कहानी
पगलू और पगली
–रूपेश कुमार सिंह
(1)
‘‘कहाँ गायब हो गए…?’’ जवाब न आने पर पगली ने उखड़ते हुए पगलू के मोबाइल पर मैसेज किया। ‘‘मर गये…।’’ पगलू का पलट जवाब आया।
(दोनों के बीच व्हाट्सएप पर चेटिंग शुरू हो गयी।)
‘‘अरे अभी तो चेट कर रहे थे, अचानक निकल लिए….? ऐसे भी कोई मरता है भला…?’’
‘‘हम तो रोज जीते-मरते हैं। जब मन होता है, जी लेते हैं और जब दिल करता है, मर कर भी देख लेते हैं। कहीं पढ़ा था, ‘‘कुछ नहीं सोचने और कुछ नहीं करने से इंसान मर जाता है।’’ बाकी जिन्दा लाश बने रहने वालों में मैं नहीं हूँ।’’
‘‘मुझे पता है, टेक केयर। वैसे आज शराब ज्यादा पी ली है क्या…?’’
‘‘पी रहे हैं अभी…’’
‘‘रात ग्यारह बजकर तेरह मिनट हो रहे हैं… अभी भी चालू हो…? ओह… तुम भी न…’’
‘‘थोड़ी देर में काल करेंगे तुम्हें…दोस्तों के बीच हूं… वैसे प्यार तो तुम मुझसे करती नहीं हो, कोई नहीं।’’
‘‘ अरे! प्यार पर तो हर प्राणी का हक है…खैर वो छोड़ो…‘‘तुम्हारे पास गानों का कलेक्सन अच्छा है।’’
‘‘रहने दो, हम तो बेकार हैं न?’’
‘‘वो तो आपके माता-पिता की कृपा है।’’
‘‘उन्होंने तो बहुत मेहनत की थी हम पर, हम ही बेकार निकले।’’
‘‘नहीं यार… हैंडसम तो हो, अच्छे हो, तुम यकीनन बहुत प्यारे हो।’’
‘‘तो फिर हमारे साथ ‘‘लिव-इन’’ में रहोगी?’’
‘‘पागल हो तुम…?’’
‘‘हाँ, पागल तो हूँ। सोच समझकर जवाब देना।’’
‘‘हम एक बार रिश्ते में रह चुके हैं… पहले भी बताया है न तुमको!’’
‘‘तो इसमें क्या है…? ‘‘दोबारा नहीं रह सकती?’’
‘‘टूट जाने को, बिखर जाने को एक बार फिर से…? हम से न होगा।’’
‘‘बनना-बिगड़ना तो जिन्दगी भर लगा ही रहता है। स्थिरता में भी कोई मजा है भला? तुम ‘हां’ या ‘न’ में जवाब दो!’’
‘‘न’’
‘‘ओके! कोई नहीं। तुम्हारा अपना निर्णय है।’’
‘‘शायद हम अच्छे दोस्त बनकर रह सकते हैं।’’
‘‘यहाँ भी शायद…? शायद को कन्फर्म कर लो पहले… ठीक है।’’
‘‘शायद को बनाये रखो इत्तेफाक की तरह।’’
‘‘दोस्ती में कोई बुराई है क्या?’’ चलो मिलकर बात करेंगे…वैसे एक बात कहें, ‘‘दोस्त तुम हर लिहाज से अच्छे हो।’’
‘‘यूं तो मैं दुनिया का दोस्त हूं, और पूरी दुनिया को अपना सखा मानता हूँ।’’
‘‘मुझे पता है, तुमको चाहने वालों की कोई कमी नहीं है। हम भी उस चाहत में शामिल हैं, लेकिन…’’
‘‘हम बहुत कमीने हैं, और कुत्ते भी… हमने कहाँ था तुमको।’’
‘‘तो अब क्या करोगे…? फिर से ब्लॉक कर दोगे मुझे?’’
‘‘वो जो हमारा मन होगा वो करेंगे। उसके लिए किसी की इजाजत की जरूरत नहीं।’’
‘‘ओके… आप नाराज न हों।’’
‘‘शराबी आदमी का क्या है…वो और उसकी शराब, जो तय कर दे। हो सकता है हम तुमको तलाक ही दे दें।’’
‘‘अब ट्रिपल तलाक का जमाना नहीं है प्यारे…’’
‘‘बीवी को छोड़ने के लिए कानून में जाना होता है, प्रेमिका को छोड़ने के लिए नहीं।’’
‘‘जानते हैं… ठीक है, आप अपनी जगह बने रहो। हमें अपने हालात पर छोड़ दो।’’
‘‘तभी बोले थे आपसे, मुझमे और तुममे बहुत अंतर है।’’
‘‘हर इंसान अलग होता है।’’
‘‘तुमसे लगा था कि कुछ प्यार मिलेगा, लेकिन वो सोचना खाक था। बाकी जिन्दगी तो अकेले ही बितानी है।’’
‘‘क्या प्यार ‘लिव-इन’ में ही मिलता है…? उसे प्यार नहीं सेक्स कहते हैं प्यारे!’’
‘‘और सेक्स को क्या कहते हैं…? हमें न सिखाओ…। साढ़े बारह बज गये हैं, चलो सो जाओ।’’
‘‘अच्छा एक बात पूछें।’’
‘‘मत पूछो…।’’
‘‘अरे! सामान्य प्रश्न है।’’
‘‘सामान्य प्रश्न सामान्य लोगों से पूछो। हम सामान्य नहीं खास हैं, अपने आप के लिए ही सही।’’
‘‘मूवी तो साथ देखने जा सकते हैं? या वो भी खास लोगों के साथ जाओगे?’’
‘‘मैं सिर्फ खास मूवी ही देखता हूँ।’’
‘‘तुम्हारी पसंद की मूवी, बस साथ हमारा…?’’
‘‘वो हम अपनी पसंद के साथ देखेंगे।’’
‘‘ओके, जैसी आपकी मर्जी… शुक्रिया… वैसे तुम्हारे पास हमसे बेहतर और नायाब नगीने मौजूद हैं।’’
‘‘हमारे पास क्या है, हम बेहतर से जानते हैं। तुमको बताने की आवश्यकता नहीं है।’’
‘‘उफ्फ! तौबा… तौबा… तुम भी न प्यारे… अब तुमको चढ़ने लगी है। कसम से, कयामत से कम नहीं हो तुम।’’
‘‘वो क्या है हमारे सामने?’’
‘‘प्यारे! हमें तुम्हारी आदतों से कोई एतराज नहीं है और शराब बुरी चीज भी नहीं है।’’
‘‘चलो रहने दो…हम जैसे सड़क छाप आवारा के मुँह लगना बेकार है।’’
‘‘तो क्या करें…?’
‘‘बदलाव…।’’
‘‘बदलाव की जरूरत हमें नहीं है, हम ऐसे ही हैं और रहेंगे।’’
‘‘ठीक कहती हो! हममे है बदलाव की जरूरत… और हम बदलेंगे अपने आप को।’’
‘‘हम तो शुरू दिन से ही तुमसे अच्छे दोस्त की तरह मिले हैं, प्रेम भी है तुमसे… बाकी तुम क्या सोचते हो, तुम जानो। बस इतना उखड़ा न करो हमसे… प्लीज पगलू। ओह! तुम तो वास्तव में ही निकल लिए… अब में क्या कहूं तुम्हें रात एक बजकर सात मिनट पर…।’’
(रात में व्हट्स एप पर नोंक-झोंक दोनों के बीच आम हो चली थी। समझते गहरे से थे एक-दूसरे को, इसलिए उखड़ते थे, लड़ते थे और प्रेम भी करते थे भरपूर। तमाम रातें बातचीत की चादर ओढ़े, दोनों को अपनी आगोश में ले लेती थीं। लत लग चुकी थी एक-दूसरे की, लेकिन बहस खत्म होने का नाम ही नहीं लेती थी। एक रोज एन0जी0ओ0 के आफिस में…)
(2)
‘‘झंडा, बैनर, तख्तियाँ लेकर साथ-साथ सड़क पर हो हल्ला करना एक समय में कितना मारक होता था…। सरकार हिल जाती थी… प्रशासन भी झुक जाता था, लेकिन अब सरकार इतनी निरंकुश हो गयी है कि कोई फर्क ही नहीं पड़ता। चीखते रहो, मरते रहो….कोई नहीं है सुनने वाला। क्यों पगली?’’ पगलू ने अपनी कुर्सी पगली की मेज के सामने करते हुए सवाल किया।
‘‘एक समय में तुम्हारा मिलना भी उतना ही मारक था। बैठना-बतियाना, दीन-दुनिया की बातें। नाटक-नौटंकी और किताबों के किरदार में उतरने की कोशिश…वही एन0जी0ओ0 है, वही काम है, वही समाज है, तुम तो वही हो, लेकिन मैं एक बच्चे की माँ हूँ। कुछ साल उम्र आगे खिसक गयी है, हालात तो वैसे ही हैं।’’ पगली ने फाइल के कागजों को दुरूस्त करते हुए कहा।
‘‘परिवर्तन तो जरूर आयेगा, समाज तो जरूर बदलेगा, लेकिन तुम जैसे लोग यदि पस्त हो जायेंगे तो कैसे काम चलेगा?’’ पगलू ने अपने हाथ पगली की मेज पर टिकाते हुए कुछ ऊंची आवाज में कहा।
‘‘देखो मुझे उलाहना देना छोड़ दो। मेरे ही न बदलने से समाज में क्रान्ति रुकी हुई है? उस रात भी तुमने मुझे बहुत बुरा-भला कहा था। और कई दिनों तक टकराव चलता रहा था। मोबाइल में सारे मैसेज दर्ज हैं, बातचीत की रिकार्डिंग भी है, लो सुनो।’’ पगली ने मोबाइल ऑन कर दिया।
- तुम वही लड़की हो, महिला हो जो दुनिया के तमाम झंझावतों को झेल सकती हो, बच्चा पैदा कर सकती हो, और बाद में यह आरोप भी झेल सकती हो कि यह बच्चा उसका नहीं है, जिसके लिए तुमने दुनिया की सबसे खूबसूरत पीड़ा को बर्दाश्त किया है। तुम्हारा रूप बदल गया है, शरीर बेडोल हो गया है और मर्दों को महिलाओं में सबसे पसंद योनि फैल गयी है, आपरेशन के बाद। वो दूर हो सकता है तुमसे, लेकिन तुम फिर भी प्रेम करती हो उससे
(3)
‘‘तुम फट्टू हो…बहुत डरपोक। थीं तो नहीं तुम ऐसी, शायद वक्त ने बना दिया तुम्हें कायर।
आधी रात में तुम घर की चौखट पर बंधे कुत्ते के भौंकने की परवाह करो… मैं शराबी हूँ और कुत्ते मेरे भाई-बिरादर। लेकिन सड़क छाप कुत्ते ही मेरी संगत में हैं। ये शहरी रौवदार लोगों के डरपोक कुत्ते के पिल्लों के मैं मुंख नहीं लगता हूँ… मैं सड़क छाप शराबी हूँ, नाक तक भर जाने के बाद, कान तक और फिर नाली में लोट-पोट होने तक पीने वाला शराबी। खैर, तुम्हें इससे क्या..?’’ (दूसरी तरफ से कोई हाँ… हूँ… नहीं आयी। लेकिन फोन चालू था, पगली सुन रही थी पक्का।)
‘‘तुम! सार्वजनिक तौर पर लाइसेंसी जूते खा सकती हो, अपने पति के, लेकिन तुम अपने जमीर, मोहब्बत और इमानदारी के बलबूते जी नहीं सकतीं क्यों?’’
‘‘तुम्हें जलालत पसंद है, जो लोगों के सामने पाखंड के रूप में स्वीकार की जाती है और समय-समय पर तार-तार भी होती है। लेकिन तुम चुप रहती हो।’’
‘‘तुम वही लड़की हो, महिला हो जो दुनिया के तमाम झंझावतों को झेल सकती हो, बच्चा पैदा कर सकती हो, और बाद में यह आरोप भी झेल सकती हो कि यह बच्चा उसका नहीं है, जिसके लिए तुमने दुनिया की सबसे खूबसूरत पीड़ा को बर्दाश्त किया है। तुम्हारा रूप बदल गया है, शरीर बेडोल हो गया है और मर्दों को महिलाओं में सबसे पसंद योनि फैल गयी है, आपरेशन के बाद। वो दूर हो सकता है तुमसे, लेकिन तुम फिर भी प्रेम करती हो उससे। तुम गिर सकती हो, और उस हद तक गिर सकती हो, जिस नीचता तक यह समाज तुम्हें गिराना चाहता है। बाबजूद इसके तुम सम्मान नहीं पा सकती, क्यों? आत्म सम्मान के लिए तुम लड़ नहीं सकतीं, बस रो सकती हो, अपनी किस्मत पर। इतनी जंजीरों में जकड़े होने पर भी तुम सबके सामने खुद को एक स्वतंत्र व्यक्तित्व होने का कथित दावा करती हो, क्यों? अच्छा समाज क्या कहेगा, इस डर से! तुम सोचो क्या तुम एक इंसान बची हो? सोचो। कुछ तो कहो…तुम बोलती क्यों नहीं?’’
(पगलू आधी रात में शराब के नशे में बकता ही जा रहा था, उसे संतोष था कि उसकी पगली सुन तो रही है।)
- मैं एक अश्लील विडियो हूँ, बिल्कुल उस पवित्र ग्रंथ की तरह, जिसे सुनना और देखना तो सब चाहेंगे, लेकिन समझना कोई नहीं चाहेगा। तुम बोलते क्यों नहीं हो अब…? मैं कोई सत्यनारायण की कथा नहीं सुना रही हूँ, जिसे सुनना या न सुनना कोई जरूरी नहीं है। तुम्हें मुझे सुनना ही होगा पगलू… हाँ मैं तुम्हारे सपनों की नायिका तो नहीं बन सकती। तस्लीमा नसरीन नहीं बन सकती, बेबी हाल्दार नहीं बन सकती… मुझे कुछ और बनाने की कोशिशें हों भी क्यों…?
(4)
‘‘बदबूदार, सड़ाँधभरी, मवादभरी, पीड़ादायी, पुरूषवादी मानसिकता ने मुझे समाज में एक महिला भी नहीं रहने दिया। मैं भी लाख सपने संजोकर ससुराल गयी थी। अपनी हैसियत से ज्यादा बापू ने दान-दहेज दिया और मैंने सहने की चरम सीमा तक हिंसा झेली…’’
‘‘बदचलन, बेहया, आवारा और वैश्या न जाने क्या-क्या नहीं सुना मैंने अपने बारे में। पति छूट जाने से मैं अपवित्र हो गयी? घर में शोकेस की तरह सजी महिलाओं से एक वैश्या ज्यादा पवित्र है, वो अपना जिस्म तो बेचती है, लेकिन स्वाभिमान नहीं।’’ (संवाद एकतरफा था, इस बार पगली बोल रही थी।)
‘‘मुझे अब रोना नहीं आता। किसी के खूंठे से बंध कर मैंने अपनी आंखें पत्थर कर ली हैं। सांस लेना, बच्चे पैदा करना, खाना-पीना, हगना-मूतना, सैक्स करना… थोड़ी देर बाद उसी से पिटना जिसके लिए मैं रोज चटाई बनती थी…यह सब सहती रहती तो मैं ठीक रहती, इस क्रूर समाज की नजरों में।’’ (पगली हांफ चुकी थी, सब कुछ एक ही सांस में जो बोले जा रही थी। गहरी सांस लेने के बाद उसने सवाल दागना शुरू किया।)
‘‘महिला की जिन्दगी को क्या समझते हो तुम? देखा क्या है तुमने अभी? मेरे दुःखों से तर-बतर होना चाहते हो? बहुत मुश्किल है। तुम्हें नहीं पता मेरी दुनिया कितनी अकेली है, बदरंग है।’’ (वो अब चेत चुकी थी। पगलू शान्त था बिना किसी आहट के)
‘‘मैं एक अश्लील विडियो हूँ, बिल्कुल उस पवित्र ग्रंथ की तरह, जिसे सुनना और देखना तो सब चाहेंगे, लेकिन समझना कोई नहीं चाहेगा। तुम बोलते क्यों नहीं हो अब…? मैं कोई सत्यनारायण की कथा नहीं सुना रही हूँ, जिसे सुनना या न सुनना कोई जरूरी नहीं है। तुम्हें मुझे सुनना ही होगा पगलू… हाँ मैं तुम्हारे सपनों की नायिका तो नहीं बन सकती। तस्लीमा नसरीन नहीं बन सकती, बेबी हाल्दार नहीं बन सकती… मुझे कुछ और बनाने की कोशिशें हों भी क्यों…? मैं तुम्हारी पगली हूँ और वही बने रहना मुझे पसंद है।’’ उसने अपने आप को खुद में समेटते हुए बहुत संयत भाव से कहा, ‘‘तुम बहुत खतरनाक किस्म के आशिक हो पगलू। लेकिन मुझे पसंद हो मेरे आवारा मसीहा।’’
- मुझे तुम्हारे स्त्री होने के एहसास से प्रेम नहीं है। पत्थर सी छाती, कठोर आकृति और तुम्हारे मजबूत इरादे से प्रेम है। पता नहीं यह बनावट तुमने कैसे पायी होगी, तुमने अपने आप को पुरूष में तब्दील होती महिला कैसे बनाया होगा
(5)
‘‘हो सकता है, तुम्हें ठंडा करने तक मैं गर्म नहीं हो पाता हूँ। हो सकता है, तुम्हें शान्त करने के लिए मैं ज्वालामुखी नहीं बन पाता हूं। हो सकता है, तुम शुरू होती हो ‘दस’ से और मैं ‘शून्य’ पर ही रह जाता हूँ। हो सकता है, मुझमें बहुत कुछ ऐसा-वैसा हो जो तुम जैसा बिलकुल भी न हो… लेकिन मैं ‘मैं’ हूं और तुम ‘तुम’ हो। मेरे ‘मैं’ और तुम्हारे ‘तुम’ होने में उतना ही फर्क है, जितना दो जिस्म के एक जान होने में होता है।’’ (फोन करते-करते पगलू के दिमाग में बहुत कुछ चल रहा था)
‘‘सुनो पगली! मैं शराबी हूँ, लेकिन किसी के जज्बात नहीं पीता। शराबी हूँ, लेकिन किसी की इच्छा को नहीं मरने देता। मैं शराबी हूं, लेकिन किसी के किरदार को खत्म नहीं करता। हां, मैं शराबी हूँ लेकिन किसी को अन्दर ही अन्दर घुटने के लिए मजबूर नहीं करता… मैं किसी की आंखों से नहीं पीता… शराबखाने में नहीं पीता, भटियारखाने में नहीं पीता। किसी के पैसे की तो बिलकुल भी नहीं पीता… क्यों पीता हूँ, मुझे नहीं पता। न गम में पीता हूँ न खुशी में पीता हूँ…बस पीता हूं तो पीता हूं। हां, मैं शराबी हूं और कभी-कभी लहू के घूंट भी पीता हूँ।’’ (पगली फोन की घंटी से बेखबर थी, या गुस्से से भरी हुई। उसने फोन नहीं उठाया)
‘‘मुझे तुम्हारे स्त्री होने के एहसास से प्रेम नहीं है। पत्थर सी छाती, कठोर आकृति और तुम्हारे मजबूत इरादे से प्रेम है। पता नहीं यह बनावट तुमने कैसे पायी होगी, तुमने अपने आप को पुरूष में तब्दील होती महिला कैसे बनाया होगा, तुमको लेकर मैं एक ऐसे मरूस्थल में खड़ा हूं, जहां पानी होने का एहसास ही इंसान को तर बतर कर देता है, लेकिन मैं आज हूँ सारे एहसास के स्पर्श से परे, बिल्कुल विमुख, बेखबर। (फोन न उठने पर पगलू ने सारी बातें पगली के व्हाट्सएप पर लिख मारी)
- आज जिनको दूर कर रहा हूं, दिल पर पत्थर रख कर फैसला कर रहा हूं। तुम्हारी पोस्ट पर लाइक और कमेंट न आये तो स्वतः ही संबंध विच्छेद समझ जाना। मैं अपने सत्य के साथ जीता हूं, किसी के भरोसे नहीं। उम्मीद है कल और मिलेंगे, तुमसे बेहतर या फिर छूट जाने को सफर में तुम जैसे तमाम लोग
(6)
‘‘न कोई गाना ऐसा है, जो मुझे भीतर तक सुकून दे सके। न कोई दृश्य ऐसा है, जो मुझे झकझोर सके। न कोई बांहें ऐसी हैं, जो मुझे अपनी बांहों में भरकर यह कह सके कि तुम यहाँ महफूज हो, हमेशा-हमेशा के लिए… इस समाज में मैं हूं जिन्दा लाशों के बीच…मेरे पास खोने को कुछ भी नहीं है। मेरी जुबान लड़खड़ा रही है, मेरी जिन्दगी अपनी नहीं है, मुझे अकेला छोड़ दो पगलू।’’
‘‘मुझे एक बार में मरना पसंद है, नहीं मंजूर है एक खोखली जिन्दगी, जिसका नहीं हो कोई उद्देश्य, कोई मकसद। मैं अब टकराना चाहती हूं, लड़ना चाहती हूँ। बदलाव के लिए, इस सड़ी.गली व्यवस्था के खिलाफ, समाज परिवर्तन के लिए, जीवनपर्यन्त। अब मैं किसी की गिरफ्त में नहीं रहूंगी।’’
‘‘सुनो पगलू तुम्हारे तमाम सवालों के जवाब में तुम्हारी ही एक पुरानी पोस्ट शेयर कर रही हूँ…!’’
‘‘फटे थेले में शक्कर ले जाओगे तो मिठास रस्ते दर रस्ते कीड़े-मकोड़ों को ही मिलेगी। पता चलने पर अपनी बेवकूफी पर अफसोस करने व सबक लेने के वजाय किस्मत का हवाला देकर घटना की पुनरावृत्ति करने वालों में मैं नहीं हूं। जिन्दगी हर पल कुछ न कुछ खट्टा-मीठा एहसास कराती है। कुछ घटनाएं इस कदर दवे पांव होकर गुजर जाती हैं कि उसका इल्म शक्कर बिखर जाने के बाद ही होता है। मुट्ठी बंद हाथ में मौजूद फटा थेला खाली हो जाने के बाद भी उतना ही वजनदार लगता है जितना कि शुरू में होता है। लेकिन मुट्ठी खुलते ही हकीकत सामने होती है। दोष बंद मुट्ठी को दें या खुली आंखों से सड़क को नापते चले जा रहे लड़खड़ाते कदमों को।’’
‘‘वास्तव में नियति नहीं है पूर्व निर्धारित, मानव निर्णय ही उसे बनाता या बिगाड़ता रहता है। हम अपने हालात, स्थिति, मनोदशा के लिए खुद जिम्मेदार हैं, क्या ऐसा मानना ही ठीक होगा? मुद्दा और मुद्दई हम स्वयं हैं? जिस मिठास को पाने के लिए हम लम्बा जतन करते हैं, लाख कोशिश करते हैं, उसका स्वाद कोई और ले जाये और हमें तकलीफ भी न हो, ऐसा कैसे संभव है? तुम दर्द देते रहो और हम आह तक न करें, कितनी क्रूर और निर्मम है न तुम्हारी यह सोच। लेकिन तुम्हें इससे क्या?’’
‘‘पता नहीं जीवन में कितने साथ आये और कितने पीछे छूट गये। जब तक साथ रहा तब तक सब कुछ वाह और जुदा हुए तो आह निकालने में कोई कसर नहीं, ऐसा क्यों? किसी ने कहा है, ‘दोस्त चुनने में सुस्त रहो, बदलने में और भी सुस्त।’ छलनी में छनने के बाद भी दानों के बीच कंकड़ रह ही जाते हैं। सतर्कता न बरती तो कंकड़ सारा मजा किरकिरा कर देता है। और बदस्वाद अनुभव साया बनकर जीवन भर डराता रहता है। वास्तव में दोस्तों का चुनाव और संबंधों का संचालन बहुत जटिल काम है। पूरी जिन्दगी विचरण करने के बाद अपनाइयत भरे संबंधों को हम बामुश्किल दहाई के आंकड़े तक ले जा पाते हैं। सैकड़ा छूना तो नामुमकिन होता है। संबंध भैतिकवादी ही होते हैं। जरूरत खत्म, संबंध खत्म।’’
‘‘आज जिनको दूर कर रहा हूं, दिल पर पत्थर रख कर फैसला कर रहा हूं। तुम्हारी पोस्ट पर लाइक और कमेंट न आये तो स्वतः ही संबंध विच्छेद समझ जाना। मैं अपने सत्य के साथ जीता हूं, किसी के भरोसे नहीं। उम्मीद है कल और मिलेंगे, तुमसे बेहतर या फिर छूट जाने को सफर में तुम जैसे तमाम लोग। शुक्रिया!’’
‘‘तुम खुश रहो पगलू! तुम्हारी पगली संघर्ष के रास्ते पर तुमसे मिलती रहेगी, हमेशा।’’
(व्हाट्सएप पर पगली ने भी अपने जज्बात रख दिये।)
समाजोत्थान संस्थान,
दिनेशपुर, ऊधम सिंह नगर,
उत्तराखण्ड-263160
9412946162