त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव: बुनियादी मुद्दों पर क्यों नहीं होती चर्चा?

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गांव के मुद्दों से बेखबर हैं प्रत्याशी, विकास का रोल माॅडल नहीं है किसी के पास

पावर और पैसे का बोलबाला, शक्ति प्रदर्शन व अराजकता से दूषित हो रहा है गांव का माहौल

रूपेश कुमार सिंह

रूपेश कुमार सिंह

कर्मठ, जुझारू, ईमानदार, जनप्रिय, मिलनसार, योग्य, समाजसेवी, शिक्षित, कर्मयोगी, हरदिल अजीज नानाप्रकार के जुमलों से सजे पोस्टरों से इन दिनों उत्तराखण्ड के गांव पटे हुए हैं। इन शब्दों को छोड़कर किसी भी उम्मीदवार के पास लिखने, कहने को कुछ शेष नहीं है। जनता कोई सवाल न कर दे, इसलिए भी जुमलों में उलझाना आज की राजनीति का प्रमुख चलन है। मतदाता भी नेताओं द्वारा दिखाये जा रहे सब्जबाग से बाहर आने को तैयार नहीं हैं। आम चुनाव भी जब विकास और मुद्दों से विमुख होकर जुमलों पर क्रेन्द्रित हो जायें, तो गांव के पंचायत चुनाव में मुद्दे कैसे प्रमुख हो सकते हैं? 

ग्राम स्वराज की मजबूती से दूर हो रहे हैं पंचायत चुनाव

प्रत्याशी कौन है? (कविता)

भारतीय लोकतंत्र की यह सबसे बड़ी नाकामी है कि आजाद भारत में सत्तर साल वोट देने के बाद भी लोग राजनीतिक नहीं हो पाये हैं। चुनाव चाहे लोकसभा-विधानसभा का हो या गांव की संसद का, मुद्दा विहीन ही रहता है। लोग क्षेत्रवाद, जातिवाद, कथित राष्ट्रवाद, धर्मवाद, भाई-भतीजावाद से बाहर नहीं आ पाये हैं। राजनीतिक दल भी इससे बाहर जाकर कुछ करने को तैयार नहीं हैं। यही कारण है कि भारत में वोट देना भी लोग जरूरी नहीं समझते हैं।
इन दिनों उत्तराखण्ड में पंचायत चुनाव चल रहे हैं, लेकिन सिर्फ जुमलों के इर्द-गिर्द ही। वास्तविक और सच्ची बात उठाने और करने को कोई तैयार नहीं है। चुनाव से बुनियादी मुद्दे गायब हैं। गांव की समस्याओं से बेखबर हैं प्रत्याशी। चुनाव लड़ने वाले किसी भी नेता के पास विकास का कोई रोल माॅडल नहीं है। पावर और पैसे का बोलबाला है। शक्ति प्रदर्शन और अराजकता से गांव का माहौल दूषित हो रहा है। ऐसे में गांव की नयी संसद कैसे जनता के प्रति उत्तरदायी बन पाएगी, बड़ा अहम सवाल है।

वास्तव में चुनाव के दौरान गांव में विकास कार्य को लेकर व्यापक चर्चा होनी चाहिए। बहस के बाद एक मसौदा तैयार किया जाना चाहिए। प्रत्येक उम्मीदवार के लिए यह आवश्यक हो कि वो अपने चुनावी वायदों और प्राथमिकताओं को चुनाव से पूर्व ही जनता के बीच सार्वजनिक करे। तब शायद मजबूत ग्राम स्वराज की अवधारणा को पूर्ण किया जा सकता है। आम तौर पर सिर्फ मतदाताओं पर ही प्रत्याशी का ध्यान क्रेन्द्रित रहता है, जबकि गांव में बच्चे भी हैं और किशोर भी। वोट देने में अक्षम लोग भी हैं और बीमार लोग भी। महिलाएं भी हैं और बुजुर्ग भी। उन पर कोई चर्चा क्यों नहीं होती? नाली, निकास, सड़क, बिजली, पानी और सरकारी प्रपत्र तैयार करना ही पंचायत का काम नहीं है। यदि जनप्रतिनिधि या गांव का प्रधान सशक्त और दूरदर्शी हो तो बहुत सारे काम गांव में किये जा सकते हैं। मेरी नजर में जो काम गांव में किये जाने चाहिए, जिन पर चुनाव में चर्चा होनी चाहिए, जो मानव समाज को विकसित करने और नैतिक तौर पर इंसान के उत्थान के लिए जरूरी हैं, उन मुद्दों को मैं यहां रख रहा हूं।

  •  गांव में होने वाले विकास कार्यों में पारदर्शिता बरतें। गांव के लोगों की निगरानी एवं संरक्षण में ही कार्य कराये। इससे भ्रष्टाचार कम होगा और लोगों में जागरूकता आएगी।
  •  गांव के स्कूलों को सुसज्जित और आधुनिक बनाने का काम करें। इसमें आम लोगों का सहयोग भी लिया जाना चाहिए। सिर्फ सरकारी कार्यक्रम के भरोसे बैठे रहने से कुछ नहीं होगा।
  •  गांव के लोगों, खास तौर पर युवा पीढ़ी को पठन-पाठन से जोड़ने के लिए एक छोटी लाइब्रेरी का बनना प्रत्येक ग्राम सभा में जरूरी है। जिसमें साहित्य की किताबें मौजूद हो और शाम को बैठकर बच्चे रचनात्मक काम भी कर सकें।
  • नशे की जकड़ से युवाओं को दूर करने के लिए नियमित रूप से कार्यक्रम चलाने चाहिए। जिसमें एनजीओ की मदद भी ली जा सकती है।
  • एक ऑडिटोरियम या बारात घर प्रत्येक गांव में बनना चाहिए। जिससे सार्वजनिक कार्यक्रमों को सुव्यवस्थित तौर पर किया जा सके।
  • लघु उद्योगों और सामूहिक उत्पादन कामों को बढ़ावा देना चाहिए। जिससे गांव के भीतर ही रोजगार मुहैया कराया जा सके। पलायन पर रोक लगेगी।
  • सोलर लाइट के इस्तेमाल पर जोर देना चाहिए। इसकी व्यवस्था गांव के लोग अपने स्तर पर करें, ऐसा सामूहिक कार्यक्रम बनाना चाहिए।
  • प्रत्येक ग्राम सभा में सामूहिक तौर पर साल भर में होने वाली पूजा-पाठ के खर्च को कम करके सामाजिक जरूरत के उपकरण जुटाने चाहिए। मसलन यदि एक गांव में पूरे साल में दस लाख के सामूहिक कार्यक्रम होते हैं, तो उसमें दो लाख बचा कर एम्बुलेंस ली जानी चाहिए। इसी तरह हर साल एक महत्वपूर्ण चीज को जोड़ा जा सकता है।
  • गांव के तालाब और मैदान को साफ और सुरक्षित रखने के लिए गांव में महिलाओं और युवाओं की टीम बनानी चाहिए।
  • महीने में एक दिन गांव के प्रत्येक व्यक्ति को गांव के विकास के लिए श्रमदान करने के लिए तैयार करना चाहिए।
  • सांस्कृतिक, शारीरिक और साहित्यिक कार्यक्रम को नियमित तौर पर कराना चाहिए।
  • प्रतिभाशाली बच्चों को आगे लाने के लिए गांव के स्तर पर सबकी मदद से आगे बढ़ाना चाहिए।
  • चिकित्सा के लिए सरकारी अस्पताल या निजी क्लीनिकों को गांव की सहभागिता से जोड़ना चाहिए। नियमित कैम्प भी लगाये जाने चाहिए।
  • गांव के पढ़े-लिखे युवक-युवतियों को गांव की पंचायत और काम काज से जोड़ना चाहिए।
  • छोटी उम्र में शादी के खिलाफ गांव वालों में जागरूकता के लिए एनजीओ के माध्यम से लगातार संवाद कराना चाहिए।
  • पेड़, पौधों और हरियाली की ओर लोगों का ध्यान क्रेन्द्रित करना चाहिए।
  • गांव में हर साल विलेज फेस्टिवल किया जा सकता है। जिससे गांव के युवाओं में जोश आयेगा।
  • युवक मंगल दल को मजबूत करना चाहिए।
  • सरकारी भूमि के संरक्षण के लिए सभी को सचेत करने की आवश्यकता है।
  • सरकारी योजनाओं के प्रचार-प्रसार और जनपयोगी बनाने के लिए ठोस काम करने की जरूरत है।
  • विधायक निधि, सांसद निधि व अन्य निधि को अधिक से अधिक गांव तक लाने का प्रयास करना चाहिए।
  • शिक्षा पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है।

इसके अलावा भी गांव की परिस्थिति के हिसाब से प्रत्येक गांव में अलग-अलग मुद्दे हो सकते हैं। सवाल उठता है कि कहना आसान है, लेकिन यह सब होगा कैसे? सीधी सी बात है दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है। जनता के सीधे हस्तक्षेप से उपरोक्त सारे काम हो सकते हैं। बशर्ते जनप्रतिनिधि और प्रधान की इच्छा शक्ति में ईमानदारी हो। यदि हमारे चुनाव मुद्दा आधारित होने शुरू हो जायें, तो वास्तव में हम तेजी से गांव को विकसित कर सकते हैं। और जब गांव खुशहाल होंगे तो देश अवश्य प्रगति करेगा।
09412946162

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