दास्तां-ए-विभाजन 1947
‘‘हमने क्या पा लिया हिन्दू या मुसलमां होकर क्यूं न इंसां से मोहब्बत करें इंसां होकर।’’
जश्न-ए-आजादी पर आज भी हावी है विभाजन का मातम
71 साल पहले भारत और पाकिस्तान दो अलग-अलग मुल्क दुनिया के नक्शे पर प्रदर्शित हुए। इसी के साथ भारत और पाकिस्तान की आजादी का ऐलान भी हुआ। सत्ता हथियाने की छटफटाहट में सियासतदारों ने हिन्दुस्तान के दो टुकड़े कर दिये। दोनों मुल्कों के बीच दुनिया का सबसे बड़ा और हिंसक विभाजन हुआ। वास्तव में सत्ता कभी भी, किसी को भी बेदखल कर सकती है। इसका जीता जागता प्रमाण है 1947 का बंटवारा। सभ्यता, संस्कृति, भाई-चारा, इंसानियत को धता बताते हुए जबरदस्त नरसंहार हुआ। एक तरफ अपनी जमीन, घर, परिवार और अपनों के छूटने का मातम पसरा था, तो दूसरी ओर सत्ता के गलियारे में आजादी के जश्न में कहीं पाकिस्तानी झण्डा तो कहीं तिरंगा फहराया जा रहा था। भयंकर अव्यवस्था और अशान्ति के बीच रसूकदार व सत्तासीन लोग लड्डू खाने में मग्न थे, तो दोनों देशों के लाखों आम नागरिक सरकारी कैम्पों में शरणार्थी के रूप में सूखी रोटी, दवा, पानी को मोहताज थे। सिसकते चेहरे यही पूछ रहे थे, ‘‘यह कैसी आजादी है?’’…..जो हमें अपने अस्तित्व से ही बेदखल कर रही है?
विभाजन का मातम आजादी के जश्न पर हावी
71 साल बाद भी विभाजन का मातम आजादी के जश्न पर हावी है। पीड़ितों की डबडबाती आंखें उस खौफनाक मंजर को याद करके सिहर उठती हैं। काश! एक बार अपनी पैतृक जमीन से मिल पाते। यह तमन्ना जड़ हो चुकी है।
धर्म के आधार पर हुए बंटवारे में लगभग एक करोड़ से ज्यादा लोगों को 1947 में बेदखल होकर रिफ्यूजी बनना पड़ा। दोनों मुल्कों के पास आज तक कोई ठीक-ठीक आंकड़ा मौजूद नहीं है कि इस दौरान कितने लोग प्रभावित हुए, कितने लोग मारे गये और कितनी चल-अचल सम्पत्ति का नुकसान हुआ। पीड़ितों को मुआवजा भी न्यायसंगत नहीं मिल सका या नहीं। तमाम लोग आज भी भरपाई से वंचित हैं। विस्थापन की पीड़ा झेल रहे लोग आज भी अपने दर्द से उभर नहीं पाये हैं। लाखों हिन्दू और सिख परिवारों को पाकिस्तान के कई हिस्सों से भारत आना पड़ा, इसी तरह उत्तर-प्रदेश, बिहार, पंजाब, बंगाल आदि राज्यों से मुसलमानों को परिवार सहित मजबूरी में पाकिस्तान जाना पड़ा।
यह बेदखली खून से सराबोर थी। मुसलमान और हिन्दू-सिख एक दूसरे के खून के प्यासे हो गये। हजारों महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ। लाखों लोग साम्प्रदायिक हिंसा में मारे गये। भूख, कुपोषण, प्लेग, हैजा से ग्रस्त होकर मृत शरणार्थियों को गाड़ी में भरकर सरकारी कैम्पों से बाहर जंगल में फेंक दिया गया। अपनों के अन्तिम संस्कार तक से वंचित हुए तमाम लोग। हजारों लापता बच्चों, महिलाओं, बुजुर्गो का आज तक कुछ पता नहीं चला।
क्या विभाजन ही एक मात्र रास्ता था?
सवाल उठता है कि क्या विभाजन ही एक मात्र रास्ता था? यदि हां, तो सरकार और जिम्मेदार हुक्मरानों ने कोई सुनियोजित रणनीति क्यों नहीं बनायी? लाखों लोगों की मौत का जिम्मेदार कौन है? धर्म के आधार पर यदि लोगों को भारत और पाकिस्तान में शिफ्ट होना था तो क्यों नहीं लोगों को सुरक्षा और समय दिया गया? इतनी जल्दबाजी किसलिए थी? विभाजना हो ही रहा था तो सारे हिन्दू और सिखों को भारत क्यों नहीं लाया गया? भारत से सारे मुसलमानों को पाकिस्तान क्यों नहीं भेजा गया? यदि यह संभव नहीं था, तो विभाजन सीमा के आधार पर करते, धर्म के आधार पर क्यों। ऐसे अनगिनत सवाल हैं बंटवारे के दौर से गुजरे तमाम पीड़ितों के। इनका जवाब कौन देगा?
दोनों मुल्कों में साम्प्रदायिकता चरम पर है आज भी
1947 में पैदा हुआ तनाव आज विकराल रूप ले चुका है। दोनों ही मुल्कों में साम्प्रदायिकता चरम पर है। हिन्दू-मुसलमान के बीच की खाई लगातार चैड़ी हो रही है। भारत-पाक सीमा पर हमेशा अघोषित युद्ध चल रहा है। कट्टरता फैल रही है। दो देश नहीं, दो धर्म आपस में दुश्मन बन बैठे हैं। इन सबके बीच मानवता और इंसानियत का खुलेआम कत्लेआम हो रहा है।
दोस्तों, जिन्होंने विभाजन को अपनी आंखों से देखा है, तब उनकी उम्र 8-20 साल थी। आज वे बुजुर्ग हैं। आने वाले 10-15 सालों में तमाम प्रत्यक्षदर्शी हमारे बीच नहीं होंगे। वह दास्तान आने वाली पीढ़ी तक पहुंच सके, इसके लिए हमे अपने स्तर से उन बुजुर्गों से बात करनी चाहिए। उनके अनुभवों को दर्ज करने की जरूरत है। बुजुर्ग भी अपनी आपबीती बताते हुए सुकून महसूस करते हैं। हालांकि उनकी दास्तां में दर्द है, बेबसी है, लेकिन वे कहना चाहते हैं बहुत कुछ। बस, कोई सुनने वाला होना चाहिए।
तो दोस्तों, आइये इस स्वतंत्रता दिवस पर कुछ ऐसे ही भुक्तभोगियों से मिलें और उनके अनुभवों को साझा करें। मैंने भी बंटवारे का दंश झेल चुके कुछ लोगों से बात की है। क्या कहते हैं वे, आप भी पढ़े।
अगले भाग में जारी………………………………
-रूपेश कुमार सिंहदास्तां-ए-विभाजन 1947 (भाग – दो)