जब बच्चे ने मांगी छिन्नमूल

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रविवार को हम चंदिया हजारा के आन्दोलित लोगों के बीच थे। हमें कम समय में बहुत कुछ जानने की उत्सुकता थी, तो गाँव वालों को बहुत कुछ दुखड़ा सुनाने की छटपटाहट। 35 दिन से पूरा गाँव आन्दोलन पर है। नियमित रूप से ग्रामीण भूख हड़ताल पर बैठते हैं, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है।

सांसद, विधायक से लेकर सरकार तक सब कुछ भाजपा का है। चंदिया हजारा में 90 फीसदी बंगाली वोट भाजपा को जाता है, बावजूद इसके उनकी यह दुर्दशा???
वैसे ऊधम सिंह नगर में भी बंगाली समाज दो दशक से भाजपा को एक छत्र वोट कर रहा है, लेकिन बंगालियों को भाजपा से मिला क्या??? सिवाय उपेक्षा के। हिन्दुत्व के नाम पर बंगाली समाज भाजपा का वोट बैंक बनकर रह गया है, लेकिन हिन्दु जाति व्यवस्था के आधार पर बंगाली कहां हैं??? क्या उन्हें उनका वाजिब हक मिल रहा है??? वंण व्यवस्था में विस्थापित बंगाली किस कैटिगरी में आते हैं??? दलित हैं, नमो:शूद्र हैं, लेकिन अनुसूचित जाति का दर्जा नहीं।

खैर! तमाम सारे मसलों पर बातचीत चल रही थी। गाँव की 250 एकड़ जमीन का कटाव इस बार की बरसात में हो गया है। तटबंध और जमीन की मांग को लेकर आन्दोलन चल रहा है। इस वाबत जानकारी ग्रामीण हमें दे रहे थे।

मैं दो साल पहले छिन्नमूल लिखने के दौरान चंदिया हजारा गया था। यह मेरा दूसरा दौरा था गाँव का। कुछ किताबें मैं साथ ले गया था। मौजूद लोग 120₹ सहयोग राशि देकर छिन्नमूल ले रहे थे।

पास में एक मासूम बच्चा बैठे हमारी सारी बातें सुन रहा था। अबोध था। उम्र 12-13 साल रही होगी। चुपचाप हमारी बातचीत गौर से सुन रहा था। अपने और गाँव की हालात को समझ रहा था। वह कुछ देर बाद उठकर वहां से चला गया। हम भी गाँव घूमने निकल लिए। करीब दो घंटे बाद वापस आन्दोलन स्थल पर आए।

देखा बालक हमारा इंतजार कर रहा था। हमें देखकर वो झट से पलाश जी और किशोर मनी के पास आया और बोला, “मुझे भी छिन्नमूल चाहिए।”

मैं ग्रामीण के साथ कुछ दूरी पर बातचीत कर रहा था। बच्चे ने 120₹ दिए और किताब ले ली। शालिनी जी ने किताब देते हुए फोटो ले ली। मेरी नजर उस बच्चे पर पड़ी तो मैंने उसे अपने पास बुलाया।

बच्चा छिन्नमूल ले रहा है, यह मेरे लिए एक लेखक के तौर पर बहुत बड़ा उपहार था। मैंने जब बच्चे से बात की तो हम सब दंग रह गए। वह कक्षा 6 में पढ़ता है। पिता कोरोना में गुजर गए। मां हैं, लेकिन मानसिक तौर पर कुछ कमजोर हैं। मेहनत-मजदूरी करके माँ-बेटा जीवन बसर करते हैं।

“120₹ कहां से लाए?”, मैंने सवाल किया।
“माँ से मांगकर लाया हूं। किताब के लिए।” बच्चा बोला।
हम सब स्तब्ध थे। हमसे कुछ बोलते न बना। बच्चा अपने हालात से लड़ रहा है और बेहतर जिन्दगी के लिए पढ़कर संघर्ष करने के लिए खुद को खड़ा कर रहा है।

120₹ वापस दिए और हम लोग बच्चे को निहारते हुए कुछ समय के लिए सबकुछ भूल कर वहीं ठहर गए।

रूपेश कुमार सिंह
सम्पादक
अनसुनी आवाज

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