- रुपेश कुमार सिंह
सम्पादक,अनसुनी आवाज
देश में मंदिर-मस्जिद विवाद का सिलसिला सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भव्य राम मन्दिर बनने और रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के होने से थम जाएगा, ऐसी उम्मीद थी। लेकिन धार्मिक स्थानों को लेकर विवाद बढ़ते ही जा रहे हैं। बात चाहे काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद की हो या फिर मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर और शाही ईदगाह मस्जिद की हो सब जगह धर्म और धर्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति निखर रही है। धार, मध्य प्रदेश का भोजशाला सरस्वती मंदिर और कमाल मौलाना मस्जिद का विवाद इन दिनों सुर्खियों में है।
भोजशाला राजा भोज के काल का सरस्वती मंदिर
हिन्दू पक्ष भोजशाला को राजा भोज के काल का सरस्वती मंदिर होने का दावा कर रहा है तो मुस्लिम पक्ष इसे कमाल मौलाना मस्जिद होने की बात कह रहा है। इस बीच भोजशाला का पुरातत्व सर्वेक्षण पूरा हो गया है। भारतीय पुरातत्व विभाग एएसआई ने 2000 से अधिक पेज की अपनी रिपोर्ट मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ को 15 जुलाई को सौंप दी है। यह जानना जरूरी है कि एएसआई ने यह सर्वे 98 दिन लगातार बिना छुट्टी के पूरा किया है।
अगली सुनवाई 22 जुलाई को होनी है
रिपोर्ट सील बंद है, जिस पर सुनवाई 22 जुलाई को होनी है, लेकिन आरएसएस के मुख्यपत्र पांचजन्य ने पहले ही सरस्वती मंदिर होने के सारे सबूत सार्वजनिक कर दिए हैं। हो सकता है यह उनके अपने दावे हों, लेकिन रिपोर्ट पर सुनवाई से पहले पूरा राजनीतिक माहौल बनाने की कोशिश हो रही है। तो क्या राम मंदिर के बाद बाकी के विवादित धर्मस्थलों पर भी मंदिर बनाये जायेंगे? क्या फिर धर्म की राजनीति आक्रामक रूप से अपना भयावह मंजर पेश करेगी? आस्था और भावनाओं के साथ नया राजनीतिक घिनौना खेल शुरू हो गया है।
हिन्दू-मुसलमान में नफरत की खाई
जिससे देश में हिन्दू-मुसलमान में नफरत की खाई को और बढ़ाया जा सके। मूल मुददों पर देश विचार कर ही न सके, इसलिए लोगों को धर्म की चासनी में डुबोकर सोचने-समझने की बुद्धि को कुंद किया जा रहा है। इसका परिणाम देश के लिए सुखद नहीं होगा। धर्म स्थलों पर अधिपत्य की लड़ाई में जितनी छटपटाहट राजनीतिक तौर पर हो रही है, उतनी ही तेज है अदालती हस्तक्षेप की प्रक्रिया।
धर्म की राजनीति हावी हो गई
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के तीसरे कार्यकाल में भी जरूरी तमाम मुद्दों पर वही धर्म की राजनीति हावी हो गई है। चुनाव के दौरान भाजपा के 400 पार के नारे पर संविधान बदलकर मनुस्मृति राज लागू किए जाने की आशंका विपक्ष के द्वारा व्यक्त की गई थी। भाजपा को बहुमत न मिलने के बाद भी फिर वही धर्मस्थलों की राजनीति तेज हो गई है। यूँ तो धार के भोजशाला का विवाद दशकों पुराना है, लेकिन 2022 में इंदौर हाईकोर्ट में दायर एक याचिका ने इसे नया मोड़ दे दिया है।
भोजशाला में नमाज बंद करने की माँग
याचिका में यहाँ सरस्वती देवी की प्रतिमा स्थापित करने, पूरे परिसर की फोटोग्राफी-वीडियोग्राफी करवाने व भोजशाला में नमाज बंद करने की माँग की गई थी। इस मामले में हाईकोर्ट के आदेश पर पुरातत्व विभाग ने सर्वे किया। जिसकी रिपोर्ट अभी तक पूरी तरह से गोपनीय और सील बंद है, लेकिन हिन्दू पक्ष और आरएसएस यहाँ मंदिर होने के सबूत सार्वजनिक करने का दावा कर रहा है।
भोजशाला में 1700 से ज्यादा अवशेष मिले
कहा जा रहा है कि भोजशाला में 1700 से ज्यादा अवशेष मिले हैं। जिनमें 94 मूर्तियाँ, शिलालेख, सिक्के आदि शामिल हैं। एएसआई की टीम ने भोजशाला और इसके आसपास के 50 मीटर के दायरे में यह सर्वे किया है। टीम के साथ हिंदू और मुस्लिम पक्षकारों को अन्दर जाने की अनुमति थी। इस दौरान यहाँ फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी करायी गई है।
सूर्योदय से सूर्यास्त तक हिंदुओं के लिए प्रवेश की अनुमति
भोजशाला में मंगलवार को सूर्योदय से सूर्यास्त तक हिंदुओं के लिए प्रवेश की अनुमति रहती है। इसके अलावा शुक्रवार को दोपहर एक बजे से तीन बजे तक केवल नमाजियों को अंदर घुसने की इजाजत होती है। हफ्ते के बाकी दिन सभी दर्शकों के लिए भोजशाला खुली रहती है। एक रुपए एंट्री फीस देकर कोई भी भीतर जा सकता है। इतिहास में जाएं तो पता चलता है कि 1000 से 1055 ईस्वी तक परमार वंश के राजा भोज का यहाँ शासन था। वे देवी सरस्वती के भक्त थे।
महाविद्यालय की स्थापना
1034 ईस्वी में उन्होंने एक महाविद्यालय की स्थापना की जिसे बाद में चलकर उनके नाम से भोजशाला नाम दिया गया। उनके समय में इसके एक हिस्से में नमाज भी पढ़ी जाती थी। कहा जाता है कि 1305 ईस्वी में अलाउद्दीन खिलजी ने भोजशाला ध्वस्त कर दी। फिर 1401 में दिलावर खान गौरी ने इसके एक हिस्से में मस्जिद का निर्माण कराया। महमूद शाह खिलजी ने 1514 में इसके दूसरे हिस्से में मस्जिद बनवा दी। हिंदू पक्षकारों के अनुसार 1875 में यहाँ खुदाई कराई गई। जिसमें सरस्वती की प्रतिमा निकली जिसे अंग्रेज अफसर किनकेड अपने साथ लंदन ले गया। यह प्रतिमा आज भी लंदन के एक म्यूजियम में है। जिसे वापस लाने की माँग भी कई बार हो चुकी है।
संरक्षित स्मारक घोषित कर दिया
साल 1909 में भोजशाला को संरक्षित स्मारक घोषित कर दिया गया। फिर यह पुरातत्व विभाग के पास आ गई। 1935 में धार रियासत ने शुक्रवार को यहाँ नमाज पढ़ने की अनुमति दी थी। 1995 में विरोध के बाद मंगलवार को यहाँ हिंदू समाज को पूजा करने की इजाजत मिली। 12 मई 1997 को भोजशाला आम लोगों के लिए बैन कर दी गई और मंगलवार की पूजा पर भी रोक लगा दी गई। 2003 में आखिरकार सभी प्र्रतिबंध हटा लिए गए और पर्यटकों की एंट्री के साथ पूजा की भी अनुमति दे दी गई।
अब भोजशाला में सिर्फ मंदिर होने का दावा
लेकिन, अब भोजशाला में सिर्फ मंदिर होने का दावा किया जा रहा है जिसको लेकर कानूनी जंग लड़ी जा रही है। बाहर इस मामले का राजनीतिकरण कोई नई बात नहीं है। सवाल यह उठता है कि देश कब तक हिंदू-मुसलमान और मंदिर-मस्जिद के नाम पर लड़ता रहेगा? फिलहाल सबकी निगाहें 22 जुलाई को हाईकोर्ट की सुनवाई पर हैं।