एक सुरक्षित जमीन की तलाश में नारी
इतिहास सौ साल पुराना। न्यूयॉर्क के कपड़ा मिल में 14-16 घंटे काम करती थीं महिला मजदूर। मजूरी बहुत कम थी। आंदोलन-मार्च को सफलता। मताधिकार रैली-सफलता। रूस में महिला मंदिरों का आंदोलन। पहलीबार डेनमार्क में महिला दिवस मनाया गया।
हर साल एक खास थीम पर अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का आयोजन किया जाता है। जब से इसकी शुरुआत हुई, तब से यह खास दिन किसी न किसी थीम के साथ मनाया जाता रहा है। इस बार की थीम है-मैं जेंडर इक्वेलिटी, महिलाओं के अधिकारों को महसूस कर रही हूँ।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की मूल भावना है स्त्री पुरुष समानता। स्त्री पुरुष समानता केवल महिलाओं से संबंधित विषय नहीं है। इसका संबंध संपूर्ण मानवता से है। आइए, हम इस मानवीय भावना के प्रति अपने जीवन में, आचरण में पूरी तरह प्रतिबद्ध हों। महिलाओं के अधिकार, वे अधिकार हैं, जो प्रत्येक महिला या बालिका का विश्वव्यापी समाज में पहचाना हुआ जन्मसिद्ध अधिकार है। 19वीं सदी में महिला अधिकार आंदोलन और 20वीं सदी में फेमिनिस्ट आंदोलन का यह आधार रहा है। आज महिलाएं भी मेहनत कर रही हैं और अपने करियर को लेकर गंभीर हैं। हालाँकि, मानसिक, शारीरिक और यौन उत्पीड़न, स्त्री द्वेष और स्त्री-पुरुष असमानता, इनमें से ज्यादातर उनके जीवन का हिस्सा बन गई हैं। ऐसे में महिलाओं को भी भारतीय संविधान और कानून द्वारा दिए गए अधिकारों के प्रति जागरूक होना होगा।
इनमें प्रमुख हैंः समान कार्य के लिए समान वेतन का अधिकार, संपत्ति पर समान अधिकार, घरेलू हिंसा के खिलाफ अधिकार, मातृत्व संबंधी लाभ के लिए अधिकार, कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ अधिकार, कार्य स्थल पर हुए उत्पीड़न के खिलाफ अधिकार, गरिमा और शालीनता के अधिकार। ये सभी अधिकार कानूनी हैं। इनके उल्लंघन होने पर हम अदालत जा सकते हैं।
इन सबके साथ सबसे जरूरी है समाज की मानसिकता में परिवर्तन लाना, समाज की घिसी-पिटी परंपराओं को बदलना और लड़का एवं लड़कियों के संबंधों में सहजता और सरलता लाना।
जब आप चाहते हैं जीना सुख और शांति से
फिर भी जब ढह रही हो आस्थाएं और विश्वास
सोचिए, कब खत्म होगी स्त्री की
जीने के लिए एक सुरक्षित जमीन की तलाश!
रिवाजों का बोझा सर पे लिए
चेहरे से हँसती दिल से रोतीं औरतें
पहाड़ी पगडंडी-सी सौ बार टूटती और जुड़ती औरतें
पैरों में पहने रूढ़ियों की बेड़ी
धीरे-धीरे ही सही आगे बढ़ती औरतें
एक सुरक्षित जमीन की तलाश में नारी
मानवाधिकार के संदर्भ में नारी अधिकार-सामान्यतया जब भी मानवाधिकार की चर्चा होती है, तो समाज के शोषित-पीड़ित वर्ग और विशेषकर स्त्रियों के अधिकार की बात सामने आती है। आज भी भारत तो क्या, दुनिया के दूसरे देशों में भी स्त्री-पुरुष समानता का अधिकार व्यवहार में पूरी तरह लागू नहीं प्रतीत होता है। यहाँ तक कि अमेरिका जैसे स्वतंत्रता और समानता के सिद्धांत पर विश्वास रखने का दम भरनेवाले देश में भी नहीं।
मानव अधिकारों से अभिप्राय उन अधिकारों एवं स्वतंत्रता से है, जिनका सभी मानव हकदार हैं। मनुष्य के अधिकारों एवं स्वतंत्रताओं के उदाहरण के रूप में जिनकी गिनती की जाती है, उनमें मुख्य रूप से शामिल हैं हमारे नागरिक अधिकार, जैसे कि जीवित और स्वतंत्र रहने का अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार और कानून के सामने समानता का अधिकार। इसके अलावा आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार, जैसे अपनी इच्छा से किसी भी जीविका या व्यवसाय को अपनाने के साथ ही सामाजिक व सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेने का अधिकार एवं शिक्षा का अधिकार। कुल मिलाकर किसी भी इंसान की जिंदगी, आजादी, बराबरी , काम और सम्मान का अधिकार मानवाधिकार हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ ने 10 दिसंबर, 1948 में 48 देशों की सहमति से समूची मानव-जाति के मूलभूत अधिकारों की व्याख्या करते हुए एक चार्टर की घोषणा की थी। यह मानव अधिकारों के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी। इसमें माना गया था कि व्यक्ति के मानवाधिकारों की हर कीमत पर रक्षा होनी चाहिए।
भारत ने भी सहमति जताते हुए संयुक्त राष्ट्र के इस चार्टर पर हस्ताक्षर किए। तब से लेकर आज तक 10 दिसंबर को दुनियाभर में मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है। मानवीय न्याय को पहचान देने और उन्हें व्यवहार में भी अस्तित्व में लाने के लिए, अधिकारों के लिए जारी हर लड़ाई को ताकत देने के लिए, पूरी दुनिया में मानवता के खिलाफ हो रहे अत्याचारों को रोकने, उसके खिलाफ संघर्ष को नई दिशा देने में इस दिवस की महत्वूपूर्ण भूमिका है। भारतीय संविधान सभी मानव अधिकारों की न सिर्फ गारंटी देता है, बल्कि इन्हें तोड़ने और छीनने वालों के खिलाफ हम अदालत जा सकते हैं। दोषियों को अदालत सजा देती है। हमारे संविधान में इसके लिए मौलिक अधिकारों का एक पूरा अध्याय है। फिर भी देश में मानवाधिकारों से जुड़ी एक स्वतंत्र संस्था बनाने में काफी समय लग गया। 1993 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की स्थापना हुई, जो समय-समय पर मानवाधिकारों के संदर्भ में केंद्र तथा राज्यों को अपने सुझाव भेजता है। प्रांतों में भी प्रांतीय मानवाधिकार आयोग हैं। लेकिन इसके बावजूद मानवाधिकारों को लेकर हमारे देश में अनेक सवाल उठाए जाते रहे हैं। 2016 की ह्युमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट में भारत में मानव अधिकारों को लेकर चिंता व्यक्त की गई है, जिसमें अल्पसंख्यकों एवं महिलाओं के मानव अधिकारों की उपेक्षा की चर्चा शामिल है। रिपोर्ट के अनुसार भारत में अल्पसंख्यकों एवं महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा की पर्याप्त व्यवस्था लागू नहीं हो पा रही है। आए दिन स्त्री अधिकारों पर चर्चा होती है पर अफसोस कि जिन स्त्रियों के प्रति न्याय की बात की जाती है, वे स्त्रियां ही मूल विषय से गायब रहती हैं।
स्त्री आंदोलन की एक पुरानी माँग है समान नागरिक संहिता की। आज भी स्त्रियां भेदभाव पूर्ण व्यवस्था और परंपराओं के बंधन से मुक्त नही हो पाई हैं। हमारे देश में अनेक सरकारें आईं और गईं, पर आज तक समान नागरिक संहिता का बिल नहीं आ पाया। आज भी देश में महिला का असम्मान, महिला उत्पीड़न, महिला हिंसा की घटनाएं थमने को नहीं आ रही हैं।
‘नारी सशक्तिकरण’ एक नए फैशन का बहुप्रचलित शब्द बन गया है। नारी सशक्तिकरण से तात्पर्य किसी नारी की उस क्षमता से है, जिससे वो अपने जीवन से जुड़े सभी निर्णय स्वयं ले सके। महिला को उसका उचित सम्मान देना, परिवार और समाज के सभी बंधनों से मुक्त होकर अपने निर्णय खुद लेने का अधिकार देना है। इसके लिए गाँधीजी का कहना था कि उनके अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता लानी होगी।
महिलाओं के अधिकार, वे अधिकार हैं, जो प्रत्येक महिला या बालिका का जन्मसिद्ध अधिकार है। कई देशों में ये अधिकार कानूनी तौर पर समाज द्वारा या लोगों के व्यवहार में लागू होते हैं, तो कई देशों में आज भी इनकी उपेक्षा जारी है। कुछ अधिकार जैसे पारिवारिक संपत्ति में बराबर अधिकार, काम करने की आजादी और समान कार्य के लिए समान वेतन, प्रजनन अधिकारों की स्वतंत्रता, शिक्षा का अधिकार, यौन हिंसा से मुक्ति, मत देने का अधिकार, सार्वजनिक पद धारण करने की आजादी इत्यादि शामिल हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत एक आर्थिक और राजनीतिक शक्ति के रूप में उभर रहा हैं। हमारे संविधान ने हमें जो अधिकार और अवसर दिए हैं, उन्हें भी प्रमुखता मिल रही है। ऐसे में महिलाओं को भी भारतीय संविधान और कानून द्वारा दिए गए अधिकारों के प्रति जागरूक होना होगा। इनमे प्रमुख हैंः समान कार्य के लिए समान वेतन का अधिकार- समान पारिश्रमिक अधिनियम के अनुसार, अगर बात वेतन या मजदूरी की हो तो लिंग के आधार पर किसी के साथ भी भेदभाव करना कानूनन अपराध है।
संपत्ति का अधिकार- हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत नए नियमों के आधार पर पुश्तैनी संपत्ति पर महिला और पुरुष दोनों का बराबर हक है। ऐसा ना होने पर महिला अदालत जा सकती है।
कार्य स्थल पर हुए उत्पीड़न के खिलाफ अधिकार- काम पर हुए यौन उत्पीड़न अधिनियम के अनुसार एक स्त्री को यौन उत्पीड़न के खिलाफ शिकायत दर्ज करने का पूरा अधिकार है।
नाम गोपनीय रखने का अधिकार- कानून के अनुसार अपनी गोपनीयता की रक्षा करने के लिए यौन उत्पीड़न की शिकार हुई महिला अकेले अपना बयान किसी महिला पुलिस अधिकारी की मौजूदगी में या फिर जिलाधिकारी के सामने दर्ज करा सकती है।
घरेलू हिंसा के खिलाफ अधिकार- यह अधिनियम मुख्य रूप से पति, पुरुष लिव इन पार्टनर या रिश्तेदारों द्वारा एक पत्नी, एक महिला लिव इन पार्टनर या फिर घर में रह रही किसी भी महिला जैसे माँ या बहन पर की गई घरेलू हिंसा से सुरक्षा के लिए बनाया गया है। स्वयं महिला या उसकी ओर से कोई भी शिकायत दर्ज करा सकता है।
मातृत्व संबंधी लाभ के लिए अधिकार- मातृत्व लाभ कामकाजी महिलाओं के लिए सिर्फ सुविधा नहीं बल्कि ये उनका कानूनी अधिकार है। मातृत्व लाभ अधिनियम के तहत एक नई माँ के प्रसव के बाद 12 सप्ताह (तीन महीने) तक वेतन में कोई कटौती नहीं की जाएगी।
कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ अधिकार- भारत के हर नागरिक का ये कर्तव्य है कि वो एक महिला को उसके मूल अधिकार- जीने के अधिकार का अनुभव करने दें। गर्भाधान और प्रसव से पूर्व पहचान करने की तकनीक (लिंग चयन पर रोक) अधिनियम कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ अधिकार देता है।
मुफ्त कानूनी मदद के लिए अधिकार- बलात्कार की शिकार हुई किसी भी महिला को मुफ्त कानूनी मदद पाने का पूरा अधिकार है। पुलिसकर्मी के लिए यह जरूरी है कि वो विधिक सेवा प्राधिकरण को वकील की व्यवस्था करने के लिए सूचित करे।
रात में गिरफ्तार न होने का अधिकार- एक महिला को सूरज डूबने के बाद और सूरज उगने से पहले गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। केवल किसी खास मामले में एक प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट के आदेश पर ही यह संभव है।
गरिमा और शालीनता के लिए अधिकार- कानूनन किसी मामले में अगर आरोपी एक महिला है तो, उसपर की जाने वाली कोई भी चिकित्सा जाँच प्रक्रिया किसी महिला द्वारा या किसी दूसरी महिला की उपस्थिति में ही की जानी चाहिए।
इन सबके बावजूद आज भी देश में नारी को एक सुरक्षित जमीन की तलाश है। देशभर में बलात्कार और हत्या के अनगिनत मामलों ने एक बार फिर न्याय प्रणाली की विफलताओं को उजागर कर दिया। बलात्कार और यौन हिंसा पीड़ितों को न्याय दिलाने के उद्देश्य से सरकार ने कानूनों में संशोधन किया और नए दिशानिर्देशों को लागू किया। मगर ऐसे अपराधों की रिपोर्ट करने में लड़कियों और महिलाओं को अब भी बाधाओं का सामना करना पड़ता है। अब भी बड़े पैमाने पर पीड़िताओं को ही दोषी करार दिया जाना जारी है और गवाह एवं पीड़िता की सुरक्षा कानूनों की कमी भी एक महत्वपूर्ण बाधा है। पर केवल सख्त कानून से ही समाधान संभव नहीं है। सबसे जरूरी है समाज की मानसिकता में परिवर्तन लाना, समाज की घिसी-पिटी परंपराओं को बदलना और लड़का एवं लड़कियों के संबंधों में सहजता और सरलता लाना।