कोरोना काल से- गुफ्तगू/पैदल रिपोर्टिंग 

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-रूपेश कुमार सिंह
“शहर रहने लायक बचे नहीं हैं। छोटे कस्बे और गाँव ही मुफ़ीद हैं। काश! हम भी गाँव वापस लौट पाते।”

जाने-माने कवि मदन कश्यप जी कल पलाश विश्वास जी से मोबाइल पर बतिया रहे थे। बोले, “दिनेशपुर तराई का सबसे अच्छा इलाका है, वहीं किराये पर कमरा दिला दो।” मैं गुफ्तगू सुनकर मुस्कुरा भर दिया। बंद जुबान ‘आओ स्वागत है’ का भाव पास कर दिया। 
वास्तव में पूँजी केन्द्रित बेतरतीब विकास के तहत हमारी अब तक की सरकारों ने शहरीकरण के नाम पर जो नगरीय जीवन का सब्जबाग दिखाया है, वो बहुत ही नारकीय और खोखला है। हमारी सरकार कभी गाँव और
किसान पर केन्द्रित हुईं ही नहीं। असल हिन्दुस्तान तो अभी भी गाँव में बसता है। 
कोरोना के बहाने ही सही लाखों-लाख लोग गाँव को वापसी कर रहे हैं। असल में कृषि को हमें अपना मुख्य व्यवसाय बनाना होगा। साथ ही लघु और मध्यम उद्यमों को गाँव में शिफ्ट करना होगा। लोगों को गाँव में ही रोजगार उपलब्ध कराना होगा। किसान और मजदूरों को मजबूत बनाना होगा। तभी भारत सही दिशा में प्रगति कर पायेगा। 
गाँव और किसान सुरक्षित और संगठित होंगे, तभी शहर और बड़े नगर व्यवस्थित होंगे, प्रगति करेंगे। गाँव और किसान की उपेक्षा शहर के लिए शुभ संकेत नहीं है। अब तक जो किया सो किया, अब तो जाग जाइए सरकार! 
गाँव और किसान की बात करने वाले साहित्यकार जो दिल्ली जैसे बड़े-बड़े शहरों में रच-बस गयें हैं, उनका लगाव भी गाँव और किसान के प्रति छद्म है। कोई सरोकार है नहीं उनका। बातों में चमकते रहें इसके लिए ढोंग चाहें कितने भी कर लो, लेकिन कथित साहित्यकारों तुमने भी जमीन को छोड़ा है और बाद में उसे अपनी मजबूरी करार देकर घड़ियाली आँसू बहा कर किताबों में चमकने की भरपूर कोशिश की है। तुम इतराते रहे हो शहरी होने पर। 
आज भी बहुत से नये लिखने-पढ़ने वाले तुम्हारे नक्शे कदम पर तथाकथित शहरी होकर बड़े लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता बनने को धूर्तता का पहले का कायदा पढ़ रहे हैं । खैर, वक्त है सबको नये सिरे से गाँव और किसान पर चिन्तन मंथन करना चाहिए। यह संवाद तो चलता रहेगा। इस बीच खुशी की बात यह है कि दिनेशपुर से नैनीताल की पहाड़ियाँ बहुत साफ-साफ दिखने लगीं हैं एक बार फिर से, तकरीबन 10-12 साल बाद। 
आज शाम मौसम बहुत खुशनुमा है। सब कुछ अच्छा अच्छा लग रहा है। कहीं दिल के एक कोने में कोई बेचैनी बनी रहती है, पता नहीं क्यों। शाम को बड़े भाई हरजीत सिंह जी को मास्साब की किताब दी। आप मास्साब के स्टूडेंट रहे हैं। 1996 में हरजीत भैया ने समाजोत्थान संस्थान से हाईस्कूल किया था। यह पहला बैच था हमारे स्कूल में दसवीं का। 
आज के राजनीतिक माहौल और पत्रकारिता के अपराधीकरण पर बातचीत हुई। मेरे पुराने मित्र असित समद्दार जी भी आफिस आकर किताब ले गये थे। 
नगर के एक कथित पत्रकार का मानव को कलंकित करने का मामला सुर्खियों में है। चौतरफा पत्रकारों की थू-थू हो रही है। खैर, अब मीडिया में दलाल और अंध राष्ट्रवादियों की ही जरूरत है। चोर उचक्कों और बदमाशों की भरमार है पत्रकारिता में। 
वास्तव में यह दौर बहुत कुछ सबक लेने का दौर है।
उम्मीद है कि कोरोना के लाकडाउन के बाद सरकार, प्रशासन, आम जनमानस और हर कोई प्रकृति का सम्मान करते हुए जीवन को व्यवस्थित और वैज्ञानिक बनाने की दिशा में अग्रसर होगा। 
मध्य रात्रि मौसम घिर आया। भयंकर आँधी तूफान के साथ मुसलाधार बारिश सवा दो बजे शुरू हुई और सुबह के चार बजे तक चलती रही। मौसम में एकाएक ठंडक बढ़ गयी है। फसल को नुकसान पहुंचना लाजिमी है। लेकिन किया भी क्या जा सकता है। साढ़े चार बजे मैंने भी फेसबुक खोल ली और •••
“मुर्गे दबड़ों से बाहर आने को बांग दे रहे हैं। कोयल कूक रही है। कौवे काऊं-काऊं कर रहे हैं। चिड़िया चहक रही हैं। बरसात थम चुकी है। कोमल ठंडी हवा बह रही है। बत्ती गुल है। मच्छर सूत रहे हैं। जो फ़ेसबुकिया स्टेटस खोज चुके हैं, वो चादर तान के टांग उठाकर सो जाओ। 
गुड मार्निग!शुभ रात्रि!दोस्तों!” 
(पोस्ट लिखकर साढ़े पाँच बजे मैं भी चादर तान कर सो गया।)
(10-05-2020)
-रूपेश कुमार सिंह समाजोत्थान संस्थान दिनेशपुर, ऊधम सिंह नगर, उत्तराखंड9412946162

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