गैरसैंण राजधानी बनने से क्या होगा?
निराशा ! उदासी ! क्षोभ ! असंतोष ! आन्दोलन !…………
यह तस्वीर है अपनी स्थापना के 18 वर्ष पूर्ण कर रहे उत्तराखण्ड की। जिस राज्य को हासिल करने के लिए यहां की जनता ने लम्बा संघर्ष किया और कुर्बानियां दीं, महज 18 साल में ही जनता के भीतर उस राज्य के गठन की सार्थकता पर चर्चाएं तेज होने लगी हैं। ‘‘इससे तो उत्तर-प्रदेश में ही ठीक थे’’ , जैसी बातें आम हैं। वास्तव में 18 साल में नौ मुख्यमंत्रियों की फौज, सत्तर विधायकों, अफसरों, दलालों, माफियाओं की नयी जमात के सिवाय राज्यवासियों को मिला ही क्या है? सरकारी प्रचार तंत्र भले ही चैतरफा विकास और खुशहाली के आंकड़ों की बाजीगरी में मस्त हो, पर लोग जानते हैं कि असलियत क्या है।
राजनीतिक इच्छा शक्ति का न होना ही जिम्मेदार
उत्तराखण्ड पृथक राज्य आन्दोलन जिन मूलभूत अवधारणाओं के साथ शुरू हुआ और परवान चढ़ा, वे सभी आज तक अधूरी हैं। बल्कि यह कहा जाये कि हाशिए से भी परे धकेल दी गयीं हैं, गलत न होगा। कांग्रेस-भाजपा दोनों ही बड़े राष्ट्रीय दलों ने लगभग बराबर-बराबर शासन किया है, लेकिन हालात नहीं सुधरे। उत्तराखण्ड के अन्तिम गांव तक विकास क्यों नहीं पहुंचा? इसके लिए राजनीतिक इच्छा शक्ति का न होना ही जिम्मेदार है। भय, भूख, भ्रष्टाचार, दलालों और माफियाओं से मुक्ति की छटफटाहट में जन्मे उत्तराखण्ड में आज सबसे ज्यादा चांदी काटी जा रही है तो इन्हीं के द्वारा।
ठगा रह गया उत्तराखण्डी
आज प्रत्येक उत्तराखण्डी स्वयं को ठगा-सा महसूस कर रहा है। आन्दोलन का स्वर फिर से मुखर हो रहा है। इस बार जनता राजधानी गैरसैंण के लिए लामबंध हो रही है। कायदे में राज्य गठन के समय ही देहरादून की जगह गैरसैंण को राजधानी बनाया जाना चाहिए था। लेकिन प्रपंच के तहत तत्कालीन समय में भाजपा ने गैरसैंण से लोगों का ध्यान हटाकर नवगठित राज्य निर्माण के जश्न की ओर कर दिया। बाद में गैरसैंण सिर्फ एक मुद्दा बनकर रह गया। गैरसैंण राज्य का केन्द्र है। आन्दोलन के दौरान गैरसैंण को राजधानी के तौर पर ही गतिविधियों में शामिल रखा गया। राजधानी के रूप में लगातार गैरसैंण की चर्चा होती रही है। गैरसैंण का राजधानी के रूप में डवलप होना जन भावना और सामरिक महत्व से भी जरूरी है।
गैरसैंण राजनीतिक मसला है
एक बार फिर नये जोश के साथ गैरसैंण का मुद्दा उठाया जा रहा है। गैरसैंण राजनीतिक मसला है। इसलिए संघर्ष भी राजनीतिक होना लाजिमी है। लेकिन सवाल उठता है, ‘‘क्या गैरसैंण राजधानी बनने से सारी समस्याओं का समाधान हो जायेगा?, क्या पृथक राज्य की मूल अवधारणा साकार हो पाएगी?, जो हस्र उत्तर-प्रदेश से अलग होकर उत्तराखण्ड का हुआ, क्या वही हाल देहरादून से राजधानी गैरसैंण शिफ्ट होने पर नहीं होगा?, सिर्फ राजधानी के मुद्दे पर जनता को उलझाकर सत्ता पक्ष बाकी बड़े सवालों से लोगों को काटने की जुगत में तो नहीं है?, क्या वास्तव में गैरसैंण आम उत्तराखण्डी की मांग है या फिर कुछ आन्दोलनकारी ही इसे मुद्दा बनाये हुए हैं?, सिर्फ गैरसैंण राजधानी बनने से क्या उत्तराखण्ड खुशहाली और विकास के रास्ते पर दौड़ने लगेगा?
शेष अगले भाग में…………………
-रूपेश कुमार सिंह