लघुकथा – सिर्फ बहू चाहिए !

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मेरी पोटली से –  रूपेश कुमार सिंह ‘‘रूपा की माँ बहुत देर हो गयी, लेकिन अभी तक सक्सेना जी अपने लड़के को लेकर पहुँचे  नहीं?’’ […]

कहानी- न्यौछावर

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रूपेश कुमार सिंह …दाम्पत्य जीवन की शुरुआत और यहाँ प्रेम की लिपटा-चिपटी की जगह दोनों की आँखों में भविष्य की आशंका, तमाम योजनाएं घर बना […]

चिता जलाने को भी न जुट रहे लोग मोमबत्ती जलाकर क्या होगा?

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कोरोना डायरी पिछले दिनों मेरे कस्बे के एक लाला जी गुजर गये। बुजुर्ग थे, पर इस दुनिया को अलविदा कहने की नौबत तो नहीं थी […]

‘झूठ’

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झूठ!चल रहा हैबढ़ रहा हैफल-फूल रहा हैसत्ता के गलियारे सेगाँव-देहात की पगडंडी तकछुटपन में सुना था,ठीक नहीं है झूठ बोलनागलत है झूठ को सही साबित […]

चीनी मिल तो बहाना है, असल में किच्छा विधानसभा पर वर्चस्व जमाना है

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-रूपेश कुमार सिंह यह सही वक्त है, सियासी गोटी फिट करने का। कोरोना के चलते लोग घरों में कैद हैं। खाली हैं, समय भरपूर है। […]

डर के इर्द-गिर्द

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डर!क्या होता है डर?मैं नहीं डरता किसी ‘डर’ के डर से!अफसोस/ऐ दोस्तइस शेखी में दम नहीं!खोखला है तुम्हारा दंभकोरा है तुम्हारा भ्रमआज के उन्मादी दौर […]

सत्ता में  वर्चस्व के लिए प्रायोजित था रक्षा समिति का आन्दोलन !

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’’गैरसैंण राजधानी का विरोध करने वालों, तुम वही हो जो उस समय जनपद ऊधम सिंह नगर को उत्तराखण्ड से अलग करने की मांग कर रहे […]

कोरोना काल में- भाग एक

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हास-परिहास (क्षणिकाएं) -रूपेश कुमार सिंह  “जितनी बार साल में नहाते नहीं हैं, उससे ज्यादा बार एक दिन में हाथ धोना पड़ रहा है। अब तो, हाथ […]

-रूपेश कुमार सिंह

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किस्से में बदल जाओगे तुम ‘कोरोना’ आने वाली पीढ़ी के लिए किस्सा बनकर दुनिया में जिन्दा रहोगे तुम ‘कोरोना।’ हमने नहीं देखा स्पैनिश फ्लू, प्लेग, […]