पुरानी संसद का बदल गया सबकुछ

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नई संसद का श्रीगणेश

19 सितंबर, 2023 को गणेश चुतुर्थी के दिन भारत के नए संसद भवन का श्रीगणेश हो गया। विशेष सत्र की शुरुआत पुरानी संसद में हुई। इस विशेष सत्र की शुरुआत में परंपरा के मुताबिक राष्ट्रपति का अभिभाषण नहीं हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सेंट्रल हॉल में लोकसभा और राज्यसभा के सांसदों को संबोधित करते हुए पुराने संसद भवन को संविधान सदन का नाम दिया। पुरानी इमारत को उन्होंने विदाई दी और उनके नेतृत्व में सभी सांसद नए संसद भवन में दाखिल हुए।
पहले ही दिन लोकसभा में महिला आरक्षण के लिए 128वां संविधान संशोधन विधेयक, नारी शक्ति वंदन विधेयक पेश हुआ, जो 20 को लोकसभा में सर्वानुमति से और 21 को राज्यसभा में सर्वसम्मति से पारित हुआ और सत्रावसान हो गया। यह शायद पहला मौका रहा, जब भारतीय संसद के किसी सत्र में राष्ट्राध्यक्ष, यानी भारत की राष्ट्रपति की उपस्थिति नहीं थी। संजोग से भारत की मौजूदा राष्ट्रपति श्रीमती द्रोपदी मुर्मु एक आदिवासी महिला हैं। यह भी संजोग है कि 10 दिसंबर, 2020 को इस नए भवन का शिलान्यास प्रधानमंत्री ने किया था और 28 मई, 2023 को इसका उद्घाटन भी उन्होंने किया था। शिलान्यास से लेकर पहले सत्र तक नई संसद में भारत की राष्ट्रपति अनुपस्थित रहीं। बेहतर होता कि महिला आरक्षण बिल पारित कराने के लिए बुलाए गए संसद के इस विशेष सत्र का प्रारंभ देश की महिला राष्ट्रपति के अभिभाषण से होता।
नया इतिहास बना, लेकिन इसमें राष्ट्रपति की भूमिका न होने के पीछे क्या कारण हैं, हम नहीं जानते। प्रधानमंत्री ने नए भवन को अमृतकाल का प्रतीक बताते हुए कोरोना महामारी के दौरान भी इसके निर्माण में जुटे 60 हजार से ज्यादा श्रमिकों की मेहनत को सलाम किया और कहा कि उन सभी का विवरण सदन की डिजिटल बुक में है। यह पहल अभूतपूर्व है। ऐसी संवेदना व्यक्त करने वाले प्रधानमंत्री फिर क्यों इस मौके पर राष्ट्रपति को भूल गए? क्या आगे भी इस नई संसद में राष्ट्रपति की कोई भूमिका नहीं होगी?
जो अब संविधान सदन है, उस पुरानी संसद का निर्माण अंग्रेजों ने किया था। 97 साल पुराने इस भवन का निर्माण 12 फरवरी, 1921 में शुरू हुआ था, जो लगभग छह वर्षों में महज 83 लाख रुपए के खर्च से बन गया था। 18 जनवरी, 1927 को भारत के वायसराय लॉर्ड इरविन ने इसका उद्घाटन किया था। नया संसद भवन जाहिर है, पुरानी इमारत से कहीं ज्यादा भव्य, विशाल और आधुनिक सुविधाओं से लैस है। पुरानी इमारत वृत्ताकार है तो नई त्रिकोणाकार। 28 महीने में तैयार हुई इस चार मंजिली बिल्डिंग पर भूकंप का भी असर नहीं होगा। इसे मयूर और कमल की थीम पर बनाया गया है। नए भवन में सेंट्रल हॉल नहीं होगा, लेकिन संयुक्त सत्र में 1350 सांसद लोकसभा में आराम से बैठ सकते हैं। नए भवन का उद्घाटन वैदिकी मंत्रोच्चार के साथ धार्मिक अनुष्ठान के तहत हुई और लोकसभा अध्यक्ष के आसन के पास ऐतिहासिक राजदंड सेंगोल को स्थापित कर दिया गया। 64,500 वर्ग मीटर क्षेत्र में बने इस भवन के निर्माण पर 940 करोड़ रुपये खर्च हुए।
संविधान की प्रति हाथ में लेकर सभी सांसदों ने नए भवन में प्रवेश किया। लेकिन विपक्ष के कांग्रेसी नेता अधीर रंजन चौधरी ने आरोप लगाया कि इन प्रतियों में संविधान की प्रस्तावना से ‘धर्म निरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्द हटा दिए गए हैं। वैसे जिन द्वारों से सांसदों ने नए भवन में प्रवेश किया, उनके धार्मिक सांस्कृतिक और पौराणिक महत्व हैं। नए भवन के छह द्वार हैं। गज द्वार, अश्व द्वार, गरुड़ द्वार, मकर द्वार, शार्दुल द्वार और हंस द्वार। आंतरिक भाग को भी तीन राष्ट्रीय प्रतीकों में बाँटा गया है-कमल, मोर और बरगद का पेड़। इसके साथ ही रामायण और महाभारत को इतिहास के रूप में प्रस्तुत किया गया है। जबकि भवन को बेहद आधुनिक बनाया गया है। नए दौर के कामकाज की इसमें तमाम डिजिटल सुविधाएं होंगी। मतदान की बॉयोमैट्रिक व्यवस्था है। सारे दफ्तर पेपरलैस होंगे। स्पेस से लेकर पार्किंग तक, आराम कक्षों से लेकर सुविधाओं से लैस आधुनिक दफ्तरों तक, सिक्योरिटी से लेकर डिजिटल या ऑन लाइन सुविधाओं तक पुराना कुछ भी नहीं है। सबकुछ बदल गया है। सबकुछ आधुनिक और डिजिटल है।
नई इमारत बनाने का ठेका टाटा प्रोजेक्टस् लिमिटेड को मिला था। उसने सितंबर 2020 में 861.60 करोड़ रुपए की बोली लगाकर यह ठेका हासिल किया था। इस प्रोजेक्ट की प्लानिंग गुजरात की आर्किटेक्चर फर्म एचपीसी डिजाइंस ने तैयार की।
जाहिर है कि नए और पुराने भवन में काफी अंतर है। जहाँ पुराना भवन परंपराग तरीके से तैयार किया गया भवन है, वहीं नया इसके ठीक उलट बेहद आधुनिक है। यहाँ चप्पे-चप्पे पर पुरानी संसद के विपरीत धार्मिक, सांस्कृतिक, पौराणिक विरासत और प्रतीकों की छाप है।
जाहिर है कि ‘धर्मनिरपेक्षता’ और ‘समाजवादी’ जैसे शब्द नए शासक वर्ग और नए संसद भवन दोनों के लिए निहायत गैर-जरूरी हैं। विशेष सत्र के आयोजन और सत्रावसान की पूरी प्रक्रिया में खास राजनीतिक एजेंडा की झाँकियां पेश हुई हैं, जिनके आशय शायद बाद में स्पष्ट होते रहेंगे।

वीरेश कुमार सिंह

सम्पादक
प्रेरणा अंशु

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