डर के इर्द-गिर्द

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डर!
क्या होता है डर?
मैं नहीं डरता किसी ‘डर’ के डर से!
अफसोस/ऐ दोस्त
इस शेखी में दम नहीं!
खोखला है तुम्हारा दंभ
कोरा है तुम्हारा भ्रम
आज के उन्मादी दौर में 
कौन है/जो डर के भाव से आजाद है?
अंधभक्तों में शुमार
चिरांदों में भी डर है 
उनके आकाओं में भी डर है
तभी तो लाख चाकचौबंद
व्यवस्था के बावजूद 
वे लगा रहे हैं हर जगह पहरा
हर बोलती जुबान पर ताला
डर उन्हें भी है/जिनके पास 
खोने के लिए कुछ भी नहीं 
और पाने के लिए है/सारी दुनिया
हर सत्ता के अपने-अपने डर हैं 
सही मायने में कौन आजाद है 
डर से?
मेरे मित्र!
डर हैं बेशुमार यहाँ/और 
तरह-तरह से तैर रहे हैं हमारे भीतर
विश्वास जताने में धोखा खाने का डर
प्यार पाने में टूट जाने का डर
मिलने में बिछड़ जाने का डर 
इंसानी फितरत को समझने में 
अपनी प्रकृति ढह जाने का डर
भक्तों को हकीकत बताने में उनके सनकी/उन्मादी हो जाने का डर 
गोल टोपी लगाकर बाज़ार जाने में 
वापस न आने का डर
सम्मान मिलते-मिलते अचानक
अपमानित हो जाने का डर
धर्म के लिए लड़ने में 
अधर्मी कहलाने का डर 
सच बोलने में कम्युनिस्ट
माने-जाने जाने का डर
हँसने में पागल और 
रोने में कायर समझे जाने का डर
इश्क करने पर
परिजनों के न मानने का डर 
शादी हो जाए तो
जीवन में आने वाली अड़चनों का डर

लोगों से मिलने में नाते जुड़ जाने और कटे रहने पर 
गैर सामाजिक कहलाने का डर

कामयाबी के लिए प्रयास करने में 
असफल हो जाने का डर
ज्यादा पढ़-लिख जाने पर
घमंडी/अभिमानी बतलाने का डर
ज्ञानियों में बैठकर
अतिवादी हो जाने का डर
मूर्खों में बैठकर
पाखंडी बन जाने का डर
जातिवाद-भेदभाव की खिलाफत
करने में हिन्दू विरोधी हो जाने का डर
ईमानदार बने रहने में 
किसी बेईमान द्वारा ठगे जाने का डर

वैज्ञानिक दृष्टिकोण की बात करने पर
गाय, गोबर, गोमुत्र की धर्मांधता के शिकार हो जाने का डर
वफ़ा करने में बेवफाई का डर
अच्छा करने में अनिष्ट होने का डर
स्वयं को समझाने में 
गुस्से से भर जाने का डर 
आशा में निराशा का डर
उम्मीद में नाउम्मीदी का डर
खास से सामान्य हो जाने का डर
खुशी के लिए जतन करने में 
दुःख की आशंका का डर
भगवान को पूजने में 
ढोंगी बन जाने का डर
खूब सोचने पर मानसिक 
संतुलन बिगड़ जाने का डर 
बच्चों के बड़े होने पर 
उनके हाथ से निकल जाने का डर 
पढ़ाई करते वक्त अच्छी 
नौकरी न मिलने का डर 
सरकार चुनने में उसके 
हिटलरशाही हो जाने का डर 
सपने देखने में उनके/बिखर जाने का डर 
जिन्दगी जीने में/मर जाने का डर
डर डर डर 
चौतरफा डर के ईद-गिर्द
जिन्दगी जी रहे हैं हम
हमारी रगों में भरा हुआ है 
डर का अथाह समुंदर 
फिर 
किस मुँह से हम अपने आप को 
गुलाम और डरा हुआ नहीं कहते?
इस डर के खिलाफ भी
है कोई साहस???
             • • •


रूपेश कुमार सिंह,समाजोत्थान संस्थान, दिनेशपुर, जिला-ऊधम सिंह नगर-263160उत्तराखंड
मोबाइल : 9412946162

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