं। दमदार नेता हैं।
छिन्नमूल प्राप्त करने के लिए उन्होंने हमें फोन किया। मैं आज अपने सहयोगी #प्रदीप_मण्डल के साथ उनके आवास पर पहुंचा। मिलने वालों की लम्बी कतार लगी थी। पंतनगर के अलावा राइस मिल एसोसिएशन के पदाधिकारी उनसे मुलाकात के लिए पहुंचे थे। करीब पौन घंटा बेहड़ जी से तमाम विषय पर बात हुई। तराई में आवंटित जमीन की अवैध खरीद फरोख्त पर वे जानकारी जुटा रहे हैं। शीघ्र ही जमीन बचाने के लिए आवाज बुलंद करने वाले हैं।
किडनी ट्रांसप्लांट के बाद बेहड़ जी अब पूरी तरह से स्वस्थ हैं और जनता के बीच सक्रिय हैं। बंगाली समाज से उनका खास लगाव रहा है। तराई की तमाम बंगाली कालोनियों में पहली बार सड़क, बिजली, पानी, सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराने के अलावा अन्य मूलभूत सुविधाएं पहुंचाने का श्रेय तिलक राज बेहड़ को ही जाता है। वे #छिन्नमूल पढ़कर हमसे दोबारा बात करेंगे, ऐसा उन्होंने कहा है।
किताब के लिए सम्मानित करने हेतु बहुत बहुत धन्यावाद!
हम चाहते हैं कि जनपद ऊधम सिंह नगर के सभी राजनेता, जनप्रतिनिधि, विधायक आदि #छिन्नमूल के लिए हमें बुलाएं। क्योंकि तराई में बंगाली आबादी बहुत ज्यादा है, लेकिन उसका अध्ययन किसी के पास नहीं है। बिना अध्ययन के समाधान की ओर नहीं बढ़ा जा सकता।
छिन्नमूल बंगाली समाज का पहला दस्तावेज है।
रूपेशकुमारसिंह