नरबलि वो भी 21वीं सदी में, पर हाँ यह सच है। कालांतर में नरबलि और घात लगाना हमारे समाज का स्याह पक्ष रहा है। मानव विकास के साथ-साथ नरबलि भी समाज सुधारकों के प्रयासों से धीरे-धीरे ख़त्म हो गयी थी। लेकिन यह पूर्ण रूप से ख़त्म नहीं हुयी। आज भी परोक्ष रूप से नरबलि जारी है।शूप्टर ने कहा था, “लोकतांत्रिक विधि राजनीतिक निर्णय लेने हेतु ऐसी संस्थागत व्यवस्था है जो जनता की सामान्य इच्छा को क्रियान्वित करने हेतु तत्पर लोगों को चयनित कर सामान्य हित को साधने का कार्य करती है।“राजनीतिक विकास में मानव कबीलाई समाज से राजतंत्र और राजतंत्र से लोकतंत्र के सफर पर तो आ गया है पर लोकतंत्र का सफर भीड़तंत्र की ओर जाता दिख रहा है। राजनीति विकास की ओर नहीं पतन की ओर अग्रसर है। जब समाज का प्रतिनिधि करने वाला विचार पतन की ओर हो तो मानव सभ्यता का भी पतन निश्चित है। लोकतंत्र में सत्ता का चुनाव होता है और हर किसी को सत्ता चुनने का अधिकार है। शूप्टर ने कहा था, “लोकतांत्रिक विधि राजनीतिक निर्णय लेने हेतु ऐसी संस्थागत व्यवस्था है जो जनता की सामान्य इच्छा को क्रियान्वित करने हेतु तत्पर लोगों को चयनित कर सामान्य हित को साधने का कार्य करती है।“ लेकिन हमारा लोकतंत्र और लोकतंत्र की दलीय प्रणाली अभिजात्य वर्ग का खेल बन चुकी है। ये उनके द्वारा नियंत्रित होती है जो साधन सम्पन्न हैं और वे ही महत्वपूर्ण निर्णय लेते हैं। ऐसे में कौन जनता के लिए निर्णय लेगा?
लगातार अव्यवस्थाओं से जूझ रहा उत्तराखण्ड
हमारा प्रदेश की जनता भी लगातार अव्यवस्थाओं से जूझ रही है। सड़क दुर्घटना और आपदा यहाँ की नियति जैसी बन चुकी है। हर रोज सड़क हादसे की कोई न कोई खबर आ जाती है, कारण होता है ओवरलोडिंग, सड़कों पर गड्ढे और नशा। पर सत्ता में बैठे जनता की प्रतिनिधि कोई भी निर्णय नहीं लेते, हादसों में हुई मौतों पर खामोशी ही बनाए रखते हैं। सुचारु रूप से व्यवस्था बनाने के लिए न तो बसों की संख्या बढ़ाई जा रही है न तो सड़कें दुरस्त की जा रही है और नशा को सरकार का पर्याय ही बन गया है। शराब बेचने को लेकर जो जद्दोजहद होती रहती है वहीं भांग को लेकर बार-बार बिगड़े बोल आते रहते हैं।
आपदा मतलब बरसात और बरसात मतलब आपदा
आपदा मतलब बरसात और बरसात मतलब आपदा, दोनों मे से कुछ भी बोलो उत्तराखण्ड के पहाड़ी परिवेश के लिए दोनों नामों का एक ही अर्थ हो गया है। प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन ने उत्तराखण्ड को इतना कमजोर बना दिया है कि बरसात हर बार मौत का रूप लेकर आती है। सरकार आपदा को रोकने के लिए किसी भी प्रकार कोई भी प्रयास नहीं कर रही है उल्टे प्राकृतिक संसाधनों का दोहन बढ़ते जा रहा है। अतिवृष्टि (बादल फटना) से भूस्खलन, नदियों और गाढ़-गधेरों में अत्यधिक मलवा आने से गाँव से गाँव को जोड़ने वाले संपर्क मार्ग और मुख्य मार्ग से जुड़ने वाले पुल और रोड़ क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। नदियों के आस-पास वाले गांवों/कस्बों में मकानें-दुकाने, खेत और फसलें बह जाती हैं। मवेशी बह जाते हैं। गाँव की मुख्य सम्पदा जो कि उनका जंगल है उसे भी भारी नुकसान होता है। जलावन की लकड़ियाँ, मवेशी के चारे की पत्तियाँ, घास और बिछावन का भी भारी मात्रा में नुकसान होता है। भूस्खलन से नहरें और पानी की लाइन भी चौपट हो जाती है।
ढाड़र बगड़ का मिट चुका था नामोनिशान
सोमवार 16 जुलाई को चमोली जनपद के थराली, देवाल और विकासनगर घाट प्रखण्ड में सुबह के तकरीबन तीन बजे अतिवृष्टा से वहाँ का जनजीवन डर के जद में आ गया। रतगांव, बुरसोल, ढाड़र बगड़, कुंडी गाँव, बांज बगड़ और वाण-कुलिंग गाँव में जब गधेरे उफान पर बहने लगे तो ग्रामीण जाग गए और सुरक्षित स्थानों की ओर चले गए। दिन के खुलने तक ढाड़र बगड़ का नामोनिशान मिट चुका था। दुकाने, मकानें और वाहन बह चुके थे। रोड़ के साथ-साथ रतगांव को जोड़ने वाला पुल भी बह चुका था। वहीं कुंडी गाँव में भी बादल फटा और पूरा गाँव भूस्खलन की जद में आ गया। कुंडी गाँव दो हिस्सों में बंट गया। मकानों के साथ-साथ खेत और फसलें भी चौपट हो गयी। पीने के पानी की लाइनें टूट गयी। गाँव का स्कूल भी जर्जर हो चुका है दीवारों पर दरारें पड़ने से गिरने का खतरा लगातार बना हुआ है। वहीं बांजबगड़ के पुल का एक हिस्सा भी नदी के तेज बहाव से बह गया। देवाल प्रखण्ड में वाण और कुलिंग गाँव के पुल भी बह गए जिससे मुख्य सड़क से गाँव वालों का संपर्क कट गया।
किसी ने सुध नहीं ली
अतिवृष्टि से जो नुकसान होना था वो सब हो चुका था। बचाव/राहत कार्य और जनजीवन को फिर से पटरी पर लाने के लिए सरकार द्वारा कोई पहल नहीं की गयी। दो-तीन दिन तक ग्रामीण व्यवस्था का इंतेजार करते रहे पर उनको निराशा ही हाथ लगी। कोई प्रतिनिधि कोई आला अधिकारी उनकी सुध लेने नहीं आए। जहां चुनावों में डोर टू डोर कन्वेन्सिंग के लिए नेता, छुट्ट्भइए और उनके भक्तों/चमचों की फौज गाँव-गाँव घूम रही थी आपदा के समय कोई उनके साथ नहीं था।
पैर फिसला और बिगड़ गया सन्तुलन
बेहाल ग्रामीणों ने खुद के संसाधनों से अपनी व्यवस्था बनानी शुरू की और उस समय सबसे पहली जरूरत होती है बाहरी दुनिया से संपर्क करना। क्यूंकी जहां जहां पुल टूटे थे उनका स्कूल, अस्पताल, बैंक, बाज़ार और ब्लॉक, तहसील से संपर्क कट गया। पुल बनाना प्राथमिकता थी तो हर जगह ग्रामीण जुट गए। बांजबगड़ में पुल और रोड पर लंबी बल्लियों के सहारे पार करने लायक बन गया। कुलिंग और वाण में भी लकड़ी को आर पार लगाकर आने-जाने की व्यवस्था कर दी गयी। ढाड़र बगड़ में भी रतगांव के ग्रामीणों द्वारा भी पुल बनाने का प्रयास किया गया। नदी के आर पार लकड़ी लगाते वक्त पचपन वर्षीय सुजान सिंह का पैर फिसल गया। सुजान सिंह का संतुलन नहीं बन पाया और वो उफनती नदी में गिर गए। चारों और हबड़-तबड़ मच गई। खबर आग की तरह आस पास के गांवों तक फैल गई। शासन-प्रशासन को तत्काल खबर किया गया। पुलिस मौके पर पहुंची। बिना संसाधनों के खोजबीन हो भी नहीं सकती थी तो सब नदी की ओर ताकते रहे और अभी तक नदी की ओर ही ताक रहे हैं कि कहीं सुजान सिंह कि लाश दिख जाए।
लोकतंत्र और लोकतंत्र की दलीय प्रणाली अभिजात्य वर्ग का खेल बन चुकी है। ये उनके द्वारा नियंत्रित होती है जो साधन सम्पन्न हैं और वे ही महत्वपूर्ण निर्णय लेते हैं। ऐसे में कौन जनता के लिए निर्णय लेगा?
नरबलि ले ली थी
चारों और भय का माहौल बन गया। सरकार और प्रशासन को लोग भला बुरा कहते रहे। व्यवस्था बनाने के लिए सरकार ने नरबलि ले ली थी। हमारी सरकारें यही तो करते आ रही हैं जब तक सामान्य दिख रहा होगा तो कोई व्यवस्था नहीं बनाई जाती। सत्ता और सत्ता में बैठे लोग इतने निरंकुश और क्रूर हो गए हैं कि इनकी चेतना तब तक नहीं जागती है जब तक बड़ी दुर्घटना नहीं हो जाती।
सेना की मदद से बना अस्थाई पुल
सुजान सिंह की नरबलि लेने के बाद सरकार जागृत होती है और दो दिन बाद भारतीय सेना के जवान ढाड़र बगड़ में अस्थाई पुल बनाने आते हैं। एक नर बलि के बाद एक अस्थाई पुल बन जाता है। वाण-कुलिंग का पुल कौन बनाएगा? बांजबगड़ में बल्लियों से सहारे जो जिंदगियाँ चल रही हैं वहाँ से बल्ली उतारकर स्थायी निर्माण कौन कराएगा? कुंडी गाँव जो कि भूस्खलन की जद में है उनके लिए स्थाई विकल्प कौन खोजेगा?
जनता को एक नयी सुदृढ़ व्यवस्था बनाने के लिए सोचना ही पड़ेगा
आप सभी लोगों ने उत्तराखंड के तमाम जगहों पर लकड़ी के पुल देखें होंगे। सोसियल मीडिया में भी कई जगहों की फोटो/वीडियो वाइरल होती रहती हैं। चाहे पिथौरागढ़ हो या उत्तरकाशी हर जगह एक से हालात हैं। इन सब हालातों को सुधारने के लिए क्या सत्तानशी इसी प्रकार नरबलि लेते रहेंगे? अगर सत्ता में बैठे सत्तानशी वक्त रहते नहीं चेते तो अब जनता को चेतना पड़ेगा। जब व्यवस्था बनाने के लिए सरकार ने नरबलि लेनी ही है तो अब जनता को एक नयी सुदृढ़ व्यवस्था बनाने के लिए सोचना ही पड़ेगा।
-महेन्द्र सिंह राणा